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"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर

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मूसा बिन जाफ़र, इमाम मूसा काज़िम (अ.स.), आपकी उपाधि काज़िम और [[बाबुल हवाइज]] शियो के सातवें इमाम है। इमाम सादिक़ (अ.स.) और हमीदा के बेटे आपका जन्म मक्का और मदीना के बीच के क्षेत्र [[अबूवा]] मे 128 हिजरी में हुआ।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324</ref>
मूसा बिन जाफ़र, इमाम मूसा काज़िम (अ.स.), आपकी उपाधि काज़िम और [[बाबुल हवाइज]] शियो के सातवें इमाम है। इमाम सादिक़ (अ.स.) और हमीदा के बेटे आपका जन्म मक्का और मदीना के बीच के क्षेत्र [[अबूवा]] मे 128 हिजरी में हुआ।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324</ref>


इमाम काज़िम (अ.स.) अपने पिता इमाम सादिक़ (अ.स.) के बाद उनकी वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215</ref> सातवें इमाम<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324</ref> की 35 साल की इमामत की अवधि मे मंसूर, हादी, महदी और हारून जैसे अब्बासी खलीफ़ा रहे।<ref>इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294</ref> यह समय अब्बासी खलीफाओ के उरूज का समय था जोकि इमाम काज़िम (अ.स.) और शियाओं के लिए एक कठिन समय था। इसलिए उन्होंने उस समय की सरकार के खिलाफ तक़य्या इख्तियार करते हुए शियाओं को भी तक़य्या करने का आदेश दिया।<ref>देखेः जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 384, 385 और 398</ref> 179 हिजरी की 20 शव्वाल को जब हारून हज के लिए मक्का गया तो उसने इमाम काज़िम को मदीना मे गिरफ्तार करके बसरा और बसरा से बगदाद स्थानांतरित करने का आदेश दिया।<ref>कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 476; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 402-404</ref> 183 हिजरी में सिंदी बिन शाहिक द्वारा बगदाद जेल में जहर देकर शहीद कर दिया गया  और मक़ाबिरे कुरैश<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294</ref> नामक स्थान पर, जो अब काज़मैन में है<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 221</ref> दफ़नाया गया।
इमाम काज़िम (अ.स.) अपने पिता इमाम सादिक़ (अ.स.) के बाद उनकी वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215</ref> सातवें इमाम<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324</ref> की 35 साल की इमामत की अवधि मे मंसूर, हादी, महदी और हारून जैसे अब्बासी खलीफ़ा रहे।<ref>इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294</ref> यह समय अब्बासी खलीफाओ के उरूज का समय था जोकि इमाम काज़िम (अ.स.) और शियाओं के लिए एक कठिन समय था। इसलिए उन्होंने उस समय की सरकार के खिलाफ [[तक़य्या]] इख्तियार करते हुए शियाओं को भी तक़य्या करने का आदेश दिया।<ref>देखेः जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 384, 385 और 398</ref> 179 हिजरी की 20 शव्वाल को जब हारून हज के लिए मक्का गया तो उसने इमाम काज़िम को मदीना मे गिरफ्तार करके बसरा और बसरा से बगदाद स्थानांतरित करने का आदेश दिया।<ref>कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 476; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 402-404</ref> 183 हिजरी में सिंदी बिन शाहिक द्वारा बगदाद जेल में जहर देकर शहीद कर दिया गया  और मक़ाबिरे कुरैश<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294</ref> नामक स्थान पर, जो अब काज़मैन में है<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 221</ref> दफ़नाया गया।




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