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क़ौम ए सबा

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(सबा के लोग से अनुप्रेषित)

क़ौम ए सबा (फ़ारसीः قوم سَبَأْ ) यमन में रहने वाली अरब जनजातियों में से एक जनजाति थी, जो टिप्पणीकारों के अनुसार, ईश्वर की नेमतो के संबंध मे कुफ्र और पैग़म्बरों के इनकार के कारण दैवीय दंड का शिकार होना पड़ा। इन को लोगों को उपजाऊ ज़मीने, फलदार बगीचे, सुरक्षित सड़कें और हानिकारक कीड़ों की अनुपस्थिति जैसी नेमतें प्राप्त थी; लेकिन कृतघ्नता (नेमतो की ना शुकरी) के कारण मारिब बांध के ढहने से उनकी उपजाऊ भूमि और हरे-भरे बगीचे नष्ट हो गए और वहां के लोग अरब प्रायद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में बिखर गए।

क़ुरआन में सूर ए सबा में क़ौम ए सबा के इतिहास की चर्चा की गई है। टिप्पणियों और ऐतिहासिक स्रोतों ने क़ौम ए सबा को सैन्य शक्ति, निर्माण और विकास में रुचि, और मूर्तियों और सूर्य की इबादत करने जैसी विशेषताओं के साथ वर्णित किया है। इन लोगों ने ज्यामिति और खगोल विज्ञान में अपने कौशल से सिरवाह नामक मंदिर और मारिब बांध जैसी अद्भुत संरचनाएं बनाई थीं।

क़ौम ए सबा और मल्का ए सबा की कहानी का उल्लेख सूर ए सबा की आयत 19-15 और सूर ए नम्ल की आयत 44-22 में किया गया है।

परिचय एवं पृष्ठभूमि

क़ौम ए सबा प्राचीन अरब जनजातियों में से एक थे और सबा बिन यश्जुब या यस्जुब के वंशज थे [नोट १] जो ईसा मसीह से पहले यमन में रहते थे[] शोधकर्ताओं के अनुसार, पहले वे अरब प्रायद्वीप के उत्तर में रहते थे। फिर वे अरब प्रायद्वीप के दक्षिण में चले गए और मारिब जैसे क्षेत्रों में बस गए, जिसे बाद में सबा की भूमि के रूप में जाना जाने लगा।[]

क़ुरआन में सबा नामक एक सूरह है, जो क़ौम ए सबा के इतिहास से संबंधित है। इस सूरह की आयत 15 से 19 में बताया गया है कि इन लोगों को अपनी भूमि और अपने हरे बगीचों में अल्लाह की नेमतो से लाभ हुआ, लेकिन नेमत पर अविश्वास करने के बाद, वे अरिम की बाढ़ से नष्ट हो गए। इसके अलावा, सूर ए नम्ल की आयत न 22 से 44 में, क़ौम ए सबा और मल्का ए सबा (बिलक़ीस) की शक्तिशाली सरकार के बारे मे हुद-हुद की खबर, मल्का ए सबा की पैग़म्बर सुलेमान (अ) के साथ मुलाक़ात और उनके ईमान लाने के बारे में उल्लेख किया गया है।

कुछ टिप्पणीकारों ने उल्लेख किया है कि क़ौम ए सबा की महान सभ्यता कई शताब्दियों तक अज्ञात थी और इसकी खोज 19वीं शताब्दी ईस्वी में क़ुरआन की अनदेखी खबरों और क़ुरआन के वैज्ञानिक चमत्कार के रूप में है।[] कुछ टिप्पणीकारों के अनुसार क़ौम ए सबा के संबंध मे क़ुरआन के दो सूर ए नम्ल और सबा मे आने वाला तज़्केरा क़ौम ए सबा के जीवन दो ऐतिहासिक काल से संबंधित है।,[] इसलिए अरिम की बाढ़ के बाद क़ौम ए सबा का विलुप्त होना हज़रत सुलेमान (अ) के युग के सदियों बाद हुआ इसमें हज़रत सुलेमान (अ) के समय मे मल्का ए सबा के लोग शामिल नहीं हैं।[]

कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, तौरैत में एक ऐतिहासिक राष्ट्र के रूप में "सबा" नाम का कई बार उल्लेख किया गया है।[]

विशेषताएँ

ऐतिहासिक और टिप्पणी स्रोतों में, क़ौम ए सबा की कई विशेषताओं के बारे में बताया गया है, जिसमें उनकी सैन्य शक्ति, उनकी भूमि का विकास और उनकी मूर्तिपूजा शामिल है।

एकेश्वरवादीयो और गैर-एकेश्वरवादीयो पर आधारित समाज

क़ुरआन ने क़ौम ए सबा के एक ऐसे समूह को परिचित कराया है जो पुनरुत्थान के दिन और मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास करते थे[] और ईश्वर की प्रभुता में भी विश्वास करते थे[] ऐतिहासिक और व्याख्यात्मक स्रोतों के अनुसार, क़ौम ए सबा मे अन्य कुछ लोग ऐसे भी थे जो या तो खुदा के अस्तित्व पर ही विश्वास नही करते थे या मंदिरों का निर्माण करके, वे सूर्य, चंद्रमा, सितारों और हिरण और बछड़ों जैसे जानवरों की इबादत करते थे[] और "यग़ूत" नामक मुर्ती की पूजा करते थे।[१०] धार्मिक शोधकर्ता बी आज़ार शिराज़ी के अनुसार, क़ौम ए सबा का मानना था कि गाय के दो सींग, जो अर्धचंद्र के आकार में होते है, जोह़रा नामी सितारा के प्रतीक है।[११] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि यहूदी धर्म भी क़ौम ए सबा मे लोकप्रिय था।[१२]

सैन्य श्रेष्ठता होना

बहुत से ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार क़ौम ए सबा का शासन यमन में सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली सरकारों में से एक थी, जो अरबों, रूमीयो और यूनानीयो के बीच प्रसिद्ध थी और सैन्य और रक्षा के मामले में, उनके पास एक विशाल और पूरी तरह से कमांडिंग सेना थी।[१३]

निर्माण, विकास और शिक्षा पर ध्यान

क़ौम ए सबा ने निर्माण और विकास पर विशेष ध्यान दिया,[१४] यह मुद्दा सबा सरकार के जीवित लेखों में परिलक्षित हुआ है, जिसमें पुनर्निर्माण, निर्माण और सुधार जैसी अभिव्यक्तियाँ विकास और प्रगति पर उनका ध्यान दर्शाती हैं।[१५] कुछ शोधकर्ताओं के कार्यों में सिरवाह शहर का प्रसिद्ध मंदिर और मारिब मंदिर (मूर्ती पूजा का प्रतीक) और मारिब बांध क़ौम ए सबा की सभ्यता का निर्माण माना जाता है, जो लोगों की ज्यामिति, खगोल विज्ञान और इंजीनियरिंग की दक्षता को इंगित करता है।[१६]

नेमतो को नकारना सज़ा का कारण

मुख्य लेख: कुफ़रान ए नेमत

उल्लेख हुआ है कि सबा की भूमि भौतिक और आध्यात्मिक आशीर्वाद से भरी थी[१७] जिसमें बांध के निर्माण के साथ, समृद्ध कृषि और कई फलों के बगीचे थे[१८] इस भूमि का वर्णन करते हुए लिखा है कि लोगो के दो बड़े बगीचे ऐसे आपस मे जुड़े हुए थे जिनकी लंबाई को पार करने के लिए दस दिन की यात्रा करने की आवश्यकता थी।[१९]

यह भी लिखा है कि गर्मी और सर्दी में गर्मी और ठंड परेशान करने वाली नहीं थी।[२०] इसके लोगो की यात्रा शांतिपूर्ण हुआ करता है यात्रा करते समय चोरों और शिकारी जानवरों से सुरक्षित रहते थे।[२१] और अल्लाह की दी गई सभी नेमतो के सबब उन्हे यात्रा मे ज़ादे राह की ज़रूरत नही होती थी।[२२] टिप्पणीकारो के अनुसार, क़ौम ए सबा ने अल्लाह की दी हुई नेमतो पर कुफ़्र किया खुदा फ़रामोशी मे लिप्त हो गए।[२३] उन्होने पैग़म्बरो का नकारा और अल्लाह का शुक्र नहीं किया।[२४] आपस मे घमंड करते थे और वर्ग मतभेदों को बढ़ावा दिया।[२५] इन कृतघ्नताओं के कारण दैवीय दंड (अरिम की बाढ़) आई।[२६]

अरिम की बाढ़ संपूर्ण राष्ट्र का विनाश

मुख्य लेख: अरिम की बाढ़

टीकाकारों के अनुसार दैवीय दंड के समय चूहों ने मारिब बांध की आंतरिक संरचना को कमजोर कर बांध को तोड़ दिया था। इस घटना के कारण भारी बाढ़ आई, जिससे मवेशी नष्ट हो गए और हरे-भरे बगीचे कड़वे और अनुपयोगी फलों वाले पेड़ों में बदल गए।[२७] इस घटना के बाद, क़ौम ए सबा अपनी भूमि से तितर-बितर हो गई और अरब प्रायद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में चली गई।[२८] ग़स्सान जनजाति सीरिया की ओर, क़ुज़ाआ जनजाति मक्का की ओर, असद जनजाति बहरीन की ओर, अनमार जनजाति यसरब की ओर, ख़ुज़ाआ (कुष्ठ रोग) जनजाति मक्का में तेहामा नामक क्षेत्र और अज़्द जनजाति ओमान में स्थानांतरित हो गई[२९] यह फैलाव इतना व्यापक था कि यह अरब लोगों के बीच एक कहावत बन गई: "तफ़र्रक़ू अयादी सबन"; यानी सबा के हाथ बिखर गए।[३०]

फ़ुटनोट

  1. यूसुफ़ी, मौसूआ अल तारीख अल इस्लामी, नशर मजमा अल फ़िक्र अल इस्लामी, भाग 1, पेज 99; क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 89, 84 औदी, क़ौम ए सबा, पेज 684
  2. क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 89 औदी, क़ौम ए सबा, पेज 684
  3. रज़ाई, तफ़सीर क़ुरआन मेहेर, 1387 शम्सी, भाग 17, पेज 46; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 18,पेज 69
  4. क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 88
  5. क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 87
  6. करीमयान व हूशंगी, बिलक़ीस, पेज 73 और 74
  7. सूर ए सबा, आयत न 21
  8. हाशमी रफ़संजानी, फ़रहंग क़ुरआन, 1383 शम्सी, भाग 15, पेज 521
  9. क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 90 बलाग़ी, क़िसस क़ुरआन, 1381 शम्सी, पेज 379; क़ुर्तुबी, अल जामेअ अल अहकाम अल क़ुरआन, 1364 शम्सी, भाग 13, पेज 184
  10. तिबरी, जामेअ अल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, 1412 हिजरी, भाग 29, पेज 62
  11. बी आज़ार शिराज़ी, बासतान शनासी व जुग़राफ़ीयाई तारीखी क़िसस क़ुरआन, 1382 शम्सी, पेज 325; बलाग़ी, क़िसस क़ुरआन, 1381 शम्सी, पेज 379
  12. क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 90
  13. हाशमी रफ़संजानी, फ़रहंग क़ुरआन, 1383 शम्सी, भाग 15, पेज 513; दस्तूरी, अक़वाम हलाक शुदे, 1381 शम्सी, पेज 137; क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 85, 85 और 88; बलाग़ी, क़िसस क़ुरआन, 1381 शम्सी, पेज 377; बी आज़ार शिराज़ी, बासतान शनासी व जुग़राफ़ीयाई तारीखी क़िसस क़ुरआन, 1382 शम्सी, पेज 316
  14. क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 85
  15. दस्तूरी, अक़वाम हलाक शुदे, 1381 शम्सी, पेज 137; क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 85
  16. उमूदी, क़ौम ए सबा, पेज 686 बलाग़ी, क़िसस क़ुरआन, 1381 शम्सी, पेज 379
  17. मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, पेज 58
  18. तबरेसी, मजमा उल बयान, 1431 हिजरी, भाग 8, पेज 604; रज़ाई, तफसीर क़ुरआन मेहेर, 1387 शम्सी, भाग 17, पेज 41; मकारिम शिराज़ी, क़िस्सेहाए क़ुरआन, 1386 शम्सी, पेज 507
  19. तबरेसी, तफ़सीर जवामेउल जामेअ, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 346; शाह अब्दुल अज़ीमी, तफ़सीर इस्ना अशरी, 1363 शम्सी, भाग 10, पेज 522
  20. तबरेसी, मजमा उल बयान, 1431 हिजरी, भाग 8, पेज 605
  21. मकारिम शिराज़ी, क़िस्सेहाए क़ुरआन, 1386 शम्सी, पेज 509
  22. तबरेसी, तफ़सीर जवामेउल जामेअ, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 348; तबरेसी, मजमा उल बयान, 1431 हिजरी, भाग 8, पेज 605
  23. मिन्हज अल सादेक़ीन फ़ी इल्ज़ाम अल मुख़ालेफ़ीन, तेहरान, भाग 7, पेज 361; मकारिम शिराज़ी, क़िस्सेहाए क़ुरआन, 1386 शम्सी, पेज 509
  24. मिन्हज अल सादेक़ीन फ़ी इल्ज़ाम अल मुख़ालेफ़ीन, तेहरान, भाग 7, पेज 361
  25. दस्तूरी, अक़वाम हलाक शुदे, 1381 शम्सी, पेज 141; ख़ुसरवानी, तफ़सीर खुसरवी, 1390 हिजरी, भाग 7, पेज 80; मकारिम शिराज़ी, क़िस्सेहाए क़ुरआन, 1386 शम्सी, पेज 509
  26. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 18, पेज 59; क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 91; अलमीज़ान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, भाग 16, पेज 364
  27. तबरेसी, मजमा उल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, भाग 8, पेज 605; शाह अब्दुल अज़ीमी, तफ़सीर इस्ना अशरी, 1363 शम्सी, भाग 10, पेज 523; हाशमी रफ़सनजानी, फ़रहंग क़ुरआन, 1383 शम्सी, भाग 15, पेज 511 और 512; क़ानेई व असदी, क़ौम ए सबा, पेज 191 मकारिम शिराज़ी, क़िस्सेहाए क़ुरआन, 1386 शम्सी, पेज 508
  28. अलहमवी, मोअजम अल बुलदान, बैरुत, भाग 3, पेज 181
  29. तूसी, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरूत, भाग 8, पेज 389; काशानी, तफसीर मिन्हज अल सादेक़ीन फ़ी इलज़ाम अल मुख़ालेफ़ीन, भाग 7, पेज 364
  30. अलहमवी, मोअजम अल बुलदान, बैरुत, भाग 3, पेज 181; काशानी, तफसीर मिन्हज अल सादेक़ीन फ़ी इलज़ाम अल मुख़ालेफ़ीन, भाग 7, पेजन364


नोट

  1. कुछ लोग "सबा" को यमनी अरबों के पिता का नाम मानते हैं, और अन्य इसे यमन की एक भूमि का नाम मानते हैं। टिप्पणीकारों ने सुझाव दिया है कि यह नाम पहले एक व्यक्ति के लिए था और बाद में इसे उसके लोगों और भूमि के लिए संदर्भित किया गया था (तबरसी, मजम अल-बयान, 1431 हिजरी, भाग 8, पेज 604; मकारेम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 18, पेज 56 और 57)

स्रोत

  • बलाग़ी, सदरुद्दीन , क़िसस क़ुरआन, तेहरान, अमीर कबीर, 1381 शम्सी
  • बी आज़ार शिराज़ी, अब्दुल करीम, बास्तान शनासी व जुग़राफ़ीयाई तारीखी क़िसस क़ुरआन, तेहरान, दफ्तर नशर फ़रहंग इस्लामी, 1382 शम्सी
  • जाफ़री, याक़ूब, क़ौम ए सबा, सद्दे मारिब व सैल ए अरिम, दर मजल्ले दरस हाए अज़ मकतब इस्लाम, क्रमांक 695, फ़रवरदीन, 1398 शम्सी
  • हुसैनी हमदानी, मुहम्मद, अनवार दरखशान दर तफसीर क़ुरआन, शोधः मुहम्मद बाक़िर बहबूदी, तेहरान, लुत्फ़ी, पहला संस्करण, 1404 हिजरी
  • अल हमवी, याक़ूत बिन अब्दुल्लाह, मोअजम अल बुलदान, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी
  • ख़ुसरवानी, अली रज़ा, तफसीर खुसरवी, शोधः मुहम्मद बाक़िर बहबूदी, तेहरान, किताब फ़रोशी इस्लामीया, पहला संस्करण, 1390 हिजरी
  • दस्तूरी, मुज़गान, अनुवाद अक़वाम हलाक शुदे, तेहरान, इंतेशारात कीहान, 1381 शम्सी
  • रज़ाई इस्फ़हानी, मुहम्मद अली, तफ़सीर क़ुरआन मेहेर, क़ुम, पुजूहिश हाए तफ़सीर व उलूम क़ुरआन, पहला संस्करण 1387 शम्सी
  • शाह अब्दुल अज़ीमी, हुसैन, तफ़सीर इस्ना अशरी, तेहरान, नशर मीक़ात, पहला संस्करण 1363 शम्सी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, मोअस्सेसा अल आलमी लिल मतबूआत, दूसरा संस्करण, 1390 हिजरी
  • तबरेसी, फ़ज़्ल बिन हसन, तफसीर जवामे उल जामेअ, तस्हीह, अबुल कासिम गुरजी, क़ुम, मरकज़ मुदीरीयत हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, पहला संस्करण, 1412 हिजरी
  • तबेरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, संशोधन फ़ज़्लुल्लाह यज़्दी तबातबाई, हाशिम रसूली, तेहरान, नासिर ख़ुसरो, तीसरा संस्करण 1372 शम्सी
  • तबरी, मुहम्मद बिन जुरैर, जामेअ उल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, बैरूत, दार उल मारफ़ा, पहला संस्करण 1412 हिजरी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिबयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, संशोधन अहमद हबीब आमोली, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, पहला संस्करण
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  • क़ानेई, अली व अली असअदी, क़ौम ए सबा, दर दानिश नामे दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, भाग 15, क़ुम, मोअस्सेसा बूस्तान किताब, 1382 शम्सी
  • क़ुर्तुबी, मुहम्मद बिन अहमद, अल जामेअ अल अहकाम अल क़ुरआन, तेहरान, नासिर ख़ुस्रो, पहला संस्करण, 1364 शम्सी
  • काशानी, फ़त्हुल्लाह, मिन्हज अल सादेक़ीन फ़ी इल्ज़ाम अल मुख़ालेफ़ीन, तेहरान, किताब फ़रोशी इस्लीया, पहला संस्करण
  • करीमीयान, मुहम्मद बाक़िर व लैला हूशंगी, बिलक़ीस, दर दानिश नामे जहान इस्लामी, भाग 4, तेहरान, बुनयाद दाएरतुल मआरिफ़ इस्लामी, 1377 शम्सी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, दस्वां संस्करण, 1371 शम्सी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, क़िस्सेहाए क़ुरआन, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1386 शम्सी
  • यूसुफ़ी, मुहम्मद हादी, मौसूआ अल तारीख़ अल इस्लामीया, क़ुम, मजमअ अल फ़िक्र अल इस्लामी