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"शिया धर्म के सिद्धांत": अवतरणों में अंतर
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'''शिया धर्म के सिद्धांत''', शिया धर्म की मूलभूत मान्यताओं में एकेश्वरवाद (तौहीद), नबूवत (ईश्वर दूत), क़यामत, न्याय (अद्ल) और इमामत शामिल हैं। शियों के अनुसार, पहले तीन सिद्धांतों (एकेश्वरवाद, भविष्यवाणी और पुनरुत्थान) में से किसी को भी नकारने जो धर्म के सिद्धांत हैं, से इंसान काफ़िर हो जाता है, लेकिन न्याय के दो सिद्धांतों (अद्ल और इमामत) में से किसी पर भी विश्वास न रखने से शिया धर्म से तो ख़ारिज हो जायेंगे लेकिन इस्लाम से ख़ारिज नही होगें। इमामत, शिया धर्म के सिद्धांतों के तहत होने के कारण वह उन्हे अन्य इस्लामी संप्रदायों से अलग करता है और इसी कारणवश उन्हें इमामिया कहा जाता है। न्याय के सिद्धांत में विश्वास ने | '''शिया धर्म के सिद्धांत''', [[शिया]] धर्म की मूलभूत मान्यताओं में एकेश्वरवाद ([[तौहीद]]), [[नबूवत]] (ईश्वर दूत), [[क़यामत]], न्याय (अद्ल) और [[इमामत]] शामिल हैं। शियों के अनुसार, पहले तीन सिद्धांतों (एकेश्वरवाद, भविष्यवाणी और पुनरुत्थान) में से किसी को भी नकारने जो धर्म के सिद्धांत हैं, से इंसान काफ़िर हो जाता है, लेकिन न्याय के दो सिद्धांतों (अद्ल और इमामत) में से किसी पर भी विश्वास न रखने से शिया धर्म से तो ख़ारिज हो जायेंगे लेकिन [[इस्लाम]] से ख़ारिज नही होगें। इमामत, शिया धर्म के सिद्धांतों के तहत होने के कारण वह उन्हे अन्य इस्लामी संप्रदायों से अलग करता है और इसी कारणवश उन्हें [[इमामिया]] कहा जाता है। न्याय के सिद्धांत में विश्वास ने मोअतज़ेला को अशायरा से अलग कर दिया है और इसी वजह से शियों और मोअतज़ेला को अदलिया का नाम दिया गया है। | ||
==स्थान== | ==स्थान== | ||
शिया धर्म के सिद्धांतों की स्थिति को पांच सिद्धांत (एकेश्वरवाद, नबूवत, क़यामत, इमामत और न्याय) कहा जाता है जो शिया धर्म का आधार बनाते हैं। इन सब सिद्धांतों पर विश्वास करने से व्यक्ति शिया बन जाता है और इनमें से किसी पर विश्वास न करने से वह शिया धर्म से बाहर हो जाता है। बेशक, एकेश्वरवाद, नबूवत और क़यामत के तीन सिद्धांत धर्म के सिद्धांतों में से हैं, और उनमें से किसी पर भी विश्वास नहीं करने से इंसान काफ़िर और इस्लाम से बाहर हो जाता है। | शिया धर्म के सिद्धांतों की स्थिति को पांच सिद्धांत (एकेश्वरवाद, नबूवत, क़यामत, इमामत और न्याय) कहा जाता है जो शिया धर्म का आधार बनाते हैं। इन सब सिद्धांतों पर विश्वास करने से व्यक्ति शिया बन जाता है और इनमें से किसी पर विश्वास न करने से वह शिया धर्म से बाहर हो जाता है। बेशक, एकेश्वरवाद, नबूवत और क़यामत के तीन सिद्धांत धर्म के सिद्धांतों में से हैं, और उनमें से किसी पर भी विश्वास नहीं करने से इंसान [[काफ़िर]] और इस्लाम से बाहर हो जाता है। | ||
==विशेष सिद्धांत== | ==विशेष सिद्धांत== | ||
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इमामत और न्याय (अद्ल), शिया धर्म के दो विशिष्ट सिद्धांत हैं: | इमामत और न्याय (अद्ल), शिया धर्म के दो विशिष्ट सिद्धांत हैं: | ||
===इमामत=== | ===इमामत=== | ||
शियों का अक़ीदा है कि [[इमामत]] (इस्लामी समाज का नेतृत्व और पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.स) का उत्तराधिकारी) ईश्वर की ओर से दिया गया पद है। और ईश्वर की ओर से पैगंबर (स) के बारह पुत्रों को इस पद पर नियुक्त किया गया है। उन इमामों के नाम इस प्रकार हैं: इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.), इमाम हुसैन (अ.स.), इमाम सज्जाद (अ.स.), इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.), इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.), इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) इमाम अली रज़ा (अ.स.), इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.), इमाम अली नक़ी (अ.स.), इमाम हसन अस्करी (अ.स.), इमाम महदी (अ.स.) | शियों का अक़ीदा है कि [[इमामत]] (इस्लामी समाज का नेतृत्व और [[पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.स)]] का उत्तराधिकारी) ईश्वर की ओर से दिया गया पद है। और ईश्वर की ओर से पैगंबर (स) के बारह पुत्रों को इस पद पर नियुक्त किया गया है। उन इमामों के नाम इस प्रकार हैं: इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.), इमाम हुसैन (अ.स.), इमाम सज्जाद (अ.स.), इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.), इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.), इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) इमाम अली रज़ा (अ.स.), इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.), इमाम अली नक़ी (अ.स.), इमाम हसन अस्करी (अ.स.), इमाम महदी (अ.स.) | ||
===इमामत धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है=== | ===इमामत धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है=== | ||
मुहम्मद हुसैन | मुहम्मद हुसैन काशिफ़ुल ग़ेता की किताब असलुश शिया वा उसूलुहा के अनुसार, यह मुख्य इमामत है जो शिया को अन्य इस्लामी संप्रदायों से अलग करता है। इसी वजह से बारह इमामों की इमामत को मानने वालों को इमामिया के नाम से जाना जाता है। इमामत शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है और जो कोई इसे स्वीकार नहीं करेगा वह शिया धर्म के घेरे से बाहर हो जाएगा। | ||
===अद्ल (न्याय)=== | ===अद्ल (न्याय)=== | ||
विश्वास व अक़ीदा है कि ईश्वर, सृष्टि की व्यवस्था (तकवीन ऐतेबार) और कानून व्यवस्था (तशरीई ऐतेबार) दोनों में, सही व्यवहार करता है और उत्पीड़न (ज़ुल्म) नहीं करता है। अदलिया (शिया और | विश्वास व अक़ीदा है कि ईश्वर, सृष्टि की व्यवस्था (तकवीन ऐतेबार) और कानून व्यवस्था (तशरीई ऐतेबार) दोनों में, सही व्यवहार करता है और उत्पीड़न (ज़ुल्म) नहीं करता है। अदलिया (शिया और [[मोअतज़ेला]]) चीजों के अच्छे और बुरे (हुस्न व क़ुब्ह) को तर्कसंगत (अक़्ली) मानते हैं और मानते हैं कि ईश्वर न्यायी (आदिल) है। इसका मतलब है कि वह चीजों की अच्छाई के आधार पर कार्य करता है, और अन्याय नहीं करता है क्योंकि यह बुराई है। इसके विपरीत, अशरियों का मानना है कि न्यायपूर्ण व्यवहार की कसौटी ईश्वर की कार्रवाई है, और यह कि ईश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा और न्यायपूर्ण है, भले ही वह मनुष्यों की निगाह में क्रूर हो। | ||
===न्याय (अद्ल) धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है=== | ===न्याय (अद्ल) धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है=== | ||
शिया दार्शनिक मिस्बाह यज़्दी (1313-1399 शम्सी) के अनुसार, धर्मशास्त्र में इसके महत्व के कारण न्याय को शिया और मोअतज़ेला धर्मों के सिद्धांतों में से एक माना जाता है। इसके अलावा, शिया विचारक मुर्तज़ा मोताह्हरी (1358-1298) मानते हैं कि न्याय शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है, इसका कारण मुसलमानों के बीच मानव स्वतंत्रता और अधिकार से इनकार जैसे विश्वासों का उदय था, जिसके अनुसार मजबूर आदमी को दंड देना परमेश्वर के न्याय के अनुकूल नहीं था। शिया और मोअतज़ेला मानव विवशता को ईश्वरीय न्याय के विपरीत मानते थे, और इसी कारण से वे अदलिया प्रसिद्ध हुए। | शिया दार्शनिक [[मिस्बाह यज़्दी]] (1313-1399 शम्सी) के अनुसार, धर्मशास्त्र में इसके महत्व के कारण न्याय को शिया और मोअतज़ेला धर्मों के सिद्धांतों में से एक माना जाता है। इसके अलावा, शिया विचारक [[मुर्तज़ा मोताह्हरी]] (1358-1298) मानते हैं कि न्याय शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है, इसका कारण मुसलमानों के बीच मानव स्वतंत्रता और अधिकार से इनकार जैसे विश्वासों का उदय था, जिसके अनुसार मजबूर आदमी को दंड देना परमेश्वर के न्याय के अनुकूल नहीं था। शिया और मोअतज़ेला मानव विवशता को ईश्वरीय न्याय के विपरीत मानते थे, और इसी कारण से वे अदलिया प्रसिद्ध हुए। | ||
==सामान्य सिद्धांत== | ==सामान्य सिद्धांत== | ||
* [[एकेश्वरवाद]]: ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास, उसके एक होने और उसका कोई साथी न होने का अक़ीदा। | * [[एकेश्वरवाद]]: ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास, उसके एक होने और उसका कोई साथी न होने का अक़ीदा। | ||
* [[नवूबत]]: इस बात का विश्वास रखना कि ईश्वर ने कुछ लोगों को पैग़बर (दूत) बना कर इंसान के मार्गदर्शन के लिये भेजा है। पहले पैग़बर हज़रत आदम (अ.स.) और अंतिम पैग़बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.स) हैं। | * [[नवूबत]]: इस बात का विश्वास रखना कि ईश्वर ने कुछ लोगों को पैग़बर (दूत) बना कर इंसान के मार्गदर्शन के लिये भेजा है। पहले पैग़बर [[हज़रत आदम (अ.स.)]] और अंतिम पैग़बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.स) हैं। | ||
* [[क़यामत]]: यह विश्वास कि मनुष्य मृत्यु के बाद फिर से जीवित होगा और उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लिया जाएगा। | * [[क़यामत]]: यह विश्वास कि मनुष्य मृत्यु के बाद फिर से जीवित होगा और उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लिया जाएगा। | ||