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"सूरा ए निसा": अवतरणों में अंतर

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<big>'''یا أَیهَا الَّذینَ آمَنُوا خُذُوا حِذْرَکُمْ فَانْفِرُوا ثُباتٍ أَوِ انْفِرُوا جَمیعاً'''</big>
<big>'''یا أَیهَا الَّذینَ آمَنُوا خُذُوا حِذْرَکُمْ فَانْفِرُوا ثُباتٍ أَوِ انْفِرُوا جَمیعاً'''</big>


(या अय्योहल लज़ीना आमनू ख़ुज़ू हिज़्रकुम फ़न्फ़ेरू सोबातिन अविन्फ़ेरू जमीअन)
(या अय्योहल लज़ीना आमनू ख़ुज़ू हिज़्रकुम फ़न्फ़ेरू सोबातिन अविन्फ़ेरू जमीअन) (आयत 71)


अनुवाद: ऐ ईमान लाने वालों, अपनी तैयारी (दुश्मन के खिलाफ) रखो और कई समूहों में या एक समूह के रूप में दुश्मन की ओर बढ़ो।
अनुवाद: ऐ ईमान लाने वालों, अपनी तैयारी (दुश्मन के खिलाफ) रखो और कई समूहों में या एक समूह के रूप में दुश्मन की ओर बढ़ो।
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(वल्लाती तख़ाफ़ूना नोशूज़हुन्ना फ़एज़ूहुन्ना वहजोरूहुन्ना फ़िल मज़ाजेए वज़रेबूहुन्ना फ़इन अतअनकुम फ़ला तब्ग़ू अलैहिन्ना सबीलन इन्नल्लाहा काना अलीयन कबीरा (34) व एनिमराअतुन ख़ाफ़त मिन बअलेहा नोशूज़न अव एअराज़न फ़ला जोनाहा अलैहेमा अन युस्लेहा बैनहोमा सुल्हन वस्सुलहो ख़ैरुन व ओहज़ेरतिल अन्फ़ोसुश्शोह्हा व इन तोहसेनू वत्तक़ू फ़इन्नल्लाहा काना बेमा तअमलूना ख़बीरा)  
(वल्लाती तख़ाफ़ूना नोशूज़हुन्ना फ़एज़ूहुन्ना वहजोरूहुन्ना फ़िल मज़ाजेए वज़रेबूहुन्ना फ़इन अतअनकुम फ़ला तब्ग़ू अलैहिन्ना सबीलन इन्नल्लाहा काना अलीयन कबीरा (34) व एनिमराअतुन ख़ाफ़त मिन बअलेहा नोशूज़न अव एअराज़न फ़ला जोनाहा अलैहेमा अन युस्लेहा बैनहोमा सुल्हन वस्सुलहो ख़ैरुन व ओहज़ेरतिल अन्फ़ोसुश्शोह्हा व इन तोहसेनू वत्तक़ू फ़इन्नल्लाहा काना बेमा तअमलूना ख़बीरा)  


अनुवाद:
अनुवाद: ..और जिन महिलाओं को तुम अवज्ञा करने से डरते हो, उन्हें [पहले] नसीहत दो और [फिर] कमरे में उनसे दूर रहो, और (यदि यह काम नहीं करता है) तो उन्हें मारो; फिर यदि वे तुम्हारी इताअत करें [अब] उनके लिए [फटकारने के लिए] कोई रास्ता नहीं है, कि भगवान महान है।/और यदि किसी स्त्री को अपने पति की असंगति या विचलन का भय हो, उन दोनों के लिए एक-दूसरे के साथ शांति के माध्यम से मेल-मिलाप की तलाश करना कोई पाप नहीं है; वह समझौता बेहतर है. और लालच की आत्माओं में उपस्थिति [और प्रभुत्व] है; और यदि तुम भलाई करते हो और परहेज़गारी करते हो, तो जो कुछ तुम करते हो, उसकी ख़बर ईश्वर को है।
 
सूर ए निसा की आयत 34 के दूसरे भाग और आयत 128 को आय ए ऩुशूज़ कहा जाता है। नुशूज़ एक [[न्यायशास्त्र|न्यायशास्त्रीय]] शब्द है जो एक महिला द्वारा यौन आज्ञाकारिता और अपने पति की अनुमति के बिना घर से बाहर जाने जैसे मामलों में अपने पति की आज्ञाकारिता के प्रति अवज्ञा को संदर्भित करता है, साथ ही अपने पति की असंगति और पत्नी के अधिकारों का सम्मान न करना भी है। हालांकि, कुछ [[हदीस|हदीसों]] में, एक आदमी का अपनी पत्नी को [[तलाक़]] देने के फैसले को भी [[नुशूज़]] कहा गया है।[20]
 


* <big>'''आय ए नफ़ी ए सबील'''</big>
* <big>'''आय ए नफ़ी ए सबील'''</big>
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<big>'''وَلَن يَجْعَلَ اللَّـهُ لِلْكَافِرِ‌ينَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا...'''</big>
<big>'''وَلَن يَجْعَلَ اللَّـهُ لِلْكَافِرِ‌ينَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا...'''</big>


(व लन यज्अल्लाहो लिल काफ़ेरीना अलल मोमिनीना सबीला)
(व लन यज्अल्लाहो लिल काफ़ेरीना अलल मोमिनीना सबीला) (आयत 141)
 
अनुवाद:...और ईश्वर ने कभी भी अविश्वासियों (काफ़िरो) के लिए विश्वासियों (मोमिनों) पर हावी होने का कोई रास्ता नहीं बनाया है।
 
सूर ए निसा की आयत 141 के अंतिम भाग को आय ए नफ़ी ए सबील कहा जाता है। यह आयत विश्वासियों पर अविश्वासियों के किसी भी वर्चस्व को नकारती है और विश्वासियों से अविश्वासियों के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए कहती है।[19] विद्वानों ने [[क़ाएदा ए नफ़ी ए सबील]] को सिद्ध करने के लिए इस [[आयत]] का प्रयोग किया है। [20]


अनुवाद:
== आयात उल अहकाम ==


== आयात उल अहकाम ==
== आयात उल अहकाम ==
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