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कर्बला घटना की पुरानी पेंटिंग
कर्बला घटना की पुरानी पेंटिंग

वाक़ेय ए करबला या वाक़ेय ए अशूरा 10 मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी को करबला मे होने वाली उस घटना को कहा जाता है जिसमें यज़ीद की बैअत न करने का कारण इमाम हुसैन अलैहिस सलाम और उनके साथी यज़ीदी सेना द्वारा शहीद किये गए। इमाम और उनके साथियों की शहादत के पश्चात उनके परिवार वालो को बंदी बनाया गया।

करबला की घटना इस्लाम के इतिहास की सबसे हृदय विदारक घटना मानी जाती है; इसलिए, शिया इसकी सालगिरह पर अपना सबसे बड़ा शोक समारोह आयोजित करते हैं और शोक मनाते हैं।

कर्बला की घटना 15 रजब वर्ष 60 हिजरी मे मुआविआ बिन अबू सुफ़ियान की मृत्यु और उसके बेटे यज़ीद के शासन की शुरुआत के साथ शुरू हुई, और कर्बला के कैदियों की मदीना वापसी के साथ समाप्त हुई। मदीना के गवर्नर ने यज़ीद के लिए इमाम हुसैन से निष्ठा प्राप्त करने की कोशिश की; हुसैन बिन अली ने निष्ठा से बचने के लिए रात में मदीना छोड़ दिया और मक्का की ओर चले गए। इमाम हुसैन (अ) के साथ इस यात्रा में परिवार वालो के अलावा बनी हाशिम और कुछ शिया भी थे।

इमाम हुसैन (अ) लगभग चार महीने मक्का में रहे। इस दौरान उन्हें कूफियों ने कूफ़ा आने का न्योता भेजा और दूसरी तरफ यजीद के गुर्गे हज के दौरान मक्का में उन्हें शहीद करने की योजना बना चुके थे। कूफ़ा शहर की स्थिति का आकलन और पत्रो को सुनिश्चत करने के लिए इमाम ने मुस्लिम बिन अक़ील को कूफ़ा और सुलेमान बिन रज़ीन को बसरा भेजा। यज़ीदी सैनिकों द्वारा हत्या के अंदेशे और कूफ़ा के लोगों के निमंत्रण की अपने सफ़ीर द्वारा पुष्टि को देखते हुए, उन्होंने 8 ज़िल हिज्जा को कूफ़ा की ओर यात्रा करने का चयन किया।

इमाम कूफ़ा पहुँचने से पहले ही कूफ़ियों द्वारा शपथ भंग और मुस्लिम की शहादत से अवगत हो गए, जिन्हें आपने कूफ़ा में स्थिति का आकलन करने के लिए कूफ़ा भेजा था। हालाँकि आपने अपनी यात्रा तब तक जारी रखी जब तक कि हुर बिन यज़ीद ने अपना रास्ता रोका तो आप कर्बला की ओर चले गए जहाँ आपका सामना कूफ़ा के गवर्नर उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद की सेना से हुआ। इस सेना का नेतृत्व उमर बिन सअद के हाथों में था। 10 मोहर्रम आशूर के दिन दोनो सेनाओ के बीच युद्ध हुआ, जिसमे इमाम हुसैन (अ), उनके भाई अब्बास बिन अली (अ) और 6 महीने के अली असगर सहित बनी हाशिम के 17 जवान और 50 से अधिक असहाब शहीद हुए। उमर बिन सअद की सेना ने शहीदो के शरीर पर घोड़े दौड़ाए। आशूर के दिन अस्र के समय यज़ीद की सेना ने इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमो पर हमला करके उन्हे आग लगा दी। शिया मुसलमान इस रात को शामे गरीबा के नाम से याद करते हैं। इमाम सज्जाद (अ) ने बीमारी के कारण युद्ध मे भाग नही लिया अतः आप जीवित बचे रहे। हज़रत ज़ैनब (स) और अहले-बैत की महिलाए बच्चो सहित दुश्मन के हाथों बंदी बना लिए गए। उमर बिन सअद की सेना ने शहीदो के सरों को भालों पर उठाया और बंदीयों को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के दरबार मे पेश किया और वहा से उन्हे यज़ीद के पास शाम (सीरिया) भेजा गया।

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