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"इमाम मूसा काज़िम अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर

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* ऐसे मामलों में जहां अब्बासी ख़लीफा खुद को [[पैगंबर (स)]] का नज़दीकी बताकर अपने शासन को वैध बनाने की कोशिश कर रहे थे, इमाम ने अपने वंश के बारे में बताकर दिखाया कि वह अब्बासियों की तुलना में पैगंबर (स) के ज्यादा क़रीब हैं। जैसे: उनके और हारून अब्बासी के बीच हुई बातचीत में, इमाम काज़िम (अ) ने [[कुरआन]] की आयतों के आधार पर, जिसमें [[मुबाहिला की आयत]] भी शामिल है, अपनी माँ [[हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ)]] के माध्यम से पैग़म्बर (स) से अपने नज़दीक होने को साबित किया।<ref>सदूक़, उय़ून अख़्बार अल रज़ा, खंड 1, पृष्ठ 84-85।</ref><ref>शबरावी, अल इतहाफ़ बे हुब्बे अल अशराफ़, पृष्ठ 295।</ref>
* ऐसे मामलों में जहां अब्बासी ख़लीफा खुद को [[पैगंबर (स)]] का नज़दीकी बताकर अपने शासन को वैध बनाने की कोशिश कर रहे थे, इमाम ने अपने वंश के बारे में बताकर दिखाया कि वह अब्बासियों की तुलना में पैगंबर (स) के ज्यादा क़रीब हैं। जैसे: उनके और हारून अब्बासी के बीच हुई बातचीत में, इमाम काज़िम (अ) ने [[कुरआन]] की आयतों के आधार पर, जिसमें [[मुबाहिला की आयत]] भी शामिल है, अपनी माँ [[हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ)]] के माध्यम से पैग़म्बर (स) से अपने नज़दीक होने को साबित किया।<ref>सदूक़, उय़ून अख़्बार अल रज़ा, खंड 1, पृष्ठ 84-85।</ref><ref>शबरावी, अल इतहाफ़ बे हुब्बे अल अशराफ़, पृष्ठ 295।</ref>
* जब महदी अब्बासी अत्याचार से प्राप्त संपतियों को वापस कर रहा था, इमाम काज़िम (अ) ने उससे [[फ़दक की घटना|फ़दक]] की मांग की।<ref>तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, खंड 4, पृष्ठ 149।</ref> महदी ने उनसे फ़दक की सीमाओं का निर्धारण करने के लिए कहा और इमाम ने उन सीमाओं का निर्धारण किया तो वह अब्बासी सरकार के क्षेत्र के बराबर थीं। [101]
* जब महदी अब्बासी अत्याचार से प्राप्त संपतियों को वापस कर रहा था, इमाम काज़िम (अ) ने उससे [[फ़दक की घटना|फ़दक]] की मांग की।<ref>तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, खंड 4, पृष्ठ 149।</ref> महदी ने उनसे फ़दक की सीमाओं का निर्धारण करने के लिए कहा और इमाम ने उन सीमाओं का निर्धारण किया तो वह अब्बासी सरकार के क्षेत्र के बराबर थीं।<ref>क़र्शी, हयात अल इमाम मूसा बिन जाफ़र, पृष्ठ 472।</ref>
* शियों के 7वें [[इमाम]] ने [[सफ़वान जमाल]], सहित अपने साथियों को अब्बासियों के साथ सहयोग नहीं करने का आदेश दिया था, जिन्होंने उसे अपने ऊंटों को हारुन को किराए पर देने से मना किया था, [102] इसी तरह से इमाम (अ) ने अली बिन यक़तीन से जो हारून के शासन में मंत्री थे, चाहा कि वह दरबार में बने रहें और शियों की सेवा करते रहें। [103] इसके अलावा इमाम काज़िम (अ) ने उसे यह गारंटी देने के लिए कहा कि वह अहले-बैत (अ) के दोस्तों का सम्मान करेगा, और बदले में इमाम ने उसे गारंटी दी कि वह हत्या, कठिनाई और कैद के अधीन नहीं होगा। [104]
* शियों के 7वें [[इमाम]] ने [[सफ़वान जमाल]], सहित अपने साथियों को अब्बासियों के साथ सहयोग नहीं करने का आदेश दिया था, जिन्होंने उसे अपने ऊंटों को हारुन को किराए पर देने से मना किया था,<ref>कश्शी, रिजाल, पृष्ठ 441।</ref> इसी तरह से इमाम (अ) ने अली बिन यक़तीन से जो हारून के शासन में मंत्री थे, चाहा कि वह दरबार में बने रहें और शियों की सेवा करते रहें।<ref>कश्शी, रिजाल, पृष्ठ 433।
</ref> इसके अलावा इमाम काज़िम (अ) ने उसे यह गारंटी देने के लिए कहा कि वह अहले-बैत (अ) के दोस्तों का सम्मान करेगा, और बदले में इमाम ने उसे गारंटी दी कि वह हत्या, कठिनाई और कैद के अधीन नहीं होगा।<ref>अल्लामा मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 75, पृष्ठ 350।</ref>


हालाँकि, यह नहीं मिलता है कि मूसा बिन जाफर (अ) ने उस समय की सरकार का खुलकर विरोध किया हो। वह तक़य्या का पालन करते थे और उन्होने शियों को भी इसका पालन करने का आदेश दिया था। उदाहरण के लिए, हादी अब्बासी की माँ, खिज़रान को लिखे एक पत्र में, उन्होने उसकी मृत्यु पर शोक व्यक्त किया। [105] एक हदीस के अनुसार, जब हारून ने उन्हे तलब किया, तो उन्होने कहा: "चूंकि शासक के सामने तक़य्या अनिवार्य है, इसलिए मैं हारून के पास जाऊंगा।" इसी तरह से उन्होंने अबी तालिब परिवार की शादियों और उनके वंशजों को ख़त्म होने से बचाने के लिए हारून के उपहारों को भी स्वीकार किया। [106] यहां तक ​​​​कि इमाम काज़िम (अ) ने एक पत्र में [[अली बिन यक़तीन]] को कुछ दिनों के लिये सुन्नी तरीक़े से [[वुज़ू]] करने के लिए भी कहा। ता कि उन्हे कोई ख़तरा न हो। [107]
हालाँकि, यह नहीं मिलता है कि मूसा बिन जाफर (अ) ने उस समय की सरकार का खुलकर विरोध किया हो। वह तक़य्या का पालन करते थे और उन्होने शियों को भी इसका पालन करने का आदेश दिया था। उदाहरण के लिए, हादी अब्बासी की माँ, खिज़रान को लिखे एक पत्र में, उन्होने उसकी मृत्यु पर शोक व्यक्त किया।<ref>मजलिसी, बिहार अल अनवार, खंड 48, पृष्ठ 134।</ref> एक हदीस के अनुसार, जब हारून ने उन्हे तलब किया, तो उन्होने कहा: "चूंकि शासक के सामने तक़य्या अनिवार्य है, इसलिए मैं हारून के पास जाऊंगा।" इसी तरह से उन्होंने अबी तालिब परिवार की शादियों और उनके वंशजों को ख़त्म होने से बचाने के लिए हारून के उपहारों को भी स्वीकार किया।<ref>सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा, खंड 1, पृष्ठ 77।</ref> यहां तक ​​​​कि इमाम काज़िम (अ) ने एक पत्र में [[अली बिन यक़तीन]] को कुछ दिनों के लिये सुन्नी तरीक़े से [[वुज़ू]] करने के लिए भी कहा। ता कि उन्हे कोई ख़तरा न हो।<ref>मुफ़ीद, अल इरशाद, खंड 2, पृष्ठ 227-228।</ref>


===इमाम काज़िम (अ) और अलवियों का विद्रोह===
===इमाम काज़िम (अ) और अलवियों का विद्रोह===
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