"इमाम अली नक़ी अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर
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शियों के 10वें इमाम ने अब्बासी ख़लीफा [[मोअतसिम]] की ख़िलाफ़त के दौरान अपनी इमामत के सात साल बिताए। [53] तारीख़े सियासी ग़ैबत इमामे दवाज़दहुम (अ) पुस्तक के लेखक जासिम हुसैन के अनुसार, मोतसिम इमाम अली नक़ी के समय में इमाम मुहम्मद तक़ी के समय की तुलना में शियों पर कम सख्त था। और वह अलवियों के प्रति अधिक सहिष्णु हो गया था, और उसके दृष्टिकोण में यह बदलाव आर्थिक स्थिति में सुधार और अलवियों की बग़ावत में कमी के कारण हुआ था। [54] इसके अलावा, 10वें इमाम की इमामत के समय से लगभग पांच साल, वासिक़ की खिलाफ़त के साथ, चौदह साल [[मुतवक्किल]] की खिलाफ़त के साथ, छह महीने मुस्तनसर की खिलाफ़त के साथ, दो साल नौ महीने मुस्तईन की खिलाफ़त के साथ, और आठ साल से अधिक समय तक [[मोअतज़]] की ख़िलाफ़त के साथ रहे। [55] | शियों के 10वें इमाम ने अब्बासी ख़लीफा [[मोअतसिम]] की ख़िलाफ़त के दौरान अपनी इमामत के सात साल बिताए। [53] तारीख़े सियासी ग़ैबत इमामे दवाज़दहुम (अ) पुस्तक के लेखक जासिम हुसैन के अनुसार, मोतसिम इमाम अली नक़ी के समय में इमाम मुहम्मद तक़ी के समय की तुलना में शियों पर कम सख्त था। और वह अलवियों के प्रति अधिक सहिष्णु हो गया था, और उसके दृष्टिकोण में यह बदलाव आर्थिक स्थिति में सुधार और अलवियों की बग़ावत में कमी के कारण हुआ था। [54] इसके अलावा, 10वें इमाम की इमामत के समय से लगभग पांच साल, वासिक़ की खिलाफ़त के साथ, चौदह साल [[मुतवक्किल]] की खिलाफ़त के साथ, छह महीने मुस्तनसर की खिलाफ़त के साथ, दो साल नौ महीने मुस्तईन की खिलाफ़त के साथ, और आठ साल से अधिक समय तक [[मोअतज़]] की ख़िलाफ़त के साथ रहे। [55] | ||
'''सामर्रा के लिये समन''' | |||
233 हिजरी में, [[मुतावक्किल अब्बासी]] ने इमाम हादी (अ.स.) को मदीना से सामर्रा आने के लिए मजबूर किया। [56] [[शेख़ मुफ़ीद]] ने मुतावक्किल की इस कार्रवाई को 243 हिजरी में उल्लेख किया है; [57] लेकिन इस्लामी इतिहास के शोधकर्ता रसूल जाफ़रियान के अनुसार, यह तारीख़ सही नहीं है। [58] कहा गया है कि इस कार्रवाई का कारण मदीना में अब्बासी सरकार के एजेंट अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद [59] और ख़लीफा द्वारा मक्का और मदीना में नियुक्त, [[इमामे जमाअत|मंडली के इमाम]] बरिहा अब्बासी की इमाम (अ) का ख़िलाफ़ चुग़ली है। और इसी तरह से [[इमामिया|शियों]] के 10वें [[इमाम]] के लिए लोगों की चाहत की भी खबरें बयान की गईं हैं। [61] | |||
मसऊदी की रिपोर्ट के अनुसार, बरिहा ने मुतावक्किल को लिखे एक पत्र में उनसे कहा: "यदि आप मक्का और मदीना चाहते हैं, तो अली बिन मुहम्मद को वहां से निकाल दें; क्योंकि वह लोगों को खुद को आमंत्रित करते हैं और उन्होने अपने चारों ओर एक बड़ी संख्या को इकट्ठा कर लिया है।" [62] तदनुसार, मुतावक्किल द्वारा यहया बिन हरसमा को इमाम हादी को सामर्रा में स्थानांतरित करने के लिए नियुक्त किया गया। [63] इमाम हादी (अ.स.) ने मुतावक्किल को एक पत्र लिखा और उसमें उन्होंने अपने खिलाफ़ कही गईं बातों को ख़ारिज कर दिया। [64] लेकिन जवाब में मुतावक्किल ने सम्मानपूर्वक उन्हें सामर्रा की ओर यात्रा करने के लिए कहा। [65] मुतावक्किल के पत्र का पाठ [[शेख़ मुफ़ीद]] और [[शेख़ कुलैनी]] की किताबों में उद्धृत किया गया है। [66] | |||
रसूल जाफ़रियान के अनुसार, मुतवक्किल ने इमाम हादी (अ.स.) को [[सामर्रा]] में स्थानांतरित करने की योजना इस तरह बनाई थी कि लोगों की संवेदनाएँ न भड़कें और इमाम की जबरन यात्रा का कोई ख़तरनाक परिणाम न निकले; [67] लेकिन सुन्नी विद्वानों में से एक सिब्ते बिन जौज़ी ने यहया बिन हरसमा की एक रिपोर्ट उल्लेख की है, जिसके अनुसार मदीना के लोग बहुत परेशान और उत्तेजित हो गये थे, और उनका संकट इस स्तर तक पहुंच गया कि वे विलाप करने और चिल्लाने लगे, जो मदीना में उससे पहले कभी नहीं देखा गया। [68] मदीना छोड़ने के बाद इमाम हादी (अ.स.) काज़मैन में दाखिल हुए और वहां के लोगों ने उनका स्वागत किया गया। [69] [[काज़मैन]] में, वह ख़ुजिमा बिन हाज़िम के घर गए और वहां से उन्हें सामर्रा की ओर भेज दिया गया। [70] |