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"इमाम मूसा काज़िम अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर

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===इमाम काज़िम (अ) और अलवियों का विद्रोह===
===इमाम काज़िम (अ) और अलवियों का विद्रोह===


मूसा बिन जाफ़र का जीवन काल उसी समय था जब अब्बासियों ने सत्ता संभाली थी, और अलवियों द्वारा उनके खिलाफ़ विद्रोह किया गया था। अब्बासी अहले-बैत का पक्ष लेने और समर्थन करने के नारे के साथ सत्ता में आए, लेकिन उन्हें अलवियों का एक भयंकर दुश्मन बनने में देर नहीं लगी और उन्होंने उनमें से बहुत को या मार डाला या कैद कर लिया। अलवियों पर अब्बासी शासकों की सख्ती के कारण कई प्रमुख अलवी विद्रोह पर उतर गये। [[शहीद फ़ख़ का विद्रोह]], यहया बिन अब्दुल्लाह का विद्रोह और इद्रिसियों की सरकार का गठन उन ही में से एक था। फ़ख़ विद्रोह 169 हिजरी में मूसा बिन जाफ़र की इमामत और हादी अब्बासी की खिलाफ़त के दौरान हुआ था। [109] लेकिन इमाम ने इन विद्रोहों में भाग नहीं लिया, और उनकी पुष्टि या अस्वीकार करने में उनकी ओर से कोई स्पष्ट स्थिति नहीं बताई गई है; यहां तक कि तबरिस्तान में विद्रोह के बाद, [[यहया बिन अब्दुल्लाह]] ने एक पत्र में उनके समर्थन न करने की शिकायत भी की। [110] [[मदीना]] में हुए फ़ख़ विद्रोह में इमाम की स्थिति के बारे में दो विचार हैं:
मूसा बिन जाफ़र का जीवन काल उसी समय था जब अब्बासियों ने सत्ता संभाली थी, और अलवियों द्वारा उनके खिलाफ़ विद्रोह किया गया था। अब्बासी अहले-बैत का पक्ष लेने और समर्थन करने के नारे के साथ सत्ता में आए, लेकिन उन्हें अलवियों का एक भयंकर दुश्मन बनने में देर नहीं लगी और उन्होंने उनमें से बहुत को या मार डाला या कैद कर लिया।<ref>अल्लाह अकबरी, राबिता ए अलवियान व अब्बासियान, पृष्ठ 22-23।</ref> अलवियों पर अब्बासी शासकों की सख्ती के कारण कई प्रमुख अलवी विद्रोह पर उतर गये। [[शहीद फ़ख़ का विद्रोह]], यहया बिन अब्दुल्लाह का विद्रोह और इद्रिसियों की सरकार का गठन उन ही में से एक था। फ़ख़ विद्रोह 169 हिजरी में मूसा बिन जाफ़र की इमामत और हादी अब्बासी की खिलाफ़त के दौरान हुआ था।<ref>जाफ़रयान, हयाते फ़िक्री व सेयासी इमामाने शिया, पृष्ठ 384-385।</ref> लेकिन इमाम ने इन विद्रोहों में भाग नहीं लिया, और उनकी पुष्टि या अस्वीकार करने में उनकी ओर से कोई स्पष्ट स्थिति नहीं बताई गई है; यहां तक कि तबरिस्तान में विद्रोह के बाद, [[यहया बिन अब्दुल्लाह]] ने एक पत्र में उनके समर्थन न करने की शिकायत भी की।<ref>कुलैनी, अल काफ़ी, खंड 1, पृष्ठ 367।</ref> [[मदीना]] में हुए फ़ख़ विद्रोह में इमाम की स्थिति के बारे में दो विचार हैं:


* कुछ का मानना ​​है कि इमाम इस विद्रोह से सहमत थे। इस समूह का संदर्भ शहीद फ़ख़ को संबोधित इमाम के शब्द हैं जिसमें इमाम (अ) ने कहा: "इसलिए अपने काम में गंभीर रहें, क्योंकि ये लोग विश्वास (ईमान) का दावा करते हैं, लेकिन गुप्त रूप से बहुदेववाद (शिक्र) रखते हैं।" [111] [112]
* कुछ का मानना ​​है कि इमाम इस विद्रोह से सहमत थे। इस समूह का संदर्भ शहीद फ़ख़ को संबोधित इमाम के शब्द हैं जिसमें इमाम (अ) ने कहा: "इसलिए अपने काम में गंभीर रहें, क्योंकि ये लोग विश्वास (ईमान) का दावा करते हैं, लेकिन गुप्त रूप से बहुदेववाद (शिक्र) रखते हैं।"<ref>कुलैनी, अल काफी, खंड 1, पृष्ठ 366।</ref><ref>मामक़ानी, तंकीहुल मक़ाल, खंड 22, पृष्ठ 285।</ref>
* कुछ अन्य लोगों ने कहा है कि ये विद्रोह इमाम द्वारा अनुमोदित नहीं थे। [113]
* कुछ अन्य लोगों ने कहा है कि ये विद्रोह इमाम द्वारा अनुमोदित नहीं थे।<ref>देखें. जाफ़रयान, हयात फ़िक्री व सेयासी इमामाने शिया, पृष्ठ 389।</ref>


इन बातों के अलग, जब इमाम ने [[शहीद फ़ख़]] के सिर को देखा, तो उन्होने 'इस्तिर्जा' की आयत (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन) का पाठ किया और उनकी प्रशंसा की। [114] हादी अब्बासी ने इमाम काज़िम (अ) को फ़ख़ विद्रोह के आदेश के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और इस कारण से उसने उन्हे जान से मार देने की धमकी दी। [115]
इन बातों के अलग, जब इमाम ने [[शहीद फ़ख़]] के सिर को देखा, तो उन्होने 'इस्तिर्जा' की आयत (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन) का पाठ किया और उनकी प्रशंसा की।<ref>इस्फ़ाहानी, मक़ातिल अल तालेबीन, पृष्ठ 380।</ref> हादी अब्बासी ने इमाम काज़िम (अ) को फ़ख़ विद्रोह के आदेश के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और इस कारण से उसने उन्हे जान से मार देने की धमकी दी।<ref>क़र्शी, हयात अल इमाम मूसा बिन जाफ़र, खंड 1, पृष्ठ 494-496।</ref>


=== क़ैद ===
=== क़ैद ===
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