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सय्यद मुहम्मद हसन हुसैनी (1230-1312 हिजरी) को मिर्ज़ा शीराजी, मिर्ज़ा बुज़ुर्ग और मिर्ज़ा मुजद्दिद के नाम से जाना जाता है, वह 14वीं शताब्दी में शिया मराजेए तक़लीद में से एक थे जिन्होंने तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़तवा जारी किया था।
1243 शम्सी में शेख़ मुर्तज़ा अंसारी की मृत्यु के बाद, मिर्ज़ा शिराज़ी मरजा बने और अपने जीवन के अंत तक वह तीस वर्षों तक शियों के एकमात्र मरजए तक़लीद थे। वह शेख़ अंसारी के ख़ास और पसंदीदा छात्र थे। हौज़ा इल्मिया क़ुम के संस्थापक शेख़ अब्दुल करीम हायरी, आखुंद ख़ुरासानी, शेख़ फ़ज़लुल्लाह नूरी, मिर्ज़ा नाइनी और मुहम्मद तकी शिराज़ी जिन्हें मिर्ज़ा II के नाम से जाना जाता है, उनके छात्रों में थे। मिर्जा ने कई न्यायशास्त्रीय और सैद्धांतिक ग्रंथों को लिखा और कुछ न्यायशास्त्रीय और सैद्धांतिक किताबों ख़ासकर शेख़ अंसारी की अपने मुक़ल्लिदों के लिए लिखी गई किताब पर पर हाशिया लिखा है। इसी तरह से, उनके एकत्रित किये गये फ़तवे और उनके न्यायशास्त्र के पाठों और सिद्धांतों को तालीक़े (नोट्स) भी प्रकाशित की गई है।
मिर्ज़ा शिराज़ी को सामर्रा के हौज़ा इल्मिया और मकतब के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि वह शिया और सुन्नी को एक साथ लाने (इत्तेहाद) के उद्देश्य से सामर्रा चले गये और इस शहर में बस गये। सामर्रा में मदरसा, हुसैनिया, पुल, बाज़ार और स्नानागार का निर्माण उनकी सार्वजनिक सेवाओं और जन सुविधाओं में से थे।
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