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"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर

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===इमाम जवाद (अ.स.)===
===इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.)===
[[चित्र:کاظمین10.jpg|35٪|अंगूठाकार|इमाम काज़िम और इमाम जवाद (अ.स.) के हरम (काज़मैन)]]
[[चित्र:کاظمین10.jpg|35٪|अंगूठाकार|इमाम काज़िम और इमाम जवाद (अ.स.) के हरम (काज़मैन)]]
'''विस्तृत लेखः इमाम जवाद (अ.स.)'''
'''विस्तृत लेखः इमाम मुहम्मद तक़ी (अ)'''
   
   
मुहम्मद बिन अली, इमाम जवाद और इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.) शियो के नौवें इमाम है। इमाम रज़ा और [[सबीका नौबिया]] के बेटे मदीना मे 195 हिजरी के पवित्र रमज़ान मे पैदा हुए।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344 </ref> और 220 हिजरी को मोअतसिम अब्बासी के आदेश से मामून की बेटी और अपकी पत्नी [[उम्मुल फ़ज़्ल]] ने आपको ज़हर देकर बगदाद मे आपको शहीद कर दिया<ref>तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 379</ref>अपने दादा शियो के सातवें इमाम, इमाम काज़िम (अ.स.) के किनारे आपको दफ़न किया गया।<ref>112- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 295; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345</ref>
मुहम्मद बिन अली, इमाम जवाद और इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) शियो के नौवें इमाम है। इमाम रज़ा और [[सबीका नौबिया]] के बेटे मदीना मे 195 हिजरी के पवित्र रमज़ान मे पैदा हुए।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344 </ref> और 220 हिजरी को मोअतसिम अब्बासी के आदेश से मामून की बेटी और अपकी पत्नी उम्मुल फ़ज़्ल ने आपको ज़हर देकर बगदाद मे आपको शहीद कर दिया<ref>तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 379</ref>अपने दादा शियो के सातवें इमाम, इमाम काज़िम (अ) के किनारे आपको दफ़न किया गया।<ref>112- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 295; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345</ref>


इमाम जवाद (अ.स.) मात्र आठ साल की उम्र में<ref>जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472</ref> अपने पिता के बाद अल्लाह के हुक्म और अपने पूर्वजो की वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 345</ref> आपकी कम उम्र मे इमाम होने पर कई शियाओं ने शक किया। कुछ ने तो इमाम रज़ा के भाई अब्दुल्लाह बिन मूसा को इमाम कहा, और अन्य लोग [[वाक़्फ़िया]] संप्रदाय में शामिल हो गए। लेकिन उनमें से अधिकांश ने नस्से इमामत और इल्मी परीक्षा लेकर इमाम जवाद (अ.स.) की इमामत को स्वीकार कर लिया।<ref>जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472-474</ref>आपकी इमामत के 17 साल<ref>116- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344</ref> की अवधि मे मामून और मोअतसिम ख़लीफ़ा थे।<ref>तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344</ref>
इमाम जवाद (अ) मात्र आठ साल की उम्र में<ref>जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472</ref> अपने पिता के बाद अल्लाह के हुक्म और अपने पूर्वजो की वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 345</ref> आपकी कम उम्र मे इमाम होने पर कई शियाओं ने शक किया। कुछ ने तो इमाम रज़ा के भाई अब्दुल्लाह बिन मूसा को इमाम कहा, और अन्य लोग [[वाक़्फ़िया]] संप्रदाय में शामिल हो गए। लेकिन उनमें से अधिकांश ने नस्से इमामत और इल्मी परीक्षा लेकर इमाम जवाद (अ.स.) की इमामत को स्वीकार कर लिया।<ref>जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472-474</ref>आपकी इमामत के 17 साल<ref>116- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344</ref> की अवधि मे मामून और मोअतसिम ख़लीफ़ा थे।<ref>तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344</ref>  
 
मामून ने 204 हिजरी मे आप पर और आपके शियाओ पर नज़र रखने के लिए इमाम जवाद को बगदाद - जो उस समय खिलाफत की राजधानी थी - बुलाया और अपनी बेटी उम्मुल फ़ज़्ल से शादी करा दी।<ref>118- जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 478</ref> कुछ समय पश्चात इमाम मदीना लौट आए और मामून के शासनकाल के अंत तक मदीना में रहे। मामून की मृत्यु पश्चात मोअतसिम ने खिलाफत की बागडोर संभाली और 220 हिजरी में इमाम को बगदाद बुलाया और निगरानी में रखा, और अंत में मोअतसिम के उकसाने पर आपकी पत्नि ने जहर दिया गया और शहीद कर दिया गया।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 225; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 480-482</ref>  


मामून ने 204 हिजरी मे आप पर और आपके शियाओ पर नज़र रखने के लिए इमाम जवाद को बगदाद - जो उस समय खिलाफत की राजधानी थी - बुलाया और अपनी बेटी उम्मुल फ़ज़्ल से शादी करा दी।<ref>118- जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 478</ref> कुछ समय पश्चात इमाम मदीना लौट आए और मामून के शासनकाल के अंत तक मदीना में रहे। मामून की मृत्यु पश्चात मोअतसिम ने खिलाफत की बागडोर संभाली और 220 हिजरी में इमाम को बगदाद बुलाया और निगरानी में रखा, और अंत में मोअतसिम के उकसाने पर आपकी पत्नि ने जहर दिया गया और शहीद कर दिया गया।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 225; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 480-482</ref>


===इमाम अली नक़ी (अ)===
===इमाम अली नक़ी (अ)===
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