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"हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा": अवतरणों में अंतर

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===अल्लाह और रसूल की दृष्टि में स्थान और मंज़िलत===
===अल्लाह और रसूल की दृष्टि में स्थान और मंज़िलत===
शिया और सुन्नी विद्वान इस बात पर सहमत है कि हज़रत ज़हरा (स) के साथ मित्रता और प्रेम को अल्लाह ने [[मुसलमानों]] पर फ़र्ज़ क़रार दिया है। विद्वानों ने [[सूर ए शूरा]] की आयत संख्या 23, जो [[आय ए मवद्दत]] के नाम से प्रसिद्ध है, का हवाला देते हुए हज़रत फ़ातिमा (स) की दोस्ती और मोहब्बत को अनिवार्य और जरूरी माना है। मवद्दत वाली आयत में नबी (स) की नबूवत और रिसालत की उजरत आप (स) के अहले-बैत (अ) से मवद्दत और मोहब्बत करना बताया गया है। हदीसों के प्रकाश में इस आयत में अहले-बैत (अ) फ़ातिमा (स), अली (अ), हसन (अ) और हुसैन (अ) है। [126] मवद्दत की आयत के अलावा पैगंबर (स) से कई हदीसें बयान की गई हैं, जिनके अनुसार अल्लाह तआला फ़ातिमा (स) की नाराजगी से नाराज और उनकी खुशी से खुश होता है। [127]
शिया और सुन्नी विद्वान इस बात पर सहमत है कि हज़रत ज़हरा (स) के साथ मित्रता और प्रेम को अल्लाह ने [[मुसलमानों]] पर फ़र्ज़ क़रार दिया है। विद्वानों ने [[सूर ए शूरा]] की आयत संख्या 23, जो [[आय ए मवद्दत]] के नाम से प्रसिद्ध है, का हवाला देते हुए हज़रत फ़ातिमा (स) की दोस्ती और मोहब्बत को अनिवार्य और जरूरी माना है। मवद्दत वाली आयत में नबी (स) की नबूवत और रिसालत की उजरत आप (स) के अहले-बैत (अ) से मवद्दत और मोहब्बत करना बताया गया है। हदीसों के प्रकाश में इस आयत में अहले-बैत (अ) फ़ातिमा (स), अली (अ), हसन (अ) और हुसैन (अ) है।<ref>अबुल फ़ुतूह राज़ी, रौज़ुल जिनान वा रूहुल जिनान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1375 शम्सी, भाग 17, पेज 122; बहरानी, अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर उल-क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 4, पेज 815; सुयूति, अल दुर उल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 6, पेज 7; अबू सऊद, इसशादे अक़्लुस सलीम इला मज़ाया क़ुराआने करीम, दारे एहयाइत तुरास अल-अरबी, भाग 8, पेज 30</ref> मवद्दत की आयत के अलावा पैगंबर (स) से कई हदीसें बयान की गई हैं, जिनके अनुसार अल्लाह तआला फ़ातिमा (स) की नाराजगी से नाराज और उनकी खुशी से खुश होता है।<ref>हाकिम नेशापूरी, अल-मुस्तदरक अलस सहीहैन, बैरूत, भाद 3, पेज 154</ref>


जन्नत उल-आसेमा के लेखक ने अपनी किताब में एक रिवायत का हवाला दिया है, जिसमें हज़रत फ़ातिमा (स) की रचना को स्वर्ग के निर्माण का कारण बताया है। इस हदीसे कुद्सी को हदीस लौलाक के नाम से जाना जाता है, जो पैगंबर (स) से नक़ल की गई है, जिसके अनुसार: स्वर्ग का निर्माण पैगंबर (स) की रचना पर निर्भर है, आपकी रचना हज़रत अली (अ) की रचना पर निर्भर है और आप दोनों की रचना हज़रत फ़ातिमा (स) की रचना पर निर्भर है। [128] कुछ विद्वान इस हदीस की प्रामाणिकता (सनद) को संदिग्ध मानते हैं, लेकिन इसकी सामग्री को उचित मानते हैं। [129]
जन्नत उल-आसेमा के लेखक ने अपनी किताब में एक रिवायत का हवाला दिया है, जिसमें हज़रत फ़ातिमा (स) की रचना को स्वर्ग के निर्माण का कारण बताया है। इस हदीसे कुद्सी को हदीस लौलाक के नाम से जाना जाता है, जो पैगंबर (स) से नक़ल की गई है, जिसके अनुसार: स्वर्ग का निर्माण पैगंबर (स) की रचना पर निर्भर है, आपकी रचना हज़रत अली (अ) की रचना पर निर्भर है और आप दोनों की रचना हज़रत फ़ातिमा (स) की रचना पर निर्भर है।<ref>मीर जहानी, जन्नतुल आसेमा, 1398 हिजरी, पेज 148</ref> कुछ विद्वान इस हदीस की प्रामाणिकता (सनद) को संदिग्ध मानते हैं, लेकिन इसकी सामग्री को उचित मानते हैं।<ref>गुफ्तगू बा आयतुल्लाहिल उज़्मा शुबैरी ज़नजानी, साइट जमारान, तारीखे प्रकाशन 14/1/1393 तारीखे विजीट 29/11/1395</ref>


पैगंबर (स) हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक मानते थे और दूसरो की तुलना मे उनसे अधिक प्यार और सम्मान करते थे। [[हदीसे बिज़्आ]] नामक प्रसिद्द हदीस मे पैगंबर (स) ने अपने कलेजे के टुकड़े के रूप में वर्णित करते हुए फ़रमाया: जिसने भी इसे सताया अर्थात उसने मुझे सताया। इस हदीस को शिया विद्वानों में [[शेख़ मुफ़ीद]] और सुन्नी विद्वानों में अहमद बिन हनबल जैसे प्रारंभिक मुहद्देसीनो द्वारा अलग-अलग तरीकों से वर्णित किया गया है। [130]
पैगंबर (स) हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक मानते थे और दूसरो की तुलना मे उनसे अधिक प्यार और सम्मान करते थे। [[हदीसे बिज़्आ]] नामक प्रसिद्द हदीस मे पैगंबर (स) ने अपने कलेजे के टुकड़े के रूप में वर्णित करते हुए फ़रमाया: जिसने भी इसे सताया अर्थात उसने मुझे सताया। इस हदीस को शिया विद्वानों में [[शेख़ मुफ़ीद]] और सुन्नी विद्वानों में अहमद बिन हनबल जैसे प्रारंभिक मुहद्देसीनो द्वारा अलग-अलग तरीकों से वर्णित किया गया है।<ref>मुफ़ीद, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 260; तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 24; अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, बैरूत, भाग 4, पेज 5</ref>


'''महिलाओं की मुखिया'''
'''महिलाओं की मुखिया'''
शिया और सुन्नी दोनों संप्रदायो की विभिन्न हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि हज़रत फातिमा (स) स्वर्ग और उम्मत की सभी महिलाओं की नेता हैं। [131]
शिया और सुन्नी दोनों संप्रदायो की विभिन्न हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि हज़रत फातिमा (स) स्वर्ग और उम्मत की सभी महिलाओं की नेता हैं।<ref>सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 182; तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 81; अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, बैरूत, भाग 3, पेज 80; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, बैरूत, भाग 4, पेज 183; मुस्लिम नेशापूरी, सहीह मुस्लिम, बैरूत, भाग 7, पेज 143-144  </ref>


====मुबाहला में शामिल होने वाली इकलौती महिला====  
====मुबाहला में शामिल होने वाली इकलौती महिला====  
प्रारम्भिक इस्लाम की मुस्लिम महिलाओं में हज़रत फ़ातिमा (स) एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें पैगंबर (स) ने नजरान के ईसाइयों के साथ होने वाले मुबाहला के लिए चुना था। इस घटना का उल्लेख क़ुरआन की [[आय ए मुबाहला]] में मिलता है। व्याख्यात्मक (तफ़सीरी), रिवाई और ऐतिहासिक स्रोतों के आलोक में मुबाहला वाली आयत पैगंबर (स) के अहले-बैत (अ) की फ़ज़ीलत मे नाज़िल हुई है। [132] कहा जाता है कि फ़ातिमा (स), इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ) और [[इमाम हुसैन (अ)]] इस घटना मे पैगंबर (स) के साथ मुबाहला के लिए गए और इनके अलावा पैगंबर (स) ने किसी को भी अपने साथ नहीं लिया। [133]
प्रारम्भिक इस्लाम की मुस्लिम महिलाओं में हज़रत फ़ातिमा (स) एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें पैगंबर (स) ने नजरान के ईसाइयों के साथ होने वाले मुबाहला के लिए चुना था। इस घटना का उल्लेख क़ुरआन की [[आय ए मुबाहला]] में मिलता है। व्याख्यात्मक (तफ़सीरी), रिवाई और ऐतिहासिक स्रोतों के आलोक में मुबाहला वाली आयत पैगंबर (स) के अहले-बैत (अ) की फ़ज़ीलत मे नाज़िल हुई है।<ref>इब्ने कसीर, तफ़सीर उल-क़ुरआन अल-अज़ीम, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 379; बलाग़ी, हज्जातुत तफ़ासीर वा बलाग़ुल अकसीर, 1386 हिजरी, भाग 1, पेज 268; तिरमिज़ी, सुनन तिरमिज़ी, 1403 हिजरी, भाग 4, पेज 293-294</ref> कहा जाता है कि फ़ातिमा (स), इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ) और [[इमाम हुसैन (अ)]] इस घटना मे पैगंबर (स) के साथ मुबाहला के लिए गए और इनके अलावा पैगंबर (स) ने किसी को भी अपने साथ नहीं लिया।<ref>देखेः इब्ने कसीर, अल-कामिल फ़ी तारीख, 1385 शम्सी, भाग 2, पेज 293</ref>


====पैगंबर की पीढ़ी की निरंतरता====
====पैगंबर की पीढ़ी की निरंतरता====
पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता (तसलसुल) और मासूम इमामो का निर्धारण हज़रत ज़हरा (स) की पीढ़ी से होना आप (स) के गुणो (फ़ज़ीलतो) में गिना जाता है। [134] कुछ टीकाकार हज़रत ज़हरा (स) के माध्यम से पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता को [[सूर ए कौसर]] उल्लेखित ख़ैरे कसीर का मिस्दाक बताते है। [135]
पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता (तसलसुल) और मासूम इमामो का निर्धारण हज़रत ज़हरा (स) की पीढ़ी से होना आप (स) के गुणो (फ़ज़ीलतो) में गिना जाता है।<ref>तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 370-371</ref> कुछ टीकाकार हज़रत ज़हरा (स) के माध्यम से पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता को [[सूर ए कौसर]] उल्लेखित ख़ैरे कसीर का मिस्दाक बताते है।<ref>तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 370-371; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, भाग 27, पेज 371; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर उल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 32, पेज 313; बैज़ावी, अनवार उल-तंजील वा इसरारुल तावील, 1418 हिजरी, भाग 5, पेज 342; नेशापूरी, तफ़सीर ग़राएबुल क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 6, पेज 576</ref>


===उदारता===   
===उदारता===   
हज़रत फ़ातिमा (स) के जीवन में उदारता (सख़ावत) का पक्ष (पहलू) उनके जीवन और चरित्र का प्रमुख पक्ष है। जिस समय आपने हज़रत अली (अ) के साथ अपने विवाहित जीवन का आरम्भ किया, उस समय आपकी आर्थिक स्थिति ठीक थी। उस समय भी आपने साधारण जीवन व्यतीत किया और उस समय भी आपने अल्लाह के मार्ग मे सदैव दान (इंफ़ाक़) किया। [136] अपने विवाह के वस्त्र उसी रात ज़रूरतमंद को देना। [137] फ़क़ीर को अपना गले का हार दे देना, [138] और तीन दिन तक अपना और अपने परिवार का भोजन गरीबों, अनाथों और क़ैदियों को दे देना; यह उदारता के उच्चतम उदाहरणों में से है। [139] हदीसी और तफ़सीरी स्रोतों में मौजूद मतालिब के आलोक में जब फ़ातिमा (स), अली (अ) और हसनैन (अ) ने लगातार तीन दिनों तक रोज़ा रखा और इफ़्तार के समय पूरा भोजन जरूरतमंदों को दे दिया। अल्लाह तआला की ओर से [[सूर ए इंसान]] की आयत नम्बर 5 से 9 तक नाज़िल हुई जो इतआम की आयतो के नाम से प्रसिध्द है। [140]
हज़रत फ़ातिमा (स) के जीवन में उदारता (सख़ावत) का पक्ष (पहलू) उनके जीवन और चरित्र का प्रमुख पक्ष है। जिस समय आपने हज़रत अली (अ) के साथ अपने विवाहित जीवन का आरम्भ किया, उस समय आपकी आर्थिक स्थिति ठीक थी। उस समय भी आपने साधारण जीवन व्यतीत किया और उस समय भी आपने अल्लाह के मार्ग मे सदैव दान (इंफ़ाक़) किया।तबरसी, मकारेमुल अख़लाक़, 1392 हिजरी, पेज 92-93 अपने विवाह के वस्त्र उसी रात ज़रूरतमंद को देना।<ref>मरअशी नजफ़ी, शरह एहक़ाक़ उल-हक़, किताब ख़ाना मरअशी नजफी, भाग 19, पेज 114</ref> फ़क़ीर को अपना गले का हार दे देना,<ref>तिबरी, बशारतुल मुस्तफ़ा ले शीअतिल मुर्तज़ा, 1420 हिजरी, पेज 218-219
</ref> और तीन दिन तक अपना और अपने परिवार का भोजन गरीबों, अनाथों और क़ैदियों को दे देना; यह उदारता के उच्चतम उदाहरणों में से है।<ref>अर्दबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़तिल आइम्मा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 169</ref> हदीसी और तफ़सीरी स्रोतों में मौजूद मतालिब के आलोक में जब फ़ातिमा (स), अली (अ) और हसनैन (अ) ने लगातार तीन दिनों तक रोज़ा रखा और इफ़्तार के समय पूरा भोजन जरूरतमंदों को दे दिया। अल्लाह तआला की ओर से [[सूर ए इंसान]] की आयत नम्बर 5 से 9 तक नाज़िल हुई जो इतआम की आयतो के नाम से प्रसिध्द है।<ref>इब्ने ताऊस, अल-तराइफ़, मतबअतुल ख़य्याम, 1399 हिजरी, पेज 107-109; तूसी, अल-तिबयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1409 हिजरी, भाग 10, पेज 211; ज़मखशरी, अल-कश्शाफ़, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 670; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 30, पेज 746-747</ref>


===मुहद्देसा===
===मुहद्देसा===
खुदा के सबसे करीबी [[फ़रिश्तों]] की हज़रत फ़ातिमा (स) के साथ बातचीत आपकी विशेषताओ मे से एक है। इसीलिए आप (स) को "मुहद्देसा" कहा गया। [141] पैगंबर अकरम (स) के जीवनकाल के दौरान स्वर्गदूतों के साथ आपकी बातचीत [142] और पैगंबर के स्वर्गवास पश्चात स्वर्गदूतो का आपको सांत्वना (तसलीयत) देना और पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता आपसे जारी रहने की सूचना देना इसके स्पष्ट संकेत है। भविष्य में घटने वाली घटनाओ को फ़रिश्ते हज़रत फ़ातिमा (स) को सुनाते थे; इमाम अली (अ) उन्हें लिखते थे, जो बाद मे [[मुस्हफे फ़ातिमा]] (स) के नाम से जाना जाने लगा। [143]
खुदा के सबसे करीबी [[फ़रिश्तों]] की हज़रत फ़ातिमा (स) के साथ बातचीत आपकी विशेषताओ मे से एक है। इसीलिए आप (स) को "मुहद्देसा" कहा गया।<ref> सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 1, पजे 182</ref> पैगंबर अकरम (स) के जीवनकाल के दौरान स्वर्गदूतों के साथ आपकी बातचीत<ref>इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 116</ref> और पैगंबर के स्वर्गवास पश्चात स्वर्गदूतो का आपको सांत्वना (तसलीयत) देना और पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता आपसे जारी रहने की सूचना देना इसके स्पष्ट संकेत है। भविष्य में घटने वाली घटनाओ को फ़रिश्ते हज़रत फ़ातिमा (स) को सुनाते थे; इमाम अली (अ) उन्हें लिखते थे, जो बाद मे [[मुस्हफे फ़ातिमा]] (स) के नाम से जाना जाने लगा।<ref>कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 240-241</ref>


===ज़ियारत नामा===
===ज़ियारत नामा===
कुछ शिया स्रोतों में [[इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)]] से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के लिए ज़ियारत नामा बयान किया गया है। [144] इस ज़ियारतनामा के अनुसार, अल्लाह तआला ने जन्म से पहले हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की परीक्षा ली और आपने इस परीक्षा मे धैर्य का सबूत दिया।[145]
कुछ शिया स्रोतों में [[इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)]] से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के लिए ज़ियारत नामा बयान किया गया है।<ref>शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; तूसी, तहज़ीब उल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 9</ref> इस ज़ियारतनामा के अनुसार, अल्लाह तआला ने जन्म से पहले हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की परीक्षा ली और आपने इस परीक्षा मे धैर्य का सबूत दिया।<ref>शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167</ref>


इस ज़ियारतनामे के अनुसार, हज़रत ज़हरा (स) की विलायत स्वीकार करने का अर्थ सभी नबियों और पैगंबर (स) की विलायत को स्वीकार करना और उनका पालन करना बताया गया है। [146] इसी तरह, इस ज़ियारत के अनुसार, जिस किसी ने हज़रत ज़हरा (स) का अनुसरण किया और उस पर दृढ़ रहा, तो वह अशुद्धियों और पापों से मुक्त हो जाएगा। [147]
इस ज़ियारतनामे के अनुसार, हज़रत ज़हरा (स) की विलायत स्वीकार करने का अर्थ सभी नबियों और पैगंबर (स) की विलायत को स्वीकार करना और उनका पालन करना बताया गया है।<ref>शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167</ref> इसी तरह, इस ज़ियारत के अनुसार, जिस किसी ने हज़रत ज़हरा (स) का अनुसरण किया और उस पर दृढ़ रहा, तो वह अशुद्धियों और पापों से मुक्त हो जाएगा।<ref>शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167</ref>


=='''आध्यात्मिक विरासत'''==
=='''आध्यात्मिक विरासत'''==
हज़रत फ़ातिमा (स) का धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन और उनकी बातें एक अनमोल आध्यात्मिक विरासत की तरह हैं, जिसे सभी [[मुसलमान]] अपने दैनिक जीवन में अपने लिए एक आदर्श मानते हैं और [[इस्लामी]] कार्यों में इसका उल्लेख करते हैं। मुस्हफ़े फ़ातिमा, खुत्बा ए फ़दकया, तस्बीहात और हज़रत ज़हरा (स) की नमाज इस आध्यात्मिक विरासत में शामिल हैं।
हज़रत फ़ातिमा (स) का धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन और उनकी बातें एक अनमोल आध्यात्मिक विरासत की तरह हैं, जिसे सभी [[मुसलमान]] अपने दैनिक जीवन में अपने लिए एक आदर्श मानते हैं और [[इस्लामी]] कार्यों में इसका उल्लेख करते हैं। मुस्हफ़े फ़ातिमा, खुत्बा ए फ़दकया, तस्बीहात और हज़रत ज़हरा (स) की नमाज इस आध्यात्मिक विरासत में शामिल हैं।


* '''हदीसें''': आपकी बयान की हुई हदीसें इस आध्यात्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हदीस सामग्री के मामले में विविध हैं और इसमें धार्मिक, न्यायशास्त्रीय, नैतिक और सामूहिक विषय शामिल हैं। इनमें से कुछ [[हदीसों]] का उल्लेख शिया और सुन्नी हदीस स्रोतों में किया गया है, जबकि उनकी अधिकांश हदीसों को [[मुसनदे फ़ातिमा]] और अख़बारे फ़ातिमा के नाम से स्थायी पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुई है। इनमें से कुछ मुसनदे समय के साथ लुप्त हो गई और इल्मे रिजाल (रावीयो के हालात से संबंधित ज्ञान) और अनुवाद की पुस्तकों में केवल इन कथाकारों (रावीयो) और लेखकों के केवल नामों का उल्लेख किया गया है। [148]
* '''हदीसें''': आपकी बयान की हुई हदीसें इस आध्यात्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हदीस सामग्री के मामले में विविध हैं और इसमें धार्मिक, न्यायशास्त्रीय, नैतिक और सामूहिक विषय शामिल हैं। इनमें से कुछ [[हदीसों]] का उल्लेख शिया और सुन्नी हदीस स्रोतों में किया गया है, जबकि उनकी अधिकांश हदीसों को [[मुसनदे फ़ातिमा]] और अख़बारे फ़ातिमा के नाम से स्थायी पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुई है। इनमें से कुछ मुसनदे समय के साथ लुप्त हो गई और इल्मे रिजाल (रावीयो के हालात से संबंधित ज्ञान) और अनुवाद की पुस्तकों में केवल इन कथाकारों (रावीयो) और लेखकों के केवल नामों का उल्लेख किया गया है।<ref>मामूरी, किताब शनासी फ़ातिमा (स), 1393 शम्सी, पेज 561-563</ref>


* '''मुस्हफ़े फ़ातिमा (स)''': उन बातों पर आधारित हैं जिन्हे हज़रत फ़ातिमा (स) ने स्वर्गदूत से सुना और उन्हे इमाम अली (अ) ने लिखा। [149] शियों के अनुसार मुस्हफ़े फ़ातिमा (स) मासूम इमामों द्वारा सुरक्षित रहा, प्रत्येक इमाम ने अपने जीवन के अंत में इसे अपने उत्तराधिकारी (अपने बाद वाले इमाम) को सौंपा। [150] और मासूम इमामो (अ) के अलावा कोई अन्य व्यक्ति इस पुस्तक तक नहीं पहुंच सकता। यह पुस्तक वर्तमान में [[इमामे ज़माना (अ.त.)]] के पास है। [151]
* '''मुस्हफ़े फ़ातिमा (स)''': उन बातों पर आधारित हैं जिन्हे हज़रत फ़ातिमा (स) ने स्वर्गदूत से सुना और उन्हे इमाम अली (अ) ने लिखा।<ref>कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 241</ref> शियों के अनुसार मुस्हफ़े फ़ातिमा (स) मासूम इमामों द्वारा सुरक्षित रहा, प्रत्येक इमाम ने अपने जीवन के अंत में इसे अपने उत्तराधिकारी (अपने बाद वाले इमाम) को सौंपा।<ref>सफ़्फ़ार, बसाएर उत-दरजात उल-कुबरा, 1404 हिजरी, पेज 173-181</ref> और मासूम इमामो (अ) के अलावा कोई अन्य व्यक्ति इस पुस्तक तक नहीं पहुंच सकता। यह पुस्तक वर्तमान में [[इमामे ज़माना (अ.त.)]] के पास है।<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 21, पेज 126</ref>


* '''खुत्बा ए फ़दकया''': हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रसिद्ध धर्मोपदेशो (खुत्बों) में से एक है, जिसे आप ने [[सक़ीफ़ा बनी सायदा]] की घटना और फ़दक वाले बाग के हड़पने के संबंध मे पैगंबर की मस्जिद में सहाबा की भरी सभा में दिया था। इस धर्मोपदेश के अब तक कई व्याख्या (शरह) लिखे जा चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश का शीर्षक "हज़रत ज़हरा (स) के खुत्बे की शरह" अथवा "शरह ख़ुत्बा ए लुम्मा" (ख़ुत् ए फ़दकया का दूसरा नाम) है। [152]
* '''खुत्बा ए फ़दकया''': हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रसिद्ध धर्मोपदेशो (खुत्बों) में से एक है, जिसे आप ने [[सक़ीफ़ा बनी सायदा]] की घटना और फ़दक वाले बाग के हड़पने के संबंध मे पैगंबर की मस्जिद में सहाबा की भरी सभा में दिया था। इस धर्मोपदेश के अब तक कई व्याख्या (शरह) लिखे जा चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश का शीर्षक "हज़रत ज़हरा (स) के खुत्बे की शरह" अथवा "शरह ख़ुत्बा ए लुम्मा" (ख़ुत् ए फ़दकया का दूसरा नाम) है।<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 93 और भाग 13, पेज 224 </ref>


* '''तस्बीह हज़रत ज़हरा (स)''': उस प्रसिद्ध ज़िक्र को संदर्भित करती है जिसे पैगंबर (स) ने हज़रत ज़हरा (स) को सिखाया था [153] जिसने हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक प्रसन्न किया। [154] शिया और सुन्नी स्रोतों में हज़रत ज़हरा (स) को [[रसूले अकरम (स)]] द्वारा शिक्षण देने के संबंध मे विभिन्न मतलबो का उल्लेख किया गया है और कहा जाता है कि इमाम अली (अ) ने इस ज़िक्र को सुनने के बाद इसे कभी नहीं छोड़ा। [155]
* '''तस्बीह हज़रत ज़हरा (स)''': उस प्रसिद्ध ज़िक्र को संदर्भित करती है जिसे पैगंबर (स) ने हज़रत ज़हरा (स) को सिखाया था<ref>सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 320-321; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, दारूल फ़िक्र, 1401 हिजरी, भाग 4, पेज 48-208</ref> जिसने हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक प्रसन्न किया।<ref>सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 366</ref> शिया और सुन्नी स्रोतों में हज़रत ज़हरा (स) को [[रसूले अकरम (स)]] द्वारा शिक्षण देने के संबंध मे विभिन्न मतलबो का उल्लेख किया गया है और कहा जाता है कि इमाम अली (अ) ने इस ज़िक्र को सुनने के बाद इसे कभी नहीं छोड़ा।<ref> अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, भाग 1, पेज 107</ref>


* '''नमाज़े हज़रत ज़हरा (स)''': उन नमाजो को संदर्भित करती है जो हज़रत फ़ातिमा (स) ने पैगंबर (स) या जिब्राईल से पूछा। कुछ हदीसी स्रोतो और दुआओ की किताबे इन नमाज़ो का संकेत मिलता हैं। [156]
* '''नमाज़े हज़रत ज़हरा (स)''': उन नमाजो को संदर्भित करती है जो हज़रत फ़ातिमा (स) ने पैगंबर (स) या जिब्राईल से पूछा। कुछ हदीसी स्रोतो और दुआओ की किताबे इन नमाज़ो का संकेत मिलता हैं।<ref> सय्यद इब्ने ताऊस, अली बिन मूसा, जमाल उल-उस्बूअ, 1371 शम्सी, पेज 70-93</ref>


* '''हज़रत ज़हरा (स) से मंसूब अश्आर''': सूत्रों में कुछ अश्आर का श्रेय हज़रत फ़ातिमा (स) को दिया जाता है, जिनका उल्लेख ऐतिहासिक और हदीस स्रोतों में मिलता है। ऐतिहासिक रूप से, ये कवियाएं पैगंबर (स) के स्वर्गवास से पहले और स्वर्गवास पश्चात की दो अवधियों से संबंधित हैं। [157]
* '''हज़रत ज़हरा (स) से मंसूब अश्आर''': सूत्रों में कुछ अश्आर का श्रेय हज़रत फ़ातिमा (स) को दिया जाता है, जिनका उल्लेख ऐतिहासिक और हदीस स्रोतों में मिलता है। ऐतिहासिक रूप से, ये कवियाएं पैगंबर (स) के स्वर्गवास से पहले और स्वर्गवास पश्चात की दो अवधियों से संबंधित हैं।<ref>आलमी, अश्आरे फ़ातिमा (स), दानिश नामा फ़ातिमी, 1397 शम्सी, भाग 3, पजे 110-120</ref>


=='''शिया संस्कृति और साहित्य में फ़ातिमा ज़हरा (स)'''==  
=='''शिया संस्कृति और साहित्य में फ़ातिमा ज़हरा (स)'''==  
शिया मुसलमान हज़रत फ़ातिमा (स) को अपने लिए आदर्श मानते हैं और उनकी जीवनी शिया संस्कृति और शिया जीवन में जारी है। उनमें से कुछ की ओर इशारा करते हैं:  
शिया मुसलमान हज़रत फ़ातिमा (स) को अपने लिए आदर्श मानते हैं और उनकी जीवनी शिया संस्कृति और शिया जीवन में जारी है। उनमें से कुछ की ओर इशारा करते हैं:  


* '''मेहरुस-सुन्ना''': हदीस के अनुसार इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) ने अपनी पत्नी का मेहर हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के मेहेर 500 दिरहम के बराबर क़रार किया। [158] मेहर की इस राशि को मेहरुस सुन्ना कहा जात है जोकि अल्लाह के रसूल (स) की जीवन साथीयो और बच्चो का मेहेर था। [159]
* '''मेहरुस-सुन्ना''': हदीस के अनुसार इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) ने अपनी पत्नी का मेहर हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के मेहेर 500 दिरहम के बराबर क़रार किया।<ref>सय्यद इब्ने ताऊस, अली बिन मूसा, जमाल उल-उस्बूअ, 1371 शम्सी, पेज 70-93</ref> मेहर की इस राशि को मेहरुस सुन्ना कहा जात है जोकि अल्लाह के रसूल (स) की जीवन साथीयो और बच्चो का मेहेर था।<ref>आलमी, अश्आरे फ़ातिमा (स), दानिश नामा फ़ातिमी, 1397 शम्सी, भाग 3, पजे 110-120</ref>


* '''फ़ातेमिया''' : हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत के दिनों को [[फ़ातेमिया]] कहते हैं। ईरान सहित दुनिया के सभी देशों में, शिया संप्रदाय 3 जमादि उस-सानी (इस्लामी कैलेंडर का छठा महीना) को आपकी शहादत के सिलसिले में शोक मनाते हुए अज़ादारी करते हैं, और कुछ इस्लामी देशों जैसे ईरान मे इस दिन आधिकारिक अवकाश होता है [160] और शिया मराजा ए तक़लीद नंगे पैर अज़ादारी मे भाग लेते हैं। [161]
* '''फ़ातेमिया''' : हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत के दिनों को [[फ़ातेमिया]] कहते हैं। ईरान सहित दुनिया के सभी देशों में, शिया संप्रदाय 3 जमादि उस-सानी (इस्लामी कैलेंडर का छठा महीना) को आपकी शहादत के सिलसिले में शोक मनाते हुए अज़ादारी करते हैं, और कुछ इस्लामी देशों जैसे ईरान मे इस दिन आधिकारिक अवकाश होता है<ref> माजराए तातील शुदन रोज़े शहादते हज़रत ज़हरा (स), ख़बर गुज़ारी फ़ार्स, तारीख प्रकाशन 5/2/1391, तारीख वीजीट 2/12/1395</ref> और शिया मराजा ए तक़लीद नंगे पैर अज़ादारी मे भाग लेते हैं।<ref>फ़ातेमा दर क़ुम, प्यादारवी दो तन अज़ मराजए तक़लीद ता हरम, ख़बरगुज़ारी सदा व सीमा, तारीख प्रकाशन 14/1/1393, तारीख वीजीट 2/12/1395</ref>


* '''मदर डे''': ईरान में हज़रत फ़ातिमा (स) के जन्म दिवस 20 जमादी उस-सानी को मदर डे (Mother Day) या महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। [162] इस दिन ईरान में लोग अपनी मां को तोहफे देते हैं और आपका जन्म दिवस मनाते है। [163]
* '''मदर डे''': ईरान में हज़रत फ़ातिमा (स) के जन्म दिवस 20 जमादी उस-सानी को मदर डे (Mother Day) या महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।<ref>आईन नामा हाए मुसव्विब शूरा ए फ़रहंगे उमूमी, इदारा ए कुल्ले फ़रहंग व इरशाद इस्लामी किरमान शाह, तारीख वीजीट 2/12/1395</ref> इस दिन ईरान में लोग अपनी मां को तोहफे देते हैं और आपका जन्म दिवस मनाते है।<ref>पीशनेहाद बराए हदिया रोज़े मादर, पायगाह इंटरनेटी बैतूते, तारीख वीजीट 2/12/1395</ref>


* '''बेटियों के नाम''': [[शिया]] अपनी बेटियों का नाम फ़ातिमा रखते हैं या नाम के रूप में हज़रत ज़हरा (स) के उपनामो में से किसी एक उपनाम का चयन करते हैं, और हाल के वर्षों में ईरान में, "फ़ातिमा" और "[[ज़हरा]]" नाम का शुमार बेटियों के लिए पहले दस नामो मे होता है। [164]
* '''बेटियों के नाम''': [[शिया]] अपनी बेटियों का नाम फ़ातिमा रखते हैं या नाम के रूप में हज़रत ज़हरा (स) के उपनामो में से किसी एक उपनाम का चयन करते हैं, और हाल के वर्षों में ईरान में, "फ़ातिमा" और "[[ज़हरा]]" नाम का शुमार बेटियों के लिए पहले दस नामो मे होता है।<ref>दह नाम नुखुस्त बराए दुख्तरान व पिस्रान ईरानी, खबरगुज़ारी फार्स, तारीख प्रकाशन 15/2/1392, तारीख वीजीट 2/12/1395  </ref>


* '''फ़ातिमा ज़हरा (स) के वंशजों को श्रेय''': शियों के बीच ज़ैदीया संप्रदाय का मानना है कि इमामत और नेतृत्व केवल हज़रत फ़ातिमा के वंशजों के लिए आरक्षित हैं। इस आधार पर, ज़ैदीया केवल उस व्यक्ति को अपना इमाम मानते हैं और उसके शासन को स्वीकार करते हैं जो आप (स) के वंशज है।[165] इसी प्रकार फ़ातिम्यून ने जब मिस्र मे अपनी सरकार स्थापना की तो उन्होने खुद को हज़रत फ़ातिमा (स) के वंशज होने का दावा किया। [166]
* '''फ़ातिमा ज़हरा (स) के वंशजों को श्रेय''': शियों के बीच ज़ैदीया संप्रदाय का मानना है कि इमामत और नेतृत्व केवल हज़रत फ़ातिमा के वंशजों के लिए आरक्षित हैं। इस आधार पर, ज़ैदीया केवल उस व्यक्ति को अपना इमाम मानते हैं और उसके शासन को स्वीकार करते हैं जो आप (स) के वंशज है।<ref> रसास, मिस्बाहुल उलूम, 1999 ई, पजे 23-24</ref> इसी प्रकार फ़ातिम्यून ने जब मिस्र मे अपनी सरकार स्थापना की तो उन्होने खुद को हज़रत फ़ातिमा (स) के वंशज होने का दावा किया।<ref>रब्बानी गुलपाएगानी, अली, फ़ातेमयान व क़रामेता, पायगाह इत्तेला रसानी हौज़ा, तारीख प्रकाशन 4/5/1385, तारीख वीजीट 06/12/1395</ref>


=='''मोनोग्राफ़'''==
=='''मोनोग्राफ़'''==
हज़रत फ़ातिमा (स) के बारे में लेखन का रिवाज पहली शताब्दी हिजरी से मुसलमानों, विशेषकर शियों के बीच शुरू हो गया था। इस संबंध में उनके बारे में लिखी गई पुस्तकों को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है। दस्तावेज़ीकरण, कालक्रम और जीवनी लेखन। [167] इस विषय पर शिया विद्वानों द्वारा लिखित मुसनद इस प्रकार हैं:
हज़रत फ़ातिमा (स) के बारे में लेखन का रिवाज पहली शताब्दी हिजरी से मुसलमानों, विशेषकर शियों के बीच शुरू हो गया था। इस संबंध में उनके बारे में लिखी गई पुस्तकों को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है। दस्तावेज़ीकरण, कालक्रम और जीवनी लेखन।<ref>मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 561</ref> इस विषय पर शिया विद्वानों द्वारा लिखित मुसनद इस प्रकार हैं:
* मुसनदे फ़ातेमतुज़ ज़हरा, रचनाः अज़ीज़ुल्लाह अत्तारदी
* मुसनदे फ़ातेमतुज़ ज़हरा, रचनाः अज़ीज़ुल्लाह अत्तारदी
* मुसनदे फ़ातेमा रचनाः महदी जाफ़र [168]
* मुसनदे फ़ातेमा रचनाः महदी जाफ़र<ref> मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 564 </ref>
* मुसनदे फ़ातेमा ज़हरा रचनाः सय्यद हुसैन शेख उल-इस्लामी
* मुसनदे फ़ातेमा ज़हरा रचनाः सय्यद हुसैन शेख उल-इस्लामी
* दलाएलुल इमामा लेखकः तबरी इमामी (इस संबंध का सबसे प्राचीन स्रोत है) [169]
* दलाएलुल इमामा लेखकः तबरी इमामी (इस संबंध का सबसे प्राचीन स्रोत है)<ref>मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 563 देखेः तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 65-76</ref>
मनक़बत निगारी मे शिया विद्वानो की रचनाएं इस प्रकार हैः
मनक़बत निगारी मे शिया विद्वानो की रचनाएं इस प्रकार हैः
* मनाक़िबे फ़ातेमा ज़हरा (स) वा वुलदोहा, रचनाः तिबरी इमामी [170]
* मनाक़िबे फ़ातेमा ज़हरा (स) वा वुलदोहा, रचनाः तिबरी इमामी<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 22, पेज 332</ref>
* शरह अहक़ाक़ुल हक़ वा इज़्हाक़े बातिल, रचनाः सय्यद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी
* शरह अहक़ाक़ुल हक़ वा इज़्हाक़े बातिल, रचनाः सय्यद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी
* फ़ज़ाइले फ़ातिमा ज़हरा (स) अज़ निगाहे दिगरान, रचनाः नासिर मकारिम शिराज़ी
* फ़ज़ाइले फ़ातिमा ज़हरा (स) अज़ निगाहे दिगरान, रचनाः नासिर मकारिम शिराज़ी
* फ़ातिमा ज़हरा (स) अज़ नज़रे रिवायात अहले-सुन्नत, रचनाः मुहम्मद वासिफ़ [171]
* फ़ातिमा ज़हरा (स) अज़ नज़रे रिवायात अहले-सुन्नत, रचनाः मुहम्मद वासिफ़<ref>मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 567</ref>
इस विषय पर अहले सुन्नत विद्वानो द्वारा लिखी गई मुसनदो के नाम इस प्रकार हैः
इस विषय पर अहले सुन्नत विद्वानो द्वारा लिखी गई मुसनदो के नाम इस प्रकार हैः
* अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, रचनाः ज़ोहरी बस्री
* अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, रचनाः ज़ोहरी बस्री
पंक्ति २०७: पंक्ति २०८:
मनक़बत निगारी के विषय पर अहले-सुन्नत की किताबेः
मनक़बत निगारी के विषय पर अहले-सुन्नत की किताबेः
* अल-सग़ूर उल-बासेमते फ़ी फ़ज़ाइले अल-सय्यद तिल फ़ातिमा, रचनाः जलालुद्दीन सुयूती
* अल-सग़ूर उल-बासेमते फ़ी फ़ज़ाइले अल-सय्यद तिल फ़ातिमा, रचनाः जलालुद्दीन सुयूती
* इत्हाफ़ उस-साइल बेमा लेफ़ातेमता मिनल मनाक़िबे वल फ़ज़ाइल, रचनाः मुहम्मद अली मनावी [172]
* इत्हाफ़ उस-साइल बेमा लेफ़ातेमता मिनल मनाक़िबे वल फ़ज़ाइल, रचनाः मुहम्मद अली मनावी<ref>मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 566</ref>


=='''फ़ुटनोट'''==
=='''फ़ुटनोट'''==
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# अबुल फ़ुतूह राज़ी, रौज़ुल जिनान वा रूहुल जिनान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1375 शम्सी, भाग 17, पेज 122; बहरानी, अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर उल-क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 4, पेज 815; सुयूति, अल दुर उल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 6, पेज 7; अबू सऊद, इसशादे अक़्लुस सलीम इला मज़ाया क़ुराआने करीम, दारे एहयाइत तुरास अल-अरबी, भाग 8, पेज 30
# हाकिम नेशापूरी, अल-मुस्तदरक अलस सहीहैन, बैरूत, भाद 3, पेज 154
# मीर जहानी, जन्नतुल आसेमा, 1398 हिजरी, पेज 148
# गुफ्तगू बा आयतुल्लाहिल उज़्मा शुबैरी ज़नजानी, साइट जमारान, तारीखे प्रकाशन 14/1/1393 तारीखे विजीट 29/11/1395
# मुफ़ीद, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 260; तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 24; अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, बैरूत, भाग 4, पेज 5
# सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 182; तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 81; अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, बैरूत, भाग 3, पेज 80; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, बैरूत, भाग 4, पेज 183; मुस्लिम नेशापूरी, सहीह मुस्लिम, बैरूत, भाग 7, पेज 143-144 
# इब्ने कसीर, तफ़सीर उल-क़ुरआन अल-अज़ीम, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 379; बलाग़ी, हज्जातुत तफ़ासीर वा बलाग़ुल अकसीर, 1386 हिजरी, भाग 1, पेज 268; तिरमिज़ी, सुनन तिरमिज़ी, 1403 हिजरी, भाग 4, पेज 293-294
# देखेः इब्ने कसीर, अल-कामिल फ़ी तारीख, 1385 शम्सी, भाग 2, पेज 293
# तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 370-371
# तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 370-371; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, भाग 27, पेज 371; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर उल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 32, पेज 313; बैज़ावी, अनवार उल-तंजील वा इसरारुल तावील, 1418 हिजरी, भाग 5, पेज 342; नेशापूरी, तफ़सीर ग़राएबुल क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 6, पेज 576
# तबरसी, मकारेमुल अख़लाक़, 1392 हिजरी, पेज 92-93
# मरअशी नजफ़ी, शरह एहक़ाक़ उल-हक़, किताब ख़ाना मरअशी नजफी, भाग 19, पेज 114
# तिबरी, बशारतुल मुस्तफ़ा ले शीअतिल मुर्तज़ा, 1420 हिजरी, पेज 218-219
# अर्दबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़तिल आइम्मा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 169
# इब्ने ताऊस, अल-तराइफ़, मतबअतुल ख़य्याम, 1399 हिजरी, पेज 107-109; तूसी, अल-तिबयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1409 हिजरी, भाग 10, पेज 211; ज़मखशरी, अल-कश्शाफ़, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 670; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 30, पेज 746-747
# सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 1, पजे 182
# इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 116
# कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 240-241
# शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; तूसी, तहज़ीब उल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 9
# शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167
# शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167
# शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167
# मामूरी, किताब शनासी फ़ातिमा (स), 1393 शम्सी, पेज 561-563
# कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 241
# सफ़्फ़ार, बसाएर उत-दरजात उल-कुबरा, 1404 हिजरी, पेज 173-181
# आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 21, पेज 126
# आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 93 और भाग 13, पेज 224
# सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 320-321; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, दारूल फ़िक्र, 1401 हिजरी, भाग 4, पेज 48-208
# सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 366
# अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, भाग 1, पेज 107
# सय्यद इब्ने ताऊस, अली बिन मूसा, जमाल उल-उस्बूअ, 1371 शम्सी, पेज 70-93
# आलमी, अश्आरे फ़ातिमा (स), दानिश नामा फ़ातिमी, 1397 शम्सी, भाग 3, पजे 110-120
# सय्यद इब्ने ताऊस, अली बिन मूसा, जमाल उल-उस्बूअ, 1371 शम्सी, पेज 70-93
# आलमी, अश्आरे फ़ातिमा (स), दानिश नामा फ़ातिमी, 1397 शम्सी, भाग 3, पजे 110-120
# माजराए तातील शुदन रोज़े शहादते हज़रत ज़हरा (स), ख़बर गुज़ारी फ़ार्स, तारीख प्रकाशन 5/2/1391, तारीख वीजीट 2/12/1395
# फ़ातेमा दर क़ुम, प्यादारवी दो तन अज़ मराजए तक़लीद ता हरम, ख़बरगुज़ारी सदा व सीमा, तारीख प्रकाशन 14/1/1393, तारीख वीजीट 2/12/1395
# आईन नामा हाए मुसव्विब शूरा ए फ़रहंगे उमूमी, इदारा ए कुल्ले फ़रहंग व इरशाद इस्लामी किरमान शाह, तारीख वीजीट 2/12/1395
# पीशनेहाद बराए हदिया रोज़े मादर, पायगाह इंटरनेटी बैतूते, तारीख वीजीट 2/12/1395
# दह नाम नुखुस्त बराए दुख्तरान व पिस्रान ईरानी, खबरगुज़ारी फार्स, तारीख प्रकाशन 15/2/1392, तारीख वीजीट 2/12/1395 
# रसास, मिस्बाहुल उलूम, 1999 ई, पजे 23-24
# रब्बानी गुलपाएगानी, अली, फ़ातेमयान व क़रामेता, पायगाह इत्तेला रसानी हौज़ा, तारीख प्रकाशन 4/5/1385, तारीख वीजीट 06/12/1395
# मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 561
# मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 564
# मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 563 देखेः तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 65-76
# आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 22, पेज 332
# मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 567
# मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 566
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