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"इमाम अली (अ) की ख़ामोशी के 25 साल": अवतरणों में अंतर

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==महत्व एवं स्थिति==
==महत्व एवं स्थिति==


तीन ख़लीफाओं के शासनकाल के दौरान 25 साल की चुप्पी अली (अ) के जीवन का एक हिस्सा है, जब उन्होंने इस्लाम के पैग़म्बर (स.) के उत्तराधिकारी होने का अपना अधिकार त्याग दिया था। यह युग तब शुरू हुआ जब [[पैग़म्बर (स)]] का निधन हो गया और [[वर्ष 35 हिजरी]] में उनके द्वारा शासन (ख़िलाफ़त) स्वीकार करने पर समाप्त हो गया। [1] कुछ लेखकों ने इमाम अली की 25 साल की चुप्पी को इमामों की धर्मपरायणता ([[तक़य्या]])[2] और तक़य्या के एक प्रकार काे तक़य्या मुदाराती का उदाहरण माना है [3] हालांकि 25 साल की खामोशी के दौरान, इमाम अली (अ.स.) को ख़िलाफ़त संभालने से रोक दिया गया था, लेकिन [[इमाम रज़ा (अ.स.)]] की एक [[हदीस]] के अनुसार, उन्होंने उस अवधि के दौरान भी [[इमामत]] का पद ग्रहण किया था। [4]
तीन ख़लीफाओं के शासनकाल के दौरान 25 साल की चुप्पी अली (अ) के जीवन का एक हिस्सा है, जब उन्होंने इस्लाम के पैग़म्बर (स.) के उत्तराधिकारी होने का अपना अधिकार त्याग दिया था। यह युग तब शुरू हुआ जब [[पैग़म्बर (स)]] का निधन हो गया और [[वर्ष 35 हिजरी]] में उनके द्वारा शासन (ख़िलाफ़त) स्वीकार करने पर समाप्त हो गया।<ref> रफ़ीई, ज़िन्दगी ए आइम्मा (अ), रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ़ इस्लामिक रिसर्च, पीपी. 34-35।</ref> कुछ लेखकों ने इमाम अली की 25 साल की चुप्पी को इमामों की धर्मपरायणता ([[तक़य्या]])<ref> रिज़वानफ़र, फंरहंगे अख़लाक़ी ए मासूमीन (स), 2007, पृ. 400</ref> और तक़य्या के एक प्रकार काे तक़य्या मुदाराती का उदाहरण माना है ।<ref> मूसवी, मबानी ए फ़िक़ही तक़य्या मुदाराती, 1392, पृष्ठ 120; कमाली अर्दकानी, आम्मा का अनुसरण करने पर एक शोध, हज और तीर्थयात्रा संगठन, पृष्ठ 43।</ref> हालांकि 25 साल की खामोशी के दौरान, इमाम अली (अ.स.) को ख़िलाफ़त संभालने से रोक दिया गया था, लेकिन [[इमाम रज़ा (अ.स.)]] की एक [[हदीस]] के अनुसार, उन्होंने उस अवधि के दौरान भी [[इमामत]] का पद ग्रहण किया था।<ref> शेख़ सदूक़, उयुन अख़बार अल-रज़ा (अ), 1378 एएच, खंड 2, पृष्ठ 81-82।</ref>


फ़रहंगे ग़दीर किताब के लेखक जवाद मोहद्दिसी, "25 साल की चुप्पी" वाक्यांश को एक सटीक व्याख्या नहीं मानते हैं; क्योंकि अली (अ.स.) ने अपने हक़ को साबित करने के लिए कई बार विरोध किया और तीनों ख़लीफ़ाओं के प्रदर्शन के प्रति आलोचनात्मक और नसीहत पूर्ण दृष्टिकोण रखा। [5] इतिहासकार [[रसूल जाफ़रियान]] के अनुसार, इमाम अली (अ.स.) के अपने विरोधियों के साथ मतभेद दिन ब दिन अधिक स्पष्ट होतो गए और उनके द्वारा बनाए गए संबंधों में समस्याएं पैदा होती गईं; जैसे [[हज़रत फ़ातिमा (स) के घर पर हमले की घटना|हज़रत अली (अ) के घर पर हमला]], [[हज़रत फ़ातेमा (अ)]] का शेखों (अबू बक्र व उमर) से ग़ुस्सा हो जाना और उनकी [[हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत|शहादत]] [6] चूँकि अली (अ.स.) ख़िलाफ़़त के पद की उपलब्धि को अपने लक्ष्यों (इस्लाम की रक्षा और पैग़म्बर (स) के प्रयासों) के विपरीत देख रहे थे, इस चीज़ ने उन्हे चुप रहने के लिए मजबूर किया।[7]
फ़रहंगे ग़दीर किताब के लेखक जवाद मोहद्दिसी, "25 साल की चुप्पी" वाक्यांश को एक सटीक व्याख्या नहीं मानते हैं; क्योंकि अली (अ.स.) ने अपने हक़ को साबित करने के लिए कई बार विरोध किया और तीनों ख़लीफ़ाओं के प्रदर्शन के प्रति आलोचनात्मक और नसीहत पूर्ण दृष्टिकोण रखा।<ref> मुहद्दी, फ़रहंगे ग़दीर, 2006, पीपी. 313-314।</ref> इतिहासकार [[रसूल जाफ़रियान]] के अनुसार, इमाम अली (अ.स.) के अपने विरोधियों के साथ मतभेद दिन ब दिन अधिक स्पष्ट होतो गए और उनके द्वारा बनाए गए संबंधों में समस्याएं पैदा होती गईं; जैसे [[हज़रत फ़ातिमा (स) के घर पर हमले की घटना|हज़रत अली (अ) के घर पर हमला]], [[हज़रत फ़ातेमा (अ)]] का शेखों (अबू बक्र व उमर) से ग़ुस्सा हो जाना और उनकी [[हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत|शहादत]]<ref> जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, 2013, पृष्ठ 58।</ref> चूँकि अली (अ.स.) ख़िलाफ़़त के पद की उपलब्धि को अपने लक्ष्यों (इस्लाम की रक्षा और पैग़म्बर (स) के प्रयासों) के विपरीत देख रहे थे, इस चीज़ ने उन्हे चुप रहने के लिए मजबूर किया।<ref> पेशवाई, सीरए पिशवायान, 1397 शम्सी, पृ. 71</ref>


अली बिन अबी तालिब ने [[ख़ुतबा शेक़शेक़िया|शक्शकियाह के उपदेश]] में पैग़म्बर (स) की [[खिलाफ़त]] से संबंधित मुद्दों को स्पष्ट रूप से बयान किया है। [8] और उनसे पहले के ख़लीफाओं की खिलाफ़त के बारे में शिकायत व्यक्त की है।[9] इस ख़ुत्बे में इमाम (अ.स.) के नज़रिए से पहले तीन ख़लीफ़ाओं के इतिहास के पूरे दौर का वर्णन किया गया है और 25 साल की चुप्पी का कारण और ख़िलाफ़त स्वीकार करने के उद्देश्य, इस उपदेश के अन्य मुख्य विषय हैं।[10] कुछ लेखकों के अनुसार, लोगों को तीन ख़लीफ़ाओं के शासन की कमियों को देखने के बाद अली के मूल्य का एहसास हुआ। इस कारण से, जब [[उस्मान की हत्या]] कर दी गई, तो उन्होंने इमाम अली (अ.स.) को शासक बनने पर ज़ोर दिया।[11]
अली बिन अबी तालिब ने [[ख़ुतबा शेक़शेक़िया|शक्शकियाह के उपदेश]] में पैग़म्बर (स) की [[खिलाफ़त]] से संबंधित मुद्दों को स्पष्ट रूप से बयान किया है।<ref> मकारिम शिराज़ी, इमाम (अ) का संदेश, 2006, खंड 1, पृष्ठ 318।</ref> और उनसे पहले के ख़लीफाओं की खिलाफ़त के बारे में शिकायत व्यक्त की है।<ref> बहरानी, ​​नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 एएच, खंड 1, पृष्ठ 251।</ref> इस ख़ुत्बे में इमाम (अ.स.) के नज़रिए से पहले तीन ख़लीफ़ाओं के इतिहास के पूरे दौर का वर्णन किया गया है और 25 साल की चुप्पी का कारण और ख़िलाफ़त स्वीकार करने के उद्देश्य, इस उपदेश के अन्य मुख्य विषय हैं।<ref> देखो: नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संशोधित, 1414 एएच, उपदेश 3, पृ. 48-50।</ref> कुछ लेखकों के अनुसार, लोगों को तीन ख़लीफ़ाओं के शासन की कमियों को देखने के बाद अली के मूल्य का एहसास हुआ। इस कारण से, जब [[उस्मान की हत्या]] कर दी गई, तो उन्होंने इमाम अली (अ.स.) को शासक बनने पर ज़ोर दिया।<ref> ज़मानी, नहज अल-बलाग़ा, 1369, खंड 1, पृष्ठ 134।</ref>


इस्लामी एकता हासिल करने के लिए इमाम अली की 25 साल की चुप्पी का पालन करना [[मुसलमानों]] के लिए आवश्यक माना जाना चाहिये, ताकि वे [[इस्लाम]] के दुश्मनों के वर्चस्व को रोक सकें।[12]
इस्लामी एकता हासिल करने के लिए इमाम अली की 25 साल की चुप्पी का पालन करना [[मुसलमानों]] के लिए आवश्यक माना जाना चाहिये, ताकि वे [[इस्लाम]] के दुश्मनों के वर्चस्व को रोक सकें।[12]
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