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"सैफ़ बिन हारिस बिन सरीअ हमदानी": अवतरणों में अंतर

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'''सैफ़ बिन हारिस बिन सरीअ हमदानी''' (फ़ारसी: سیف بن حارث بن سریع همدانی) ([[शहादत]] [[61 हिजरी]]) [[कर्बला]] के शहीदों में से एक हैं जो [[आशूरा के दिन]] अपने चचेरे भाई और सौतेले भाई [[मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ]] के साथ [[शहीद]] हुए थे। सैफ़ हमदान जनजाति और बनी जाबिर क़बीले से थे; इसलिए, उनका और उनके चचेरे भाई का उल्लेख जाबिरी के शहीदों के रूप में किया गया है।
'''सैफ़ बिन हारिस बिन सरीअ हमदानी''' (फ़ारसी: سیف بن حارث بن سریع همدانی) ([[शहादत]] [[61 हिजरी]]) [[कर्बला]] के शहीदों में से एक हैं जो [[आशूरा के दिन]] अपने चचेरे भाई और सौतेले भाई [[मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ हमदानी|मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ]] के साथ [[शहीद]] हुए थे। सैफ़ हमदान जनजाति और बनी जाबिर क़बीले से थे; इसलिए, उनका और उनके चचेरे भाई का उल्लेख जाबिरी के शहीदों के रूप में किया गया है।


स्रोतों में, उनके और मलिक के साथ [[इमाम हुसैन (अ)]] की बातचीत की सूचना दी गई है; इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आशूरा के दिन वह दोनो रोते हुए, इमाम के पास आए और जब इमाम के रोने कारण पूछा तो जवाब में उन्होंने इस प्रकार बताया: हम इस लिये रो रहे है कि हम दुश्मन के सामने इमाम के लिये कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
स्रोतों में, उनके और मलिक के साथ [[इमाम हुसैन (अ)]] की बातचीत की सूचना दी गई है; इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आशूरा के दिन वह दोनो रोते हुए, इमाम के पास आए और जब इमाम के रोने कारण पूछा तो जवाब में उन्होंने इस प्रकार बताया: हम इस लिये रो रहे है कि हम दुश्मन के सामने इमाम के लिये कुछ नहीं कर पा रहे हैं।


==नाम और वंश==
==नाम और वंश==
सैफ़ बिन हारिस बिन सरीअ [[कर्बला के शहीदों]] में से एक हैं,<ref> अबी मख़नफ, वक़आ अल-तफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 234; तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 442।</ref> और कुछ का मानना ​​है कि उनका नाम अन्य स्रोतों "शबीब बिन हारिस बिन सरीअ"<ref> जज़ायेरी, रियाज़ अल-अबरार, 1427, खंड 1, पृष्ठ 319।</ref> और "सुफ़ियान बिन सरीअ" भी उल्लेख किया गया है।<ref> मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा इमाम हुसैन (अ), 2008, खंड 6, पृष्ठ 219।</ref> कुछ लोगों ने संभावना व्यक्त की है कि सैफ़ बिन हर्स, जिन्हें कुछ स्रोतों में कर्बला के शहीदों में गिना जाता है,<ref> बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 एएच, खंड 3, पृष्ठ 198।</ref> वही सैफ़ बिन हारिस हैं।<ref> मुहद्दिसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 237।</ref>


सैफ़ बिन हारिस बिन सरीअ [[कर्बला के शहीदों]] में से एक हैं, <ref> अबी मख़नफ, वक़आ अल-तफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 234; तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 442।</ref> और कुछ का मानना ​​है कि उनका नाम अन्य स्रोतों "शबीब बिन हारिस बिन सरीअ" <ref> जज़ायेरी, रियाज़ अल-अबरार, 1427, खंड 1, पृष्ठ 319।</ref> और "सुफ़ियान बिन सरीअ" [नोट 1] भी उल्लेख किया गया है। <ref> मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा इमाम हुसैन (अ), 2008, खंड 6, पृष्ठ 219।</ref> कुछ लोगों ने संभावना व्यक्त की है कि सैफ़ बिन हर्स, जिन्हें कुछ स्रोतों में कर्बला के शहीदों में गिना जाता है, <ref> बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 एएच, खंड 3, पृष्ठ 198।</ref> वही सैफ़ बिन हारिस हैं। <ref> मुहद्दिसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 237।</ref>
सैफ़ बिन हारिस का उल्लेख [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] की रजबिया तीर्थपत्र में किया गया है<ref> मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 98, पृष्ठ 340।</ref> लेकिन [[ज़ियारत अल-शोहदा]] (ज़ियारत नाहिया ग़ैर मशहूर) में शबीब बिन हारिस बिन सरीअ पर सलाम किया गया है।<ref> इब्न मशहदी, अल-मज़ार अल-कबीर, 1419 एएच, पृष्ठ 495।</ref> कुछ लोग इन्हें एक ही व्यक्ति मानते हैं।<ref> मुहद्दिसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 236; लेखकों का एक समूह, मअल-रकब अल-हुसैनी, 1428 एएच, खंड 4, पृष्ठ 327।</ref>


सैफ़ बिन हारिस का उल्लेख [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] की रजबिया तीर्थपत्र में किया गया है <ref> मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 98, पृष्ठ 340।</ref> लेकिन [[ज़ियारत अल-शोहदा]] (ज़ियारत नाहिया ग़ैर मशहूर) में शबीब बिन हारिस बिन सरीअ पर सलाम किया गया है। <ref> इब्न मशहदी, अल-मज़ार अल-कबीर, 1419 एएच, पृष्ठ 495।</ref> कुछ लोग इन्हें एक ही व्यक्ति मानते हैं। <ref> मुहद्दिसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 236; लेखकों का एक समूह, मअल-रकब अल-हुसैनी, 1428 एएच, खंड 4, पृष्ठ 327।</ref>
कुछ लोगों ने सैफ़ को [[कर्बला]] के युवा शहीदों में गिना है। <ref> मुहद्दिसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 52।</ref> ऐतिहासिक स्रोतों में, सैफ़ बिन हारिस का उल्लेख युवा व्यक्ति के रूप में किया गया है।<ref> अबी मख़नफ, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 234; तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 442।</ref>


कुछ लोगों ने सैफ़ को [[कर्बला]] के युवा शहीदों में गिना है। <ref> मुहद्दिसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 52।</ref> ऐतिहासिक स्रोतों में, सैफ़ बिन हारिस का उल्लेख युवा व्यक्ति के रूप में किया गया है। <ref> अबी मख़नफ, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 234; तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 442।</ref>
=== क़बीला ===
 
सैफ़ बिन हारिस हमदान<ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पृष्ठ 273; शुश्तरी, क़ामूस अल-रेजाल, 1410 एएच, खंड 5, पृष्ठ 375।</ref> जनजाति और बनी जाबिर<ref> अमीन, आयान अल-शिया, 1403 एएच, खंड 7, पृष्ठ 325।</ref> की क़बीले से थे। कुछ लोग उन्हें बनी फ़ायश जनजाति से मानते हैं।<ref> सहारी, अल-अंसाब, 1427 एएच, खंड 2, पृष्ठ 491।</ref> वह और उनके चचेरे भाई [[मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ हमदानी|मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ]], जो माँ की ओर से भाई थे,<ref> अबी मख़नफ, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 234; इब्न असीर, अल-कामिल, 1965, खंड 4, पृष्ठ 72।</ref> को "जाबिरी क़बीले के शहीद" कहा गया है।<ref> क़ुरैशी, हयात अल-इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1413 एएच, खंड 3, पृष्ठ 235।</ref>
'''क़बीला'''
 
सैफ़ बिन हारिस हमदान <ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पृष्ठ 273; शुश्तरी, क़ामूस अल-रेजाल, 1410 एएच, खंड 5, पृष्ठ 375।</ref> जनजाति और बनी जाबिर <ref> अमीन, आयान अल-शिया, 1403 एएच, खंड 7, पृष्ठ 325।</ref> की क़बीले से थे। कुछ लोग उन्हें बनी फ़ायश जनजाति से मानते हैं। <ref> सहारी, अल-अंसाब, 1427 एएच, खंड 2, पृष्ठ 491।</ref> वह और उनके चचेरे भाई मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ, जो माँ की ओर से भाई थे, <ref> अबी मख़नफ, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 234; इब्न असीर, अल-कामिल, 1965, खंड 4, पृष्ठ 72।</ref> को "जाबिरी क़बीले के शहीद" कहा गया है। <ref> क़ुरैशी, हयात अल-इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1413 एएच, खंड 3, पृष्ठ 235।</ref>


==शहादत==
==शहादत==
 
सैफ़ और उनके चचेरे भाई मालिक बिन अब्दुल्लाह सरीअ अपने गुलाम [[शबीब बिन अब्दुल्लाह नहशली]] के साथ [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] के कारवाँ में शामिल हुए।<ref> समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 एएच, खंड 1, पृष्ठ 132।</ref> कहा गया है कि ये तीनों लोग [[कूफ़ा]] से इमाम के पास आये थे।<ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पृष्ठ 273; मुहद्दिसी, फरहंगे आशूरा, 1417 एएच, पेज 236-237, 243।</ref> सुन्नी इतिहासकार मोहम्मद बिन जरीर तबरी (मृत्यु: 310 हिजरी), सैफ़ और मालिक की [[शहादत]] को आशूरा के दिन दोपहर के बाद मानते हैं। तबरी के अनुसार, जब इमाम हुसैन (अ.स.) के साथियों को एहसास हुआ कि दुश्मन की सेना में वृद्धि के कारण जीत संभव नहीं है, तो उन्होने इमाम के लिए अपना जीवन दान करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने का फैसला किया।<ref> तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 442।</ref>
सैफ़ और उनके चचेरे भाई मालिक बिन अब्दुल्लाह सरीअ अपने गुलाम [[शबीब बिन अब्दुल्लाह नहशली]] के साथ [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] के कारवाँ में शामिल हुए। <ref> समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 एएच, खंड 1, पृष्ठ 132।</ref> कहा गया है कि ये तीनों लोग [[कूफ़ा]] से इमाम के पास आये थे। <ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पृष्ठ 273; मुहद्दिसी, फरहंगे आशूरा, 1417 एएच, पेज 236-237, 243।</ref> सुन्नी इतिहासकार मोहम्मद बिन जरीर तबरी (मृत्यु: 310 हिजरी), सैफ़ और मालिक की [[शहादत]] को आशूरा के दिन दोपहर के बाद मानते हैं। तबरी के अनुसार, जब इमाम हुसैन (अ.स.) के साथियों को एहसास हुआ कि दुश्मन की सेना में वृद्धि के कारण जीत संभव नहीं है, तो उन्होने इमाम के लिए अपना जीवन दान करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने का फैसला किया। <ref> तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 442।</ref>


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कहा गया है कि सैफ़ बिन हारिस और [[मालिक बिन अब्दुल्लाह]] ने जब दुश्मन को [[इमाम हुसैन (अ)]] के तम्बू के पास आते देखा, तो आंखों में आंसू लेकर इमाम के पास आए। <ref> मुहद्देसी, फरहंगे आशूरा, 1417 एएच, पेज 236-237, 397।</ref> इमाम ने उनसे पूछा कि वे क्यों रो रहे हैं तो उन्होंने इमाम की स्थिति को देखने और उनकी मदद करने में असमर्थता का उल्लेख किया, जिसके लिए इमाम ने इस समानता के लिए उनकी प्रशंसा और उनके लिए प्रार्थना की। <ref> अबी मख़नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 235; तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 443।</ref> स्रोतों के अनुसार, सैफ़ और मलिक इमाम से बात करने के बाद तेज़ी से जंग के मैदान की ओर गये, जबकि वे युद्ध के लिये एक-दूसरे से आगे निकल रहे थे। <ref> समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 एएच, खंड 1, पृष्ठ 133।</ref> और जंग में एक-दूसरे का साथ दे रहे थे। <ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पीपी 273-274।</ref> थोड़ी देर के बाद सैफ़ और मलिक ने इमाम हुसैन (अ.स.) का अभिवादन (सलाम) किया, और इमाम ने उनके सलाम का जवाब दिया। <ref> अबी मख़नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 235; तबरी, तारीख़ तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 443।</ref>
कहा गया है कि सैफ़ बिन हारिस और [[मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन सरीअ हमदानी|मालिक बिन अब्दुल्लाह]] ने जब दुश्मन को [[इमाम हुसैन (अ)]] के तम्बू के पास आते देखा, तो आंखों में आंसू लेकर इमाम के पास आए।<ref> मुहद्देसी, फरहंगे आशूरा, 1417 एएच, पेज 236-237, 397।</ref> इमाम ने उनसे पूछा कि वे क्यों रो रहे हैं तो उन्होंने इमाम की स्थिति को देखने और उनकी मदद करने में असमर्थता का उल्लेख किया, जिसके लिए इमाम ने इस समानता के लिए उनकी प्रशंसा और उनके लिए प्रार्थना की।<ref> अबी मख़नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 235; तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 443।</ref> स्रोतों के अनुसार, सैफ़ और मलिक इमाम से बात करने के बाद तेज़ी से जंग के मैदान की ओर गये, जबकि वे युद्ध के लिये एक-दूसरे से आगे निकल रहे थे।<ref> समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 एएच, खंड 1, पृष्ठ 133।</ref> और जंग में एक-दूसरे का साथ दे रहे थे।<ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पीपी 273-274।</ref> थोड़ी देर के बाद सैफ़ और मलिक ने इमाम हुसैन (अ.स.) का अभिवादन (सलाम) किया, और इमाम ने उनके सलाम का जवाब दिया।<ref> अबी मख़नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 235; तबरी, तारीख़ तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 443।</ref>


इस बातचीत के समान बातें, ग़फ़्फ़ारी क़बीले के दो युवकों, [[अब्दुल्लाह]] और [[अब्द अल-रहमान बिन उरवा गफ्फ़ारी]] के बारे में भी उल्लेख हुई हैं। <ref> लेखकों का एक समूह, मौसूआ कलेमात अल इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1416 एएच, पृष्ठ 448-449।</ref> हालांकि कुछ लोगों का मानना ​​​​है कि कुछ स्रोतों जैसे कि मक़तल अल-हुसैन ख्वारज़मी को, जाबरी क़बीले के इन दो युवकों और ग़फ़्फ़ारी क़बीले के इन दो युवकों में भ्रम हो गया है। <ref> मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा इमाम हुसैन (अ), 2008, खंड 6, पृष्ठ 223।</ref> किताब [[मक़तल अल हुसैन ख़्वारिज़्मी]] ने, उपरोक्त बातचीत का श्रेय दो ग़फ़्फ़ारी युवकों को दिया है, और दो जाबरी युवकों के मामले में, केवल [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] को उनका अभिवादन करना और इमाम का जवाब ही उल्लेख हुआ है। <ref> ख्वारज़मी, मक़तल अल-हुसैन, 1423 एएच, खंड 2, पृ. 27-28।</ref>
इस बातचीत के समान बातें, ग़फ़्फ़ारी क़बीले के दो युवकों, [[अब्दुल्लाह]] और [[अब्द अल-रहमान बिन उरवा गफ्फ़ारी]] के बारे में भी उल्लेख हुई हैं।<ref> लेखकों का एक समूह, मौसूआ कलेमात अल इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1416 एएच, पृष्ठ 448-449।</ref> हालांकि कुछ लोगों का मानना ​​​​है कि कुछ स्रोतों जैसे कि मक़तल अल-हुसैन ख्वारज़मी को, जाबरी क़बीले के इन दो युवकों और ग़फ़्फ़ारी क़बीले के इन दो युवकों में भ्रम हो गया है। <ref> मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा इमाम हुसैन (अ), 2008, खंड 6, पृष्ठ 223।</ref> किताब [[मक़तल अल हुसैन ख़्वारिज़्मी]] ने, उपरोक्त बातचीत का श्रेय दो ग़फ़्फ़ारी युवकों को दिया है, और दो जाबरी युवकों के मामले में, केवल [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] को उनका अभिवादन करना और इमाम का जवाब ही उल्लेख हुआ है।<ref> ख्वारज़मी, मक़तल अल-हुसैन, 1423 एएच, खंड 2, पृ. 27-28।</ref>


सैफ़ और मालिक की ईमानदारी और उनके समर्पण ने कुछ जीवनीकारों का ध्यान आकर्षित किया है <ref> क़ुरैशी, हयाह अल-इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1413 एएच, खंड 3, पृष्ठ 235।</ref> भीषण युद्ध लड़ने और घुड़सवारों और पैदल सैनिकों को मारने के बाद <ref> क़ुरैशी, हयाह अल-इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1413 एएच, खंड 3, पृष्ठ 235।</ref> ये दोनों तलवार और भाले के वार के घायल, इमाम के नज़दीक, <ref> काशेफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 2013, पृष्ठ 384।</ref> और एक ही स्थान पर <ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पृष्ठ 274।</ref> [[शहीद]] हुए। उनके शवों को देखकर इमाम रो पड़े और उनके लिए माफ़ी की प्रार्थना की और भाग्य के सामने आत्मसमर्पण करने की अनिवार्यता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने सभी के ईश्वर के पास लौट कर जाने का इशारा किया। <ref> काशेफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 2013, पृष्ठ 384।
सैफ़ और मालिक की ईमानदारी और उनके समर्पण ने कुछ जीवनीकारों का ध्यान आकर्षित किया है<ref> क़ुरैशी, हयाह अल-इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1413 एएच, खंड 3, पृष्ठ 235।</ref> भीषण युद्ध लड़ने और घुड़सवारों और पैदल सैनिकों को मारने के बाद <ref> क़ुरैशी, हयाह अल-इमाम अल-हुसैन (अ.स.), 1413 एएच, खंड 3, पृष्ठ 235।</ref> ये दोनों तलवार और भाले के वार के घायल, इमाम के नज़दीक,<ref> काशेफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 2013, पृष्ठ 384।</ref> और एक ही स्थान पर<ref> ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 एएच, खंड 34, पृष्ठ 274।</ref> [[शहीद]] हुए। उनके शवों को देखकर इमाम रो पड़े और उनके लिए माफ़ी की प्रार्थना की और भाग्य के सामने आत्मसमर्पण करने की अनिवार्यता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने सभी के ईश्वर के पास लौट कर जाने का इशारा किया।<ref> काशेफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 2013, पृष्ठ 384।
</ref>
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सैफ़ और मालिक की [[शहादत]] का समय अलग-अलग लिखा गया है; कुछ ने [[हज्जाज बिन मसरूक़]] <ref> कशफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 2013, पेज 383-384।</ref> के बाद उनकी शहादत का उल्लेख किया है और कुछ ने हंज़ला बिन क़ैस <ref> मुहद्देसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 237।</ref> या [[हंज़ला बिन असअद]] <ref> तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 443।</ref> की शहादत के बाद ज़िक्र किया है। कहा गया है, कुछ लोगों ने अब्दुल्लाह और अब्द अल-रहमान बिन उर्वा ग़फ़्फ़ारी के बाद उनकी शहादत मानी है। <ref> अबी मख़नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 234।</ref>
सैफ़ और मालिक की [[शहादत]] का समय अलग-अलग लिखा गया है; कुछ ने [[हज्जाज बिन मसरूक़]]<ref> कशफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 2013, पेज 383-384।</ref> के बाद उनकी शहादत का उल्लेख किया है और कुछ ने हंज़ला बिन क़ैस<ref> मुहद्देसी, फ़रहंगे आशूरा, 1417 एएच, पृष्ठ 237।</ref> या [[हंज़ला बिन असअद]]<ref> तबरी, तारीख़े तबरी, 1967, खंड 5, पृष्ठ 443।</ref> की शहादत के बाद ज़िक्र किया है। कहा गया है, कुछ लोगों ने अब्दुल्लाह और अब्द अल-रहमान बिन उर्वा ग़फ़्फ़ारी के बाद उनकी शहादत मानी है।<ref> अबी मख़नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 एएच, पृष्ठ 234।</ref>


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