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"हदीस सक़लैन": अवतरणों में अंतर

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किताब बसाएर अल दराजात के अनुसार इस हदीस के शब्द, शिया हदीसी स्रोतों में [[इमाम मुहम्मद बाक़िर अ|इमाम बाक़िर (अ)]] द्वारा वर्णित इस प्रकार हैं: «'''يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنِّی تَارِکٌ فِيكُمُ الثَّقَلَيْنِ أَمَا إِنْ تَمَسَّكْتُمْ بِهِمَا لَنْ تَضِلُّوا: كِتَابَ اللَّهِ وَ عِتْرَتِی أَهْلَ بَيْتِی فَإِنَّهُمَا لَنْ يَفْتَرِقَا حَتَّى يَرِدَا عَلَیَّ الْحَوْض'''؛ (या अय्योहन नास इन्नी तारेकुन फ़ीकुम अल सक़लैन अमा इन तमस्सकतुम बेहेमा लन तज़िल्लो: किताबल्लाह व इतरती अहले बैती फ़ा इन्नाहोमा लन यफ़तरेक़ा हत्ता यरेदा अलय्या अल हौज़) ऐ लोगों, मैं तुम्हारे बीच दो अनमोल चीज़ें छोड़े जा रहा हूं, यदि तुम उन पर क़ायम रहोगे तो कभी नहीं भटकोगे। वे दो चीज़े, ईश्वर की किताब (कुरआन) और अतरत और मेरे अहले बैत हैं। वास्तव में, वे दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे यहाँ तक की हौज़ के किनारे मुझ से मुलाक़ात करेंगे।<ref>सफ़्रफ़ार, बसाएर अल-दराजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 413, हदीस 3।</ref>
किताब बसाएर अल दराजात के अनुसार इस हदीस के शब्द, शिया हदीसी स्रोतों में [[इमाम मुहम्मद बाक़िर अ|इमाम बाक़िर (अ)]] द्वारा वर्णित इस प्रकार हैं: «'''يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنِّی تَارِکٌ فِيكُمُ الثَّقَلَيْنِ أَمَا إِنْ تَمَسَّكْتُمْ بِهِمَا لَنْ تَضِلُّوا: كِتَابَ اللَّهِ وَ عِتْرَتِی أَهْلَ بَيْتِی فَإِنَّهُمَا لَنْ يَفْتَرِقَا حَتَّى يَرِدَا عَلَیَّ الْحَوْض'''؛ (या अय्योहन नास इन्नी तारेकुन फ़ीकुम अल सक़लैन अमा इन तमस्सकतुम बेहेमा लन तज़िल्लो: किताबल्लाह व इतरती अहले बैती फ़ा इन्नाहोमा लन यफ़तरेक़ा हत्ता यरेदा अलय्या अल हौज़) ऐ लोगों, मैं तुम्हारे बीच दो अनमोल चीज़ें छोड़े जा रहा हूं, यदि तुम उन पर क़ायम रहोगे तो कभी नहीं भटकोगे। वे दो चीज़े, ईश्वर की किताब (कुरआन) और अतरत और मेरे अहले बैत हैं। वास्तव में, वे दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे यहाँ तक की हौज़ के किनारे मुझ से मुलाक़ात करेंगे।<ref>सफ़्रफ़ार, बसाएर अल-दराजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 413, हदीस 3।</ref>


हदीस सक़लैन सहीह मुस्लिम में ज़ैद इब्ने अरक़म से इस प्रकार वर्णित हुई है: «... '''وَأَنَا تَارِکٌ فِيكُمْ ثَقَلَيْنِ: أَوَّلُهُمَا كِتَابُ اللهِ فِيهِ الْهُدَى وَالنُّورُ فَخُذُوا بِكِتَابِ اللهِ، وَاسْتَمْسِكُوا بِهِ فَحَثَّ عَلَى كِتَابِ اللهِ وَرَغَّبَ فِيهِ، ثُمَّ قَالَ: «وَأَهْلُ بَيْتِی أُذَكِّرُكُمُ اللهَ فِی أَهْلِ بَيْتِی، أُذَكِّرُكُمُ اللهَ فِی أَهْلِ بَيْتِی، أُذَكِّرُكُمُ اللهَ فِی أَهْلِ بَيْتِی'''.» (व अना तारेकुन फ़ीकुम सक़लैन: अव्वलोहोमा किताबुल्लाह फ़ीहे अल होदा व अल नूर फ़ा ख़ुज़ू बे किताबिल्लाह, वस्तमसेकू बेही फ़ा हस्सा अला किताबिल्लाह व रग़्ग़बा फ़ीहे, सुम्मा क़ाला: (व अहलो बैती ओज़क्केरोकुम अल्लाह फ़ी अहले बैती, ओज़क्केरोकुम अल्लाह फ़ी अहले बैती, ओज़क्केरोकुम अल्लाह फ़ी अहले बैती)<ref>मुस्लिम नीशापुरी, सहीह मुस्लिम, दार अल इह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 4, पृष्ठ 1873, हदीस 36।</ref> "मैं तुम्हारे बीच दो अनमोल चीजें छोड़े जा रहा हूं: पहली, ईश्वर की पुस्तक, जिसमें मार्गदर्शन (हिदायत) और प्रकाश (नूर) है। इसलिए परमेश्वर की पुस्तक को थामे रहो। पैग़म्बर ने ईश्वर की पुस्तक पर प्रोत्साहित किया और आग्रह किया। और फिर कहा: "मेरे परिवार, मैं तुम्हें भगवान की याद दिलाता हूं, और मेरे परिवार, मैं तुम्हें भगवान की याद दिलाता हूं।" यह इंगित करते हुए कि आपको अहले बैत के प्रति अपनी एलाही ज़िम्मेदारी को नहीं भूलना चाहिए।<ref>मकारिम शिराज़ी, पयामे कुरआन, 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 63।</ref>
हदीस सक़लैन सहीह मुस्लिम में [[ज़ैद बिन अरक़म]] से इस प्रकार वर्णित हुई है: «... '''وَأَنَا تَارِکٌ فِيكُمْ ثَقَلَيْنِ: أَوَّلُهُمَا كِتَابُ اللهِ فِيهِ الْهُدَى وَالنُّورُ فَخُذُوا بِكِتَابِ اللهِ، وَاسْتَمْسِكُوا بِهِ فَحَثَّ عَلَى كِتَابِ اللهِ وَرَغَّبَ فِيهِ، ثُمَّ قَالَ: «وَأَهْلُ بَيْتِی أُذَكِّرُكُمُ اللهَ فِی أَهْلِ بَيْتِی، أُذَكِّرُكُمُ اللهَ فِی أَهْلِ بَيْتِی، أُذَكِّرُكُمُ اللهَ فِی أَهْلِ بَيْتِی'''.» (व अना तारेकुन फ़ीकुम सक़लैन: अव्वलोहोमा किताबुल्लाह फ़ीहे अल होदा व अल नूर फ़ा ख़ुज़ू बे किताबिल्लाह, वस्तमसेकू बेही फ़ा हस्सा अला किताबिल्लाह व रग़्ग़बा फ़ीहे, सुम्मा क़ाला: (व अहलो बैती ओज़क्केरोकुम अल्लाह फ़ी अहले बैती, ओज़क्केरोकुम अल्लाह फ़ी अहले बैती, ओज़क्केरोकुम अल्लाह फ़ी अहले बैती)<ref>मुस्लिम नीशापुरी, सहीह मुस्लिम, दार अल इह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 4, पृष्ठ 1873, हदीस 36।</ref> "मैं तुम्हारे बीच दो अनमोल चीजें छोड़े जा रहा हूं: पहली, ईश्वर की पुस्तक, जिसमें मार्गदर्शन (हिदायत) और प्रकाश (नूर) है। इसलिए परमेश्वर की पुस्तक को थामे रहो। पैग़म्बर ने ईश्वर की पुस्तक पर प्रोत्साहित किया और आग्रह किया। और फिर कहा: "मेरे परिवार, मैं तुम्हें भगवान की याद दिलाता हूं, और मेरे परिवार, मैं तुम्हें भगवान की याद दिलाता हूं।" यह इंगित करते हुए कि आपको अहले बैत के प्रति अपनी एलाही ज़िम्मेदारी को नहीं भूलना चाहिए।<ref>मकारिम शिराज़ी, पयामे कुरआन, 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 63।</ref>


कुछ स्रोतों में, "सक़लैन" के स्थान पर "ख़लीफ़तैन" (दो उत्तराधिकारी)<ref>सदूक़, कमाल अल-दीन व तमाम अल-नेअमा, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 240; इब्ने हंबल, मुसनद अहमद बिन हंबल, 1416 हिजरी, खंड 35, पृ. 456, 512; हैसमी, मजमा अल-ज़वाएद, दार अल-किताब अल-अरबी, खंड 9, पृष्ठ 163; मुतक़्क़ी हांदी, कंज़ल अल उम्माल, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 186; शुश्त्री, अहक़ाक अल-हक़, 1409 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 375, खंड 18, पृष्ठ 279-281।</ref> या "अमरैन" (दो अम्र)<ref>कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 294।</ref> शब्द उद्धृत किया गया है। कुछ स्रोतों में, "इतरती" के स्थान पर "सुन्नती" शब्द का उपयोग किया गया है।<ref>सदूक़, कमाल अल-दीन व तमाम अल-नेअमा देखें, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 235; मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ल अल उम्माल, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 173, 187।</ref> मरज ए तक़लीद और [[तफ़सीरे नमूना]] के लेखक [[नासिर मकारिम शिराज़ी]] का मानना है कि जिन उद्धरणों में "इतरती" के बजाय "सुन्नती" का उपयोग किया जाता है। उद्धृत नहीं किया जा सकता; प्रामाणिकता की धारणा पर इन उद्धरणों और अन्य उद्धरणों में कोई विरोधाभास नहीं है; क्योंकि पैग़म्बर ने एक स्थान पर किताब और सुन्नत की सिफ़ारिश की है और दूसरे स्थान पर किताब और इतरत की।<ref>मकारिम शिराज़ी, पयामे कुरआन, 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 76, 77।</ref>
कुछ स्रोतों में, "सक़लैन" के स्थान पर "ख़लीफ़तैन" (दो उत्तराधिकारी)<ref>सदूक़, कमाल अल-दीन व तमाम अल-नेअमा, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 240; इब्ने हंबल, मुसनद अहमद बिन हंबल, 1416 हिजरी, खंड 35, पृ. 456, 512; हैसमी, मजमा अल-ज़वाएद, दार अल-किताब अल-अरबी, खंड 9, पृष्ठ 163; मुतक़्क़ी हांदी, कंज़ल अल उम्माल, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 186; शुश्त्री, अहक़ाक अल-हक़, 1409 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 375, खंड 18, पृष्ठ 279-281।</ref> या "अमरैन" (दो अम्र)<ref>कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 294।</ref> शब्द उद्धृत किया गया है। कुछ स्रोतों में, "इतरती" के स्थान पर "सुन्नती" शब्द का उपयोग किया गया है।<ref>सदूक़, कमाल अल-दीन व तमाम अल-नेअमा देखें, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 235; मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ल अल उम्माल, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 173, 187।</ref> मरज ए तक़लीद और [[तफ़सीरे नमूना]] के लेखक [[नासिर मकारिम शिराज़ी]] का मानना है कि जिन उद्धरणों में "इतरती" के बजाय "सुन्नती" का उपयोग किया जाता है। उद्धृत नहीं किया जा सकता; प्रामाणिकता की धारणा पर इन उद्धरणों और अन्य उद्धरणों में कोई विरोधाभास नहीं है; क्योंकि पैग़म्बर ने एक स्थान पर किताब और सुन्नत की सिफ़ारिश की है और दूसरे स्थान पर किताब और इतरत की।<ref>मकारिम शिराज़ी, पयामे कुरआन, 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 76, 77।</ref>
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