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इमाम अली नक़ी (अ.स.) आस्था, व्याख्या, [[न्यायशास्त्र]] और नैतिकता के विषयों में हदीसें उल्लेख की गई है। इनमें से कुछ हदीसों में, तशबीह व तंज़ीह, जब्र व इख़्तियार जैसे धार्मिक विषयों पर चर्चा की गई है। [[ज़ियारत जामिया कबीरा]] और ज़ियारत ग़दीरिया भी उनसे वर्णित की गई है। | इमाम अली नक़ी (अ.स.) आस्था, व्याख्या, [[न्यायशास्त्र]] और नैतिकता के विषयों में हदीसें उल्लेख की गई है। इनमें से कुछ हदीसों में, तशबीह व तंज़ीह, जब्र व इख़्तियार जैसे धार्मिक विषयों पर चर्चा की गई है। [[ज़ियारत जामिया कबीरा]] और ज़ियारत ग़दीरिया भी उनसे वर्णित की गई है। | ||
अब्बासी ख़लीफ़ा ने इमाम हादी (अ.स.) को प्रतिबंधित कर रखा था और उन्हें [[इमामिया|शियों]] के साथ संवाद करने से रोकते थे। इस कारण से, वह ज्यादातर वकील संगठन के माध्यम से शियों से जुड़े हुए थे, जिसमें इमाम के वकीलों का एक समूह शामिल था। उनके साथियों में [[अब्दुल अज़ीम हसनी]], [[उस्मान बिन सईद]], अय्यूब बिन नूह और हसन बिन राशिद थे। | अब्बासी ख़लीफ़ा ने इमाम हादी (अ.स.) को प्रतिबंधित कर रखा था और उन्हें [[इमामिया|शियों]] के साथ संवाद करने से रोकते थे। इस कारण से, वह ज्यादातर वकील संगठन के माध्यम से शियों से जुड़े हुए थे, जिसमें इमाम के वकीलों का एक समूह शामिल था। उनके साथियों में [[अब्दुल अज़ीम हसनी]], [[उस्मान बिन सईद]], [[अय्यूब बिन नूह बिन दर्राज|अय्यूब बिन नूह]] और हसन बिन राशिद थे। | ||
सामर्रा में इमाम अली नक़ी (अ) का मक़बरा एक शिया तीर्थस्थल है। इमाम हादी और उनके बेटे [[इमाम हसन अस्करी (अ)]] के यहां दफ़्न होने के कारण इस दरगाह को [[असकरीयैन का रौज़ा]] कहा जाता है। 2004 और 2006 में आतंकवादी हमलों के दौरान अस्करीयैन का रौज़ा नष्ट हो गया था। इसे 2009 से 2014 तक ईरान के पवित्र स्थानों की देखभाल करने वाली संस्था के मुख्यालय द्वारा पुनर्निर्मित किया गया है। | सामर्रा में इमाम अली नक़ी (अ) का मक़बरा एक शिया तीर्थस्थल है। इमाम हादी और उनके बेटे [[इमाम हसन अस्करी (अ)]] के यहां दफ़्न होने के कारण इस दरगाह को [[असकरीयैन का रौज़ा]] कहा जाता है। 2004 और 2006 में आतंकवादी हमलों के दौरान अस्करीयैन का रौज़ा नष्ट हो गया था। इसे 2009 से 2014 तक ईरान के पवित्र स्थानों की देखभाल करने वाली संस्था के मुख्यालय द्वारा पुनर्निर्मित किया गया है। |