"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर
→इमाम अली (अ)
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शियो के पहल इमाम अबू तालिब के पुत्र और [[फात्मा बिन्ते असद]] के सपुत्र अलि इब्ने अबि तालिब जोकि इमाम अली के नाम और उपाधि [[अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब|अमीरुल मोमेनीन]] है<ref>मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 495; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 197-180</ref> उनका जन्म [[13 रजब]] सन् 30 आमुल फ़ील (हाथीयो वाला सालः आमुल फ़ील इस लिए कहा जाता है क्योकि इस साल अबरह्र ने [[खाना ए काबा]] पर हमला किया था) और पैगंबर पर ईमान लाने वाले पहले व्यक्ति थे। [31] और हमेशा पैगंबर के साथ साथ रहते थे और फ़ात्मा पैगंबर की बेटी के साथ उनका विवाह हुआ था।<ref>मुफ़ीद अर-इरशाद, भाग 1, पेज 6</ref> | शियो के पहल इमाम अबू तालिब के पुत्र और [[फात्मा बिन्ते असद]] के सपुत्र अलि इब्ने अबि तालिब जोकि इमाम अली के नाम और उपाधि [[अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब|अमीरुल मोमेनीन]] है<ref>मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 495; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 197-180</ref> उनका जन्म [[13 रजब]] सन् 30 आमुल फ़ील (हाथीयो वाला सालः आमुल फ़ील इस लिए कहा जाता है क्योकि इस साल अबरह्र ने [[खाना ए काबा]] पर हमला किया था) और पैगंबर पर ईमान लाने वाले पहले व्यक्ति थे। [31] और हमेशा पैगंबर के साथ साथ रहते थे और फ़ात्मा पैगंबर की बेटी के साथ उनका विवाह हुआ था।<ref>मुफ़ीद अर-इरशाद, भाग 1, पेज 6</ref> | ||
हालाँकि | हालाँकि पैग़म्बर ने अली (अ) को कई मौकों पर अपने तत्काल उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया था, जिसमें [[ग़दीर का दिन|ग़दीर]] का दिन भी शामिल था,<ref>मुहम्मदी, शरहे कश्फ़ुल मुराद, पेज 427-436</ref> लेकिन उनके स्वर्गवास पश्चात [[सक़ीफ़ा बनी साएदा]] के वाक़ेया मे [[अबू बक्र बिन अबी कुहाफ़ा]] को [[मुसलमानों]] के खलीफा के रूप में निष्ठा का वचन दिया।<ref>तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 138-139</ref> 25 साल की सहनशीलता, सशस्त्र विद्रोह से बचने और इस्लामी समाज की समीचीनता और एकता (तीन ख़लीफ़ाओं के शासन की अवधि) का पालन करने के लिए 35 हिजरी में लोगों ने अली (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और उन्हें खिलाफत के लिए चुना।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 201</ref> अली (अ) की खिलाफत जोकि लगभग चार साल और नौ महीने तक चली, तीन गृह युद्ध हुए: [[जंगे जमल]], [[जंगे सिफ़्फीन]] और [[जंगे नहरवान]]। इसलिए हज़रत के शासन का अधिकांश समय आंतरिक विवादों को सुलझाने में व्यतीत होता था।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 201-202</ref> | ||
40 हिजरी के | [[40 हिजरी]] के [[रमज़ान की 19 तारीख़]] को [[मस्जिदे कूफ़ा]] की [[मेहराब]] मे [[फ़ज्र की नमाज]] मे इब्ने मुलजिम मुरादी के हाथो इमाम अली (अ) के सर पर जरबत लगी और [[21 रमज़ान]] को शहादत हो गई और आपको नजफ में दफनाया गया।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 1, पेज 9; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 154</ref> हज़रत अली (अ) के अनगिनत गुण है।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 1, पेज 29-66; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 182; हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत-तंज़ील, भाग 1, पेज 21-31</ref> [38] [[इब्ने अब्बास]] के अनुसार हज़रत अली (अ.स.) की प्रशंसा में 300 से अधिक आयतें हैं।<ref>क़नदूज़ी, यनाबी उल-मवद्दत, दार उल-उस्वा, भाग 1, पेज 377</ref> | ||
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