मदरसा इमानिया (भारत)

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मदरसा इमानिया का प्रवेश द्वार

मदरसा इमानिया (फ़ारसी: مدرسه ایمانیه) या मजमा उल उलूम अल जामेआ अल इमानिया, भारत के बनारस शहर में पहला और सबसे पुराना शिया मदरसा है। इस मदरसा की स्थापना वर्ष 1287 हिजरी में सय्यद बंदा अली और ख़ुर्शीद अली द्वारा की गई थी और ख़ुर्शीद अली की पत्नी की सहायता से पूर्ण हुई। भारत की स्वतंत्रता और नए कानूनों के लागू होने और उचित प्रबंधन की कमी के कारण, मदरसा इमानिया लंबे समय तक स्थिर रहा यहां तक कि वर्ष 1983 ईस्वी में सय्यद मुहम्मद हुसैनी नामक शिया धर्मगुरू के प्रयासों से यह फिर से विकसित हुआ। इमानिया मदरसा शुरू से ही उन भारतीय विद्वानों की उपस्थिति का स्थान रहा है जिन्होंने इस मदरसे से अध्ययन और स्नातक किया है। यह मदरसा अब भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय मदरसों में से एक है।

मदरसा इमानिया का महत्व

मजमा उल उलूम अल जामेआ अल इमानिया या मदरसा इमानिया, भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना शिया धार्मिक मदरसा है।[१] बनारस हिंदुओं के लिए भारत के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहरों में से एक है[२] और जामेआ इमानिया, पहला आधिकारिक और पूर्ण मदरसा था जो एक स्वतंत्र शिया मदरसा के रूप में चल रहा था और इसमें एक भवन, छात्रावास, प्रशासनिक विभाग, पुस्तकालय और कक्षा कक्ष थे।[३] इससे पहले, धार्मिक विज्ञान के छात्रों की शिक्षण और तब्लीग़ की आवश्यकताएं केवल धार्मिक केंद्रों तक ही सीमित थीं जो इमामबाड़ों, हुसैनिया और प्रत्येक क्षेत्र के प्रसिद्ध विद्वानों से विशिष्ट थे।[४]

शुरुआत से, मदरसा इमानिया ने इस्लाम और शियावाद के लिए कई सेवाएं प्रदान की हैं और कई भारतीय प्रोफेसरों और विद्वानों ने इस मदरसा में अध्ययन और स्नातक किया है।[५] इस मदरसे के प्रमुख विद्वानों में सय्यद मुहम्मद यूसुफ़ ज़ंगीपुरी (उस्ताज़ उल उलमा), सय्यद ज़फ़रुल हसन रिज़वी (मदरसा जवादिया के निदेशक), अल्लामा सय्यद मुज्तबा कामूपुरी (अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ऑफ थियोलॉजी के अध्यक्ष), मौलाना सय्यद रसूल अहमद गोपालपुरी (फ़ख़रुल मुदर्रेसीन) और राहत हुसैन गोपालपुरी शामिल हैं।[६]

ऐसा कहा गया है कि यह केंद्र, शियों से विशिष्ट अन्य स्थानों, जैसे मदरसा जवादिया और शेख़ अली हज़ीन लाहिजी की क़ब्र के साथ, बनारस में शिया संस्कृति और इतिहास के एकत्रीकरण का कारण बना हुआ है।[७]

स्थापना

मदरसा इमानिया की स्थापना उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी में वर्ष 1287 हिजरी अर्थात वर्ष 1861 ईस्वी में हुई थी। सय्यद बंदा अली और मौलवी खुर्शीद अली खान ने इसकी स्थापना की और अपनी निजी संपत्ति इस कार्य के लिए समर्पित (वक़्फ़) कर दी।[८] खुर्शीद अली खान की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने मदरसे की सुविधाओं की ज़िम्मेदारी संभाली और वर्ष 1866 ईस्वी में इसका निर्माण पूरा किया।[९] उनके बाद भारत के न्यायविदों में से एक, सय्यद अली जवाद ज़ंगीपुर (बनारस) (मृत्यु 1339 हिजरी) ने मदरसा के विकास के लिए कई प्रयास किए।[१०] उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे सय्यद मुहम्मद सज्जाद बनारसी (मृत्यु 1347 हिजरी) ने इस मदरसे का प्रबंधन संभाला।[११]

मदरसा इमानिया का आंतरिक दृश्य

समय के साथ मदरसे की स्थिति

अपनी स्थापना के आरम्भ से, इमानिया मदरसा में कई मौकूफ़ात (वक़्फ़) संपत्तियां थीं जो मदरसे की आय का स्रोत थीं, लेकिन भारत की स्वतंत्रता और नए ज़मीनदारी कानूनों के लागू होने के साथ, लोगों की अध्ययन करने और विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त करने की इच्छा बढ़ गई, बनारस शहर में कम शिया होने और उचित प्रबंधन न होने के कारण इस मदरसे में ठहराव और बंदी आ गई।[१२] यह मदरसा वर्ष 1983 ईस्वी में सय्यद मुहम्मद हुसैनी नामक एक शिया आलिम, जो बनारस के इमाम जुमा थे, के प्रयासों से पुनर्जीवित किया गया और यह उनके नेतृत्व में फिर से फला-फूला।[१३]

आज की स्थिति

बनारस में इमानिया मदरसा विभिन्न वैज्ञानिक, शैक्षिक और अनुसंधान क्षेत्रों में सक्रिय है और भारतीय उपमहाद्वीप को सांस्कृतिक, मिशनरी (तब्लीग़ी) और धार्मिक सेवाएं प्रदान करता है।[१४] "शम्स अल-अफ़ाज़िल" विद्वानों के लिए इमानिया मदरसे की सर्वोच्च डिग्री है।[१५] सय्यद सादिक़ हुसैनी अश्कवरी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मदरसा इमानिया पुस्तकालय की पांडुलिपियों की तस्वीरें खींची गईं हैं और बनारस के अन्य शिया मदरसों के साथ सूचीबद्ध की गईं हैं।[१६]

फ़ुटनोट

  1. "जामेआ इमानिया", भारतीय विद्वानों की वेबसाइट।
  2. रज़ाई, हुज़ूरे इल्मी शिअयान दर जहान, 1397 शम्सी, पृष्ठ 132।
  3. जाफ़री मुहम्मदी, नक़्शे शिया दर गुस्तरिशे उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, 1397 शम्सी, पृष्ठ 412।
  4. "आयंदेह फ़आलियतहाए इल्मी हौज़ेहाए इल्मिया हिन्द बिस्यार रौशन अस्त" रसा समाचार एजेंसी।
  5. जाफ़री मुहम्मदी, नक़्शे शिया दर गुस्तरिशे उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, 1397 शम्सी, पृष्ठ 412।
  6. जाफ़री मुहम्मदी, नक़्शे शिया दर गुस्तरिशे उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, 1397 शम्सी, पृष्ठ 413-414; मुहम्मदी, "जिरयान शनासी इल्मी व दीनी दर हिन्द", पृष्ठ 148।
  7. हुसैनी अश्कवरी, शिश मक़ाले हिन्दी, 1392 शम्सी, पृष्ठ 20।
  8. जाफ़री मुहम्मदी, नक़्शे शिया दर गुस्तरिशे उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, 1397 शम्सी, पृष्ठ 411।
  9. रज़ाई, हुज़ूरे इल्मी शिअयान दर जहान, 1397 शम्सी, पृष्ठ 132।
  10. मुहम्मदी, "जिरयान शनासी इल्मी व दीनी दर हिन्द", पृष्ठ 151; नक़वी, तराजिम मशाहीर उलमा ए अल हिन्द, 1435 हिजरी, पृष्ठ 283।
  11. मुहम्मदी, "जिरयान शनासी इल्मी व दीनी दर हिन्द", पृष्ठ 152।
  12. जाफ़री मुहम्मदी, नक़्शे शिया दर गुस्तरिशे उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, 1397 शम्सी, पृष्ठ 413।
  13. जाफ़री मुहम्मदी, नक़्शे शिया दर गुस्तरिशे उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, 1397 शम्सी, पृष्ठ 413।
  14. "आयंदेह फ़आलियतहाए इल्मी हौज़ेहाए इल्मिया हिन्द बिस्यार रौशन अस्त" रसा समाचार एजेंसी।
  15. फैज़ान जाफ़र, मराकिज़े इल्मी आमोज़िशी शिअयाने दर अवध; अज़ इक़तेदार याफ़तन इंग्लिश ता इस्तिक़लाले हिन्द, पृष्ठ 219।
  16. हुसैनी अश्कवरी, फ़ेहरिस्त नुस्ख़हाए ख़त्ती किताबखाने मदरसा मज़हर उल उलूम, 1386 शम्सी, पृष्ठ 11-12।

स्रोत

  • "आयंदेह फ़आलियतहाए इल्मी हौज़ेहाए इल्मिया हिन्द बिस्यार रौशन अस्त" रसा समाचार एजेंसी। रिलीज़ दिनांक: 09 आबान, 1388 शम्सी।
  • "जामेआ इमानिया", भारत के विद्वानों की वेबसाइट, देखने की दिनांक: 12 आज़र, 1402 हिजरी।
  • जाफ़री मुहम्मदी, ग़ुलाम जाबिर, नक़्शे शिया दर गुस्तरिश उलूमे इस्लामी दर शिब्हे क़ार्रेह हिन्द, क़ुम, इमाम अली बिन अबी तालिब (अ), 1397 शम्सी।
  • हुसैनी अश्कवरी, फ़ेहरिस्ते नुस्ख़ेहाए ख़त्ती किताबख़ाना मदरसा मज़हर अल उलूम, क़ुम, मजमा ज़ख़ाएर अल इस्लामी, 1386 शम्सी।
  • हुसैनी अश्कवरी, सादिक़, शिश मक़ाले हिन्दी, क़ुम, मजमा ज़ख़ाएर इस्लामी, 1392 शम्सी।
  • रज़ाई, हसन, हुज़ूर इल्मी शिअयान दर जहान, क़ुम, इमाम अली बिन अबी तालिब (अ), 1397 शम्सी।
  • फैज़ान जाफ़र, अली, मराकिज़े इल्मी आमोज़िशे शिअयान दर अवध; अज़ इक़्तेदार याफ़तन इंग्लिश ता इस्तिक़लाले हिन्द (1857 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक), तारीख़े इस्लाम, वसंत 1399 शम्सी - संख्या 81।
  • मुहम्मदी, मोहसिन, "जिरयान शनासी इल्मी व दीनी दर हिन्द; उलमा अंदीशमंदाने शिया दर मंतेक़ा", जिरयान शनासी दीनी- मारेफ़ती दर अरसे बैन अल मेलल द्वि-त्रैमासिक पत्रिका में, संख्या 7, वसंत 1394 शम्सी।
  • नक़वी, अली नक़ी, तराजिम मशाहीर उलमा अल हिन्द, कर्बला, मकतबा अल अत्बा अल अब्बासिया अल-मुक़द्दसा, 1435 हिजरी।