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"सूर ए शम्स": अवतरणों में अंतर

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:''मुख्य लेख:'' [[सूरों के फ़ज़ाइल]]
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पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है: "जो कोई सूर ए शम्स पढ़ता है, मानो उसने उतना ही दान ([[सदक़ा]]) दिया है जितना सूरज और चाँद उस पर चमकते हैं।"<ref>तबरसी, मजमा उल बयान, 1995 ईस्वी, खंड 10, पृष्ठ 367।</ref> इसके अलावा यह भी वर्णित हुआ है कि पैग़म्बर (स) अपने साथियों को विभिन्न नमाज़ों में सूर ए शम्स पढ़ने का आदेश दिया करते थे।<ref>देखें: मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 89, पृष्ठ 325।</ref> [[इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम|इमाम सादिक़ (अ)]] से भी वर्णित हुआ है कि: "जो कोई भी सूर ए शम्स पढ़ता है, [[क़यामत]] के दिन उसके शरीर के सभी अंग और उसके आप पास की वस्तुएँ उसके लाभ में गवाही देंगी और भगवान कहेगा: मैं अपने बंदे के बारे में तुम्हारी गवाही स्वीकार करता हूं और स्वर्ग तक उसका साथ दूंगा ताकि वह जो चाहे चुन सके और स्वर्ग का आशीर्वाद (नेअमतें) उस पर बना रहे"।<ref>शेख़ सदूक़, सवाब अल आमाल, 1382 शम्सी, पृष्ठ 123।</ref>
पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है: "जो कोई सूर ए शम्स पढ़ता है, मानो उसने उतना ही दान ([[सदक़ा]]) दिया है जितना सूरज और चाँद उस पर चमकते हैं।"<ref>तबरसी, मजमा उल बयान, 1995 ईस्वी, खंड 10, पृष्ठ 367।</ref> इसके अलावा यह भी वर्णित हुआ है कि पैग़म्बर (स) अपने साथियों को विभिन्न नमाज़ों में सूर ए शम्स पढ़ने का आदेश दिया करते थे।<ref>देखें: मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 89, पृष्ठ 325।</ref> [[इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम|इमाम सादिक़ (अ)]] से भी वर्णित हुआ है कि: "जो कोई भी सूर ए शम्स पढ़ता है, [[क़यामत]] के दिन उसके शरीर के सभी अंग और उसके आप पास की वस्तुएँ उसके लाभ में गवाही देंगी और भगवान कहेगा: मैं अपने बंदे के बारे में तुम्हारी गवाही स्वीकार करता हूं और स्वर्ग तक उसका साथ दूंगा ताकि वह जो चाहे चुन सके और स्वर्ग का आशीर्वाद (नेअमतें) उस पर बना रहे"।<ref>शेख़ सदूक़, सवाब अल आमाल, 1382 शम्सी, पृष्ठ 123।</ref>
 
[[चित्र:امامزاده-اظهر5.jpg|अंगूठाकार|सूर ए शम्स इमामज़ादेह अज़हर बिन अली के क़ब्र के ताबूत पर]]
=== मुस्तहब नमाज़ों में पढ़ना ===
=== मुस्तहब नमाज़ों में पढ़ना ===
सूर ए शम्स, [[ईद उल फ़ित्र|ईद उल फ़ितर]] और [[ईद उल अज़्हा]] की [[नमाज़े ईद|नमाज़]] की दूसरी रकअत और कुछ के अनुसार पहली रकअत में पढ़ना [[मुस्तहब]] है।<ref>नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 2000 ईस्वी, खंड 11, पृष्ठ 358।</ref> इसी तरह [[दह्व उल अर्ज़]] ([[25 ज़िल क़ादा]]), के दिन दो रकअत नमाज़ पढ़ना और हर रकअत में [[सूर ए हम्द]] के बाद पांच बार सूर ए शम्स पढ़ना मुस्तहब है।<ref>हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1414 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 182।</ref>
सूर ए शम्स, [[ईद उल फ़ित्र|ईद उल फ़ितर]] और [[ईद उल अज़्हा]] की [[नमाज़े ईद|नमाज़]] की दूसरी रकअत और कुछ के अनुसार पहली रकअत में पढ़ना [[मुस्तहब]] है।<ref>नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 2000 ईस्वी, खंड 11, पृष्ठ 358।</ref> इसी तरह [[दह्व उल अर्ज़]] ([[25 ज़िल क़ादा]]), के दिन दो रकअत नमाज़ पढ़ना और हर रकअत में [[सूर ए हम्द]] के बाद पांच बार सूर ए शम्स पढ़ना मुस्तहब है।<ref>हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1414 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 182।</ref>
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