कूफ़ा मे इमाम सज्जाद (अ) का उपदेश
- शाम (सीरिया) में इमाम सज्जाद (अ) के उपदेश भ्रमित न हों।
कूफ़ा में इमाम सज्जाद (अ) का उपदेश | |
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विषय | कर्बला की घटना के बाद और कूफ़ा में कैद के दौरान इमाम सज्जाद (अ) का भाषण |
शिया स्रोत | अल ऐहतेजाज, अल तबरेसी, अल लोहूफ़ |
कूफ़ा में इमाम सज्जाद (अ) का उपदेश (अरबीःخطبة الإمام سجاد (ع) في الكوفة) इमाम सज्जाद (अ) के उस उपदेश को कहा जाता है जो इमाम (अ) ने कर्बला की घटना के बाद और कूफ़ा में कैद के दौरान दिया था। जब कर्बला के बंदी कूफा पहुंचे तो हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश के बाद, फ़ातिमा सुग़रा (स) और हज़रत उम्मे कुलसूम [नोट १] तथा इमाम सज्जाद (अ) ने भी इस शहर के लोगों की निंदा मे उपदेश दिए।[१] इस उपदेश की सबसे महत्वपूर्ण सामग्री निम्नलिखित है:
- इमाम हुसैन (अ) का उत्पीड़न
- कूफ़ा के लोगो की बेवफ़ाई और धोखा
- इमाम सज्जाद (अ) की जबान से इस्लाम के पैग़म्बर (स) द्वारा कुफ़ा के लोगो का मुआख़ेज़ा
- इमाम हुसैन (स) की शान में मर्सिये के कुछ अशार
कहा जाता है कि लोग इमाम सज्जाद (अ) के उपदेश को सुनकर प्रभावित होकर रोने लगे और इमाम (अ) को प्रतिशोध लेने की सलाह दी; लेकिन इमाम (अ) ने उन्हें उनकी वादा खिलाफ़ी याद दिलाते हुए फ़रमाया, "मैं तुम से बस यह चाहता हूं कि ना हमारी मदद करे और ना ही हम से जंग करें।)"[२]
कुछ का मानना है कि कूफा में उस समय के हालात, कूफ़ा के लोगो को हुकूमति लोगो का भय और हुकूमति गुर्गो की सख्तियो को देखते हुए कूफ़ा मे दिए गए उपदेशो का स्वीकार करना मुश्किल है। इसके अलावा, इस उपदेश के वाक्यांश और दमिश्क़ की मस्जिद मे दिए गए उपदेश के वाक्यांशो से अधिक समानता रखते है। इसलिए यह संभावना है कि शायद यह वही उपदेश है लेकिन समय बीतने के साथ-साथ रावीयो ने इन दोनो को एक साथ मिलाया है।[३]
कूफ़ा में इमाम सज्जाद के उपदेश का पाठ और अनुवाद
उपदेश का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | उपदेश का अरबी उच्चारण |
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क़ाला हुज़ैम बिन शरीक अल-असदी खरज़ा ज़ैनुल आबेदीन (अ) एलन नासे व औमा इलैहिम अन उस्कुतू फ़सकतू व होवा क़ाऐमुन फ़हम्दल्लाहा व अस्ना अलैहे व सल्ले अला नबीयेही सुम्मा क़ाला[४] | हुज़ैम इब्न शरीक अल-असदी कहता हैं: उस समय, इमाम सज्जाद (अ) लोगों की ओर गए और उन्हें इशारा करते हुए शांत रहने के लिए कहा और लोग शांत हो गए और अल्लाह की हम्द करने के बाद रसूल खुदा (स) पर दुरूद भेजा और लोगो को संबोधित करते हुए कहा: | قالَ حُذَیم بن شَریک الأسدی خَرَجَ زَیْن العابِدین (ع) إلی النّاسِ وأومَی إلَیْهِم أنْ اُسْکُتوا فَسَکتوا و هو قائِمٌ فَحمد اللهَ وأثْنی عَلیه و صَلّی عَلی نَبِیّه.ثُمّ قال |
अय्योहन्नासो मन अरफ़नी फ़क़द अरफ़नी व मन लम यअरिफ़नी फ़अना अली इब्नुल हुसैनिल मज़बूहे बेशत्तिल फ़राते मिन ग़ैरे ज़हलिन वला तेरातिन, अनब्नो मननतोहेका हरीमोहू व सोलेबा नईमोहू वनतोहेबा मालोहू व सोबेया अयालोहू, अनब्नो मन कोतेला सबरन, फ़कफ़ा बेज़ालेका फ़ख़्रन | हे लोगों! जो कोई हमें जानता है, वह जानता है कि मैं कौन हूं, और जो हमें नहीं जानता, वह जान ले कि मैं अली इब्न हुसैन (अ) हूं, जिसे फ़रात के तट पर बिना किसी अपराध या पाप के और बिना किसी का खून बहाए ज़ब्हा कर दिया गया। मैं उस व्यक्ति का बेटा हूं जिसकी पवित्रता (हुरमत) भंग की गई और उनकी संपत्ति लूट ली गई और उनके परिवार को बंदी बना लिया गया और मैं उस व्यक्ति का बेटा हूं जिसे धैर्य की हालत मे मार डाला गया और यही सम्मान हमारे लिए काफी है। | أَیُّها النّاسُ مَنْ عَرَفَني فَقَدْ عَرَفَني و مَنْ لَمْ یَعْرِفْني فَأنا عليُّ بْنُ الحُسَیْنِ المَذْبُوحِ بِشَطِّ الْفُراتِ مِنْ غَیْرِ ذَحْل وَ لا تِرات، اَنَا ابْنُ مَنِ انْتُهِکَ حَرِیمُهُ وَ سُلِبَ نَعِیمُهُ وَ انْتُهِبَ مالُهُ وَ سُبِیَ عِیالُهُ، اَنَا ابْنُ مَنْ قُتِلَ صَبْراً، فَکَفى بِذلِکَ فَخْراً |
अय्योहन्नासो! नाशदतोकुम बिल्लाहे हल तअलमूना अन्नकुम कतबतुम ऐला अबि व खदअतोमूहो, व आयततोमूहो मिन अनफ़ोसेकोमुल अहदा वल मीसाक़ा वल बैअता सुम्मा क़ातलतोमूहो व ख़ज़लतोमूहो? फतब्बअन लकुम मा क़द्दमतुम लेअंफोसेकुम व सौआहन लेरायेकुम, बेअय्यते ऐने तनज़ोरूना ऐला रसूलिल्लाहे (स) यक़ूलो लकुमः क़तलतुम इतरती वनतहकतुम हुरमती फ़लस्तुम मिन उम्मती? | हे लोगों! तुम्हे ईश्वर की सौगंध है; क्या तुम्हें याद है कि तुमने मेरे पिता को पत्र लिखकर उन्हें आमंत्रित किया था और बाद में उन्हें धोखा दिया? उनके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और उनके प्रतिनिधि के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और फिर उन्हें महत्वपूर्ण समय और परिस्थितियों में अकेला छोड़ दिया और उनसे लड़ना शुरू कर दिया और उनका अपमान किया। तुम पर धिक्कार है, तुम्हारा विनाश हो, तुमने परलोक को कितना बुरा तोशा फ़राहम किया, तुम्हारा विश्वास और चरित्र कितना बुरा है। तुम किस नजर से पैग़म्बर (स) को देखोगे जब वह कहेंगे कि तुमने मेरी इतरत को मार डाला और मेरी पवित्रता को भंग कर दिया, तो तुम अब हमारी उम्मत से नहीं हो। | اَیُّهَا النّاسُ! ناشَدْتُکُمْ بِاللهِ هَلْ تَعْلَمُونَ اَنَّکُمْ کَتَبْتُمْ اِلى اَبِی وَ خَدَعْتُمُوهُ، وَ اَعْطَیْتُمُوهُ مِنْ اَنْفُسِکُمُ الْعَهْدَ وَ الْمِیثاقَ وَ الْبَیْعَة ثُمَّ قاتَلْتُمُوهُ وَ خَذَلُْتمُوهُ؟ فَتَبّاً لَکُمْ ما قَدَّمْتُمْ لاَِنْفُسِکُمْ وَ سَوْاهً لِرَاْیِکُمْ، بِاَیَّةِ عَیْنِ تَنْظُرُونَ اِلى رَسُولِ اللهِ(ص) یَقُولُ لَکُمْ: قَتَلْتُمْ عِتْرَتِی وَ انْتَهَکْتُمْ حُرْمَتِی فَلَسْتُمْ مِنْ اُمَّتِی؟ |
क़ालाः फ़रतफ़आत अस्वातुन नासे बिल बुकाए व यदऊ बअजोहुम बअज़न हलकतुम व मा तअलमूना। फ़क़ाला अली इब्न अल हुसैनः रहेमल्लाहो इमरअन क़ब्ला नसीहती व हफ़ेज़ा वसीय्यती फ़िल्लाहे व फ़ी रसूलेहि व फ़ी अहले बैतेही, फ़इन्ना लना (फ़ी रसूलिल्लाहे उस्वतुन हसनता)[५] | हुज़ैम कहता हैं: जब इमाम की तकरीर यहाँ तक पहुँची तो लोग रोने लगे और सब एक दूसरे से कह रहे थे कि हम सब हलाक हो गये और हमें पता भी नहीं चला! तब अली इब्न अल-हुसैन (अ) ने फ़रमाया: अल्लाह की दया उस व्यक्ति पर हो जो मेरी वसीयत को केवल अल्लाह, उसके रसूल और रसूल के परिवार को खुश करने के लिए मान ले! क्योंकि हमारे लिए अल्लाह के रसूल की जिंदगी में भलाई है। | قالَ: فَارْتَفَعَتْ أصْواتُ النّاس بِالْبُکاءِ و یَدْعُو بَعضهم بعضاً هَلکْتُم و ماتَعْلمُون.فَقال عَلیُّ بْن الحُسَین: رَحم اللهُ اِمرأًٌ قَبْلَ نَصیحَتی و حَفِظَ وَصیّتی فِی اللهِ و فی رَسُولِه و فی أهلِ بیتِه، فإنّ لَنا «فِی رَسُولِ اللهِ أُسْوَة حَسَنَة |
फ़क़ालू बेअजमऐहिम नहनो कुल्लोना यबना रसूलिल्लाहे सामेऊना मुतीऊना हाफ़ेज़ूना लेज़ेमामेका, ग़ैरा ज़ाहेदीना फ़ीका व ला राग़ेबीना अन्का फ़मुरना बेअमरेका, रहमकल्लाहो फ़इन्ना हरबुन लेहरबेका व सिलमुन लेसिमेका लेनाख़ज़न्ना तरतका व तरतना मिम्मन ज़लमका व ज़लमना। | सभी ने कहा, हे अल्लाह के रसूल के पुत्र, हम आपके अनुयायी हैं और आपसे किए गए वादे से बंधे रहेंगे, हमारा दिल आपकी ओर आकर्षित है, अल्लाह आप पर रहमत करे! यदि आप आज्ञा दें, तो जो कोई आप से युद्ध करेगा, हम उस से युद्ध करेंगे, और हर उस व्यक्ति से सुलह करेंगे जिसके साथ आप सुलह करेंगे और आपके खून का प्रतिशोध उस व्यक्ति से लेंगे जिसने आप और हम पर अत्याचार किया है। | فَقالُوا بِأجْمَعهم نَحْنُ کُلُّنا یَاابْنَ رَسُول الله سامِعُون مُطِیعُون حافِظُون لِذِمامِک، غَیْر زاهِدین فیکَ و لا راغِبینَ عَنْکَ فَمُرْنا بأمْرِکَ، رَحمکَ الله فإنّا حَرْبٌ لِحَرْبِکَ و سِلْمٌ لِسِلْمِکَ لِنَأخَذَنَّ ترتک وترتنا مِمَّنْ ظَلَمَکَ و ظَلَمَنا |
फ़क़ाला अली इब्न अल हुसैन (अ) हय्हात! अय्योहल अज़रतुल मकरतो! हीला बैनकुम व बैना शहवाते अंफ़ोसेकुम, अतोरीदूना अन तातू इलय्या कमा आतयतुम ऐला आबाई मिन कब्लो, कल्ला व रब्बिर राकेसाते इला मिन्नी, फ़इन्नल जुरहा लम्मा यंदमिल, क़ोतेला अबी बिल अम्से व अहलो बैतेहि माअहू, फ़लम युनसेनी सुकला रसूलिल्लाहे (स) व सुक्ला अबी व बनी अबी व जद्दी, शक़्क़ा लहाज़ेमी व मरारतोहू बैना हनाजेरी व हलक़ी, व ग़ोससोहू तजरी फ़ी फ़ेराशे सदरी, व मस्अलती अन ला तकूनू लना वला अलैना। | अली बिन अल-हुसैन (अ) ने फ़रमाया: विश्वासघाती और बेवफा लोगों पर धिक्कार है! आपकी साजिशें आपके और आपकी इच्छाओं के बीच आ गई हैं, जैसे आपने मेरे पिता की मदद की, क्या आप उसी तरह मेरी भी मदद करोगे? ऐसा कभी नहीं होगा। अल्लाह की कसम राक़ेसात [नोट २] कल मेरे पिता और उनके परिवार की हत्या से मेरे दिल पर जो घाव लगा था वह अभी तक ठीक नहीं हुआ है, मेरे पिता अभी तक पवित्र पैगंबर की याद और उनके दाग को नहीं भूले हैं मेरे पिता और उनकी संतान के दाग ने मेरे बाल सफेद कर दिए हैं और इसकी कड़वाहट अभी भी मेरे गले के बीच में है और इसका दुख मेरे सीने में है, इसलिए मैं आप लोगों से प्रार्थना करता हूं कि आप मेरी मदद न करें और न ही हमसे लड़ें! | فقال علی بن الحسین ع: هَیْهات! اَیُّهَا الْغَدَرَةُ الْمَکَرَةُ! حِیلَ بَیْنَکُمْ وَ بَیْنَ شَهَواتِ اَنْفُسِکُمْ، اَتُرِیدُونَ اَنْ تَاْتُوا اِلَیَّ کَما اَتَیْتُمْ اِلى آبایِی مِنْ قَبْلُ، کَلاّ وَ رَبِّ الرّاقِصاتِ اِلى مِنى، فَاِنَّ الْجُرْحَ لَمّا یَنْدَمِلْ، قُتِلَ اَبِی بِالاَْمْسِ وَ اَهْلُ بَیْتِهِ مَعَهُ، فَلَمْ یُنْسِنِی ثُکْلَ رَسُولِ اللهِ(ص) وَثُکْلَ اَبِی وَ بَنِی اَبِی وَ جَدِّی، شَقَّ لَهازِمی وَ مَرارَتُهُ بَیْنَ حَناجِرِی وَ حَلْقِی، وَ غُصَصُهُ تَجْرِی فِی فِراشِ صَدْرِی، وَ مَسْاَلَتِی اَنْ لا تَکُونُوا لَنا وَ لاعَلَیْنا |
सुम्मा क़ाला (अ)
ला ग़रवा इन क़ोतेलल हुसैनो व शैख़ोहू *** क़द काना ख़ैरन मिन हुसैने व अकरमा फ़ला तफ़रहू या अहलल कूफ़ते बिल लज़ी *** ओसीबा हुसैनुन काना ज़ालेका आज़मा क़तीलुन बे शत्तिल नहरे नफ़सी फ़ेदावोहू *** जज़ाउल लज़ी अरदाहो नारो जहन्नमा |
फिर फ़रमाया:
यदि हुसैन (अ) मारे गये तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उनके पिता अली (अ) उनसे बेहतर थे और वह भी मारे गये; ऐ कूफ़ा वालों! हुसैन पर जो विपत्ति आई, उससे खुश न होना यह बहुत बड़ी मुसीबत है; उस पर अपना जीवन बलिदान कर दूं जो फ़रात नदी के तट पर शहीद हुआ और उसकी हत्या का दण्ड नरक है। |
ثم قال ع:
لا غَرْوَ اِنْ قُتِلَ الْحُسَیْنُ وَ شَیْخُهُ*** قَدْ کانَ خَیْراً مِنْ حُسَیْن وَ اَکْرَما فَلا تَفْرَحُوا یا اَهْلَ کُوفَهَ بِالَّذِی *** اُصیبَ حُسَیْنٌ کانَ ذلِکَ اَعْظَما قَتیلٌ بِشَطِّ النَّهْرِ نَفْسی فِداوُهُ *** جَزاءُ الَّذِی اَرْداهُ نارُ جَهَنَّمـا |
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फ़ुटनोट
- ↑ शहीदी, जिंगदानी अली इब्न अल हुसैन (अ), 1385 शम्सी, पेज 56
- ↑ मकारिम शिराज़ी, आशूरा रीशेहा, अंगीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, पहला संस्करण, पेज 576
- ↑ शहीदी, जिंगदानी अली इब्न अल हुसैन (अ), 1385 शम्सी, पेज 57
- ↑ अल तबरेसी, अल ऐहतेजाज, 1422 हिजरी, भाग 2, पेज 119; सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़, 1353 शम्सी, पेज 119; इब्न नेमा हिल्ली, मुसीर अल अहज़ान, 1406 हिजरी, पेज 89
- ↑ सूर ए अहज़ाब, आयत न 21
नोट
- ↑ उम्मे कुलसूम सुगरा अर्थात (सय्यदा नफ़ीसा) है, क्योकि उम्मे कुलसूम कुबरा का कर्बाल की घटना से कई वर्षो पहले इंतेक़ाल हो गया था (शहीदी, जिंगदानी अली इब्न अल हुसैन (अ), 1385 शम्सी, पेज 56)
- ↑ राक़ेसात, उस ऊंट को कहा जाता है जिस पर बैठा कर हाजीयो को मक्के से मिन्ना ले जाया जाता था (बाबाई आमोलि, पयाम आवरान कर्बला, 1384 शम्सी, पेज 39)
स्रोत
- इब्न नेमा हिल्ली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मुसीर अल अहज़ान व मुनीर सोबुल अल अशजान, क़ुम, इंतेशारात मदरसा इमाम महदी (अ), 1406 हिजरी
- बाबाई आमोली, इब्राहीम, पयाम आवरान कर्बला, क़ुम, इंतेशारात नजाबत, 1384 शम्सी
- सय्यद इब्न ताऊस, अली बिन मूसा, अल लोहूफ़ अला क़्त्लित तोफ़ूफ़, तेहरान, नशर जहान, 1353 शम्सी
- शहीदी, सय्यद जाफ़र, जिंदगानी अली इब्न अल हुसैन (अ), तेहरान, दफ़्तर नशर फ़रहंग इस्लामी, तेरहवां संस्करण, 1385 शम्सी
- तबरेसी, अहमद बिन अली, अल एहतेजाज अला अहले अल लुजाज, शोधः इब्राहीम अल बहादुरी, क़ुम, दार अल उस्वा लिल तबाअते वल नशर, तीसरा संस्करण, 1422 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, आशूरा रीशेहा, अंगीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, तंज़ीम जमई अज़ फ़ोज़ोला, पहला संस्करण