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"इमाम अली और हज़रत फ़ातिमा की शादी": अवतरणों में अंतर
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'''इमाम अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा सलामुल्ला अलैहा''' की शादी (अरबी: '''زواج الإمام علي من فاطمة الزهراء''') [[शिया | '''इमाम अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा सलामुल्ला अलैहा''' की शादी (अरबी: '''زواج الإمام علي من فاطمة الزهراء''') [[शिया इसना अशरी|शिया]] इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओ मे से एक है जोकि हिजरत के दूसरे या तीसरे साल हुई। क्योकि [[शिया आइम्मा|शिया इमामो]] का सिलसिला इसी शादी का नतीजा और फल है। जबकि शादी की तारीख मे इतिहासकारो के बीच मतभेद है। शोधकर्ताओ के अनुसार [[निकाह]] हिजरी साल के बारहवे महीने की पहली तारीख़ और विदाई 6 तारीख़ को हुई। [[हज़रत अली (अ)]] से पहले [[हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स)]] के साथ शादी का प्रस्ताव [[मुहाजेरीन]] और [[अंसार]] मे से कई व्यक्तियो ने दिया था लेकिन पैंगबर (स) ने उनके प्रस्ताव को यह कहते हुए नकार दिया कि फ़ातिमा की शादी अल्लाह के हाथ मे है। | ||
हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के निकाह का [[ख़ुत्बा]] पैगंबर (स) ने स्वंय पढ़ा था। हज़रत फ़ातिमा (स) के मेहर के संबंध मे कई कथन है। मशूर कथन के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर 500 दिरहम अर्थात 1.5 किलो चांदी थी। जोकि शिया समुदाय के यहा [[मेहर ए फ़ातेमी]] के नाम से मशहूर है। हज़रत अली (अ) ने अपनी ज़िरह (कवच) को बेचकर हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर अदा किया। शादी के अवसर पर मदीने की जनता को खाना खिलाया गया। | हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के निकाह का [[ख़ुत्बा]] पैगंबर (स) ने स्वंय पढ़ा था। हज़रत फ़ातिमा (स) के मेहर के संबंध मे कई कथन है। मशूर कथन के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर 500 दिरहम अर्थात 1.5 किलो चांदी थी। जोकि शिया समुदाय के यहा [[मेहर ए फ़ातेमी]] के नाम से मशहूर है। हज़रत अली (अ) ने अपनी ज़िरह (कवच) को बेचकर हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर अदा किया। शादी के अवसर पर मदीने की जनता को खाना खिलाया गया। | ||
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[[इब्ने शहर आशोब]] ने [[मनाक़िब ए आले अबी तालिब]] मे लिखा है अली (अ) और फ़ातिमा (स) की शादी के समय पैगंबर मिंम्बर पर जाकर खुत्बा पढ़ा उसके पश्चात लोगो को संबोधित करते हुए फ़रमायाः अल्लाह ने मुझे आदेश दिया है कि मै फ़ातिमा की शादी अली के साथ कर दूं अगर अली राज़ी हो तो चार सौ मिसक़ाल चांदी हक़ मेहर के साथ मै फ़ातिमा का निकाह अली के साथ कर दूं। अली (अ) ने इस पर फ़रमायाः मै राज़ी हूं।<ref>इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 350</ref> | [[इब्ने शहर आशोब]] ने [[मनाक़िब ए आले अबी तालिब]] मे लिखा है अली (अ) और फ़ातिमा (स) की शादी के समय पैगंबर मिंम्बर पर जाकर खुत्बा पढ़ा उसके पश्चात लोगो को संबोधित करते हुए फ़रमायाः अल्लाह ने मुझे आदेश दिया है कि मै फ़ातिमा की शादी अली के साथ कर दूं अगर अली राज़ी हो तो चार सौ मिसक़ाल चांदी हक़ मेहर के साथ मै फ़ातिमा का निकाह अली के साथ कर दूं। अली (अ) ने इस पर फ़रमायाः मै राज़ी हूं।<ref>इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 350</ref> | ||
कुछ रिवायतों में हज़रत फ़ातिमा के जीवित रहते हुए अल्लाह ने हज़रत अली (अ) के लिए दूसरी महिलाओ के साथ शादी हराम क़रार दी थी।<ref>शेख तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 43</ref> इसीलिए आपने हज़रत फ़ातिमा के जीवन काल मे दूसरी शादी नही की। | कुछ रिवायतों में हज़रत फ़ातिमा के जीवित रहते हुए अल्लाह ने हज़रत अली (अ) के लिए दूसरी महिलाओ के साथ शादी [[हराम]] क़रार दी थी।<ref>शेख तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 43</ref> इसीलिए आपने हज़रत फ़ातिमा के जीवन काल मे दूसरी शादी नही की। | ||
==शादी की तारीख़== | ==शादी की तारीख़== | ||
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* दूसरी हिजरी के सफर महीने के आखिर मे शादी हुई।<ref> तबरी, तारीख़ उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 3, पेज 410</ref> | * दूसरी हिजरी के सफर महीने के आखिर मे शादी हुई।<ref> तबरी, तारीख़ उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 3, पेज 410</ref> | ||
* निकाह रजब के महीने मे और [[जंगे बद्र]] से वापसी पर हज़रत अली (अ) ने शादी की।<ref>इब्ने सअद, अल तबक़ात उल कुब्रा, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 18; तबरि, तारीख़ उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 11, पेज 598</ref> | * निकाह रजब के महीने मे और [[जंगे बद्र]] से वापसी पर हज़रत अली (अ) ने शादी की।<ref>इब्ने सअद, अल तबक़ात उल कुब्रा, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 18; तबरि, तारीख़ उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 11, पेज 598</ref> | ||
* इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के अनुसार, निकाह रमज़ान के महीने मे और शादी हिजरत के दूसरे साल ज़िल हिज्जा के महीने मे हुई।<ref> अरबेली, कश्फ़ उल ग़ुम्मा, 1381 हिजरी, भाग 1, पेज 364</ref> | * [[इमाम सादिक़ (अ)]] की रिवायत के अनुसार, निकाह रमज़ान के महीने मे और शादी हिजरत के दूसरे साल ज़िल हिज्जा के महीने मे हुई।<ref> अरबेली, कश्फ़ उल ग़ुम्मा, 1381 हिजरी, भाग 1, पेज 364</ref> | ||
* [[सय्यद इब्ने ताऊस]] के अनुसार शादी की तारीख़ हिजरत के तीसरे साल 21 मोहर्रम है।<ref>इब्ने ताऊस, इक़बाल उल आमाल, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 584</ref> | * [[सय्यद इब्ने ताऊस]] के अनुसार शादी की तारीख़ हिजरत के तीसरे साल 21 मोहर्रम है।<ref>इब्ने ताऊस, इक़बाल उल आमाल, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 584</ref> | ||
* निकाह माहे सफ़र के आख़िर मे और शादी हिजरत के दूसरे साल ज़िल हिज्जा मे हुई।<ref>मजलिसी, बेहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 19, पेज 192-193</ref> | * निकाह माहे सफ़र के आख़िर मे और शादी हिजरत के दूसरे साल ज़िल हिज्जा मे हुई।<ref>मजलिसी, बेहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 19, पेज 192-193</ref> | ||
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==हक़ मेहर और दहेज== | ==हक़ मेहर और दहेज== | ||
रिवायतों में हज़रत फ़ातिमा (स) का हक़ मेहर साढ़े बारह औंस,<ref> तबरसी, आलाम उल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 160-161</ref> 500 दिरहम, 480 दिरहम और 400 मिसक़ाल चांदी<ref> इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 351</ref> का उल्लेख है। शिया मोहद्दिस [[शहर इब्ने आशोब]] के अनुसार हक़ मेहर 500 दिरहम है।<ref> इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 351</ref> जो मेहर शिया समुदाय मे मशहूर है उसको मेहर उस सुन्ना कहते है जोकि 500 दिरहम<ref>मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 93, पेज 170</ref> निर्धारित हुआ था। जोकि लगभग 1.5 किलोग्राम शुद्ध चांदी के बराबर होता है।<ref>मसऊदी, “(पुज़ुहिशी दर बारा ए मेहर उस सुन्ना (मेहर ए मुहम्मदी)”, पेज 114 </ref> | रिवायतों में हज़रत फ़ातिमा (स) का हक़ मेहर साढ़े बारह औंस,<ref> तबरसी, आलाम उल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 160-161</ref> 500 दिरहम, 480 दिरहम और 400 मिसक़ाल चांदी<ref> इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 351</ref> का उल्लेख है। [[इमामिया|शिया]] मोहद्दिस [[शहर इब्ने आशोब]] के अनुसार हक़ मेहर 500 दिरहम है।<ref> इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 351</ref> जो मेहर शिया समुदाय मे मशहूर है उसको मेहर उस सुन्ना कहते है जोकि 500 दिरहम<ref>मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 93, पेज 170</ref> निर्धारित हुआ था। जोकि लगभग 1.5 किलोग्राम शुद्ध चांदी के बराबर होता है।<ref>मसऊदी, “(पुज़ुहिशी दर बारा ए मेहर उस सुन्ना (मेहर ए मुहम्मदी)”, पेज 114 </ref> | ||
[[शेख़ तूसी]] की किताब [[अमाली]] के अनुसार इमाम अली (अ) ने अपने कवच को बेच कर हज़रत फ़ातिमा का हक़ मेहर अदा किया।<ref> शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 40</ref> पैंगबर (स.) ने उसमे से कुछ दिरहम [[बिलाल हब्शी]] को देकर कहा इससे मेरी बेटी फ़ातिमा के लिए अच्छी खुशबु अर्थात इत्र खरीद कर लाओ।<ref>शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 41</ref> बाक़ी बची हुई रक़म [[अम्मार यासिर]] और कुछ सहाबा को देकर फ़रमाया इससे घरेलू चीज़े अर्थात दहेज तैयार करो जिन की मेरी बेटी को आवश्यकता होगी। | [[शेख़ तूसी]] की किताब [[अमाली]] के अनुसार इमाम अली (अ) ने अपने कवच को बेच कर हज़रत फ़ातिमा का हक़ मेहर अदा किया।<ref> शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 40</ref> पैंगबर (स.) ने उसमे से कुछ दिरहम [[बिलाल हब्शी]] को देकर कहा इससे मेरी बेटी फ़ातिमा के लिए अच्छी खुशबु अर्थात इत्र खरीद कर लाओ।<ref>शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 41</ref> बाक़ी बची हुई रक़म [[अम्मार यासिर]] और कुछ सहाबा को देकर फ़रमाया इससे घरेलू चीज़े अर्थात दहेज तैयार करो जिन की मेरी बेटी को आवश्यकता होगी। |