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"इमाम अली नक़ी अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर

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वर्ष 1384 और 1386 शम्सी में, आतंकवादी विस्फोटों में अस्करीयैन के रौज़े के कुछ हिस्से नष्ट हो गए थे। [37] महामहिमों के तीर्थस्थलों के पुनर्निर्माण मुख्यालय ने 1394 शम्सी में उसके पुनर्निर्माण का काम पूरा किया। [38] तीर्थस्थल की ज़रीह का निर्माण [[आयतुल्लाह सीस्तानी]] के सहयोग से पूरा किया गया है। [39]
वर्ष 1384 और 1386 शम्सी में, आतंकवादी विस्फोटों में अस्करीयैन के रौज़े के कुछ हिस्से नष्ट हो गए थे। [37] महामहिमों के तीर्थस्थलों के पुनर्निर्माण मुख्यालय ने 1394 शम्सी में उसके पुनर्निर्माण का काम पूरा किया। [38] तीर्थस्थल की ज़रीह का निर्माण [[आयतुल्लाह सीस्तानी]] के सहयोग से पूरा किया गया है। [39]
==इमामत काल==
इमाम अली नक़ी (अ):
"लोग इस दुनिया में संपत्ति के साथ सौदा करते हैं और [[आख़िरत]] में अपने कार्यों के साथ।"
(अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 304।)
अली बिन मुहम्मद 220 हिजरी में आठ साल की उम्र में [[[इमामत]] पर पहुंचे। [40] सूत्रों के अनुसार, इमामत की शुरुआत में इमाम हादी (अ.स.) की कम उम्र के कारण [[इमामिया|शियों]] के बीच संदेह पैदा नहीं हुआ; क्योंकि उनके पिता [[इमाम मुहम्मद तक़ी (अ)]] की इमामत भी कम उम्र में ही शुरू हो गई थी। [41] [[शेख़ मुफ़ीद]] के अनुसार, नौवें इमाम के बाद, शियों ने, कुछ लोगों को छोड़कर, इमाम हादी (अ.स.) की इमामत स्वीकार कर ली। [42] उन्होने [[मूसा मुबरक़ा]] को अपना इमाम माना। हालाँकि, कुछ समय बाद, वे अपने विश्वास से वापस लौट आये और सामान्य शिया में शामिल हो गये। [43]
साद बिन अब्दुल्लाह अशअरी ने उन लोगों के इमाम हादी (अ.स.) के पास वापस लौट आने को उनके प्रति मूसा मुबारका की नापसंदगी का परिणाम माना है। [44] [[शेख़ मुफ़ीद]] [45] और [[इब्न शहर आशोब]], [46] ने इमाम हादी (अ.स.) की इमामत पर शियों की सहमति और उनके अलावा किसी अन्य द्वारा इमामत का दावा न करने को उनकी इमामत का एक मज़बूत सबूत माना है। [47] [[मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी]] और शेख़ मुफीद ने अपने कार्यों में उनकी इमामत के प्रमाण से संबंधित ग्रंथों को सूचीबद्ध किया है। [48]
इमाम अली नक़ी (अ):
"भ्रष्ट स्वभाव में बुद्धि (हिकमत) काम नहीं करती।"
(अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 304।)
इब्न शहर आशोब के अनुसार, शिया पिछले इमामों के कथनों के माध्यम से इमाम अली बिन मुहम्मद की इमामत से आगाह हुए; ऐसी हदीसों के ज़रिये से जो इस्माइल बिन मेहरान और अबू जाफ़र अशअरी जैसे रावियों द्वारा उल्लेख की गई हैं। [49]
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