आम तौसीक़
आम तौसीक़ (फ़ारसीःتوثیق عام) विशेष रावीयो की वेसाक़त को कुल्लि और गिरोही शकल मे घोषित करना आम तौसीक़ कहलाती है। आम तौसीक़ इल्म हदीस (हदीस विज्ञान) और इल्म रेजाल (पुरुष विज्ञान) की इस्तेलाह है। उदाहरण स्वरूप जब किसी व्यक्ति के भरोसेमंद होने या न होने से संबंधित चर्चा नही की जाती बल्कि वह व्यक्ति किसी विशेष पुस्तक के रावीयो में से एक है जिसकी सभी रिवायते भरोसेमंद (सेक़ा) मानी जाती हैं, तो उस व्यक्ति को आम तौसीक़ द्वारा सेक़ा माना जाता है। इमाम का वकील होना, किसी व्यक्ति की रिवायतो का अधिक होना और शेख़ इजाज़ा होने को आम तौसीक़ शुमार किया जाता है।
आम तौसीक़ अर्थात सामान्य प्रमाणीकरण के मुक़ाबले (विपरीत) मे ख़ास तौसीक़ अर्थात विशिष्ट प्रमाणीकरण होती है, किसी व्यक्ति की अपनी विशेषताओं की जांच करके एक विशिष्ट नाम और शीर्षक के साथ उसकी वेसाक़त की घोषणा करना खास तौसीक़ कहलाती है।
पुरूषो विज्ञान की परख रखने वाले लोग आम तौसीक़ के कुछ मानदंडों के बारे में असहमत हैं। जैसेकि सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई इब्न क़ूलवैय की आम तौसीक़ के बारे मे कहना है कि इब्न क़ूलवैय ने अपने किताब कामिल अल ज़ियारात के रावीयो के संबंध मे कहा कि वह उनके प्रत्यक्ष शिक्षको से संबंधित है। लेकिन हुर्रे आमोली इब्न क़ूलवैय की इस किताब के सभी रावीयो सहित आम तौसीक़ को मानते है।
आम तौसीक़ वहां प्रभावी होती है जहां कोई खास तौसीक़ नहीं होती; इसका मतलब है कि हमें उस व्यक्ति की जरह और तअदील के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसलिए, यदि रावी की खास तौसीक़ की गई हो तो फिर उसको आम तौसीक़ की आवशयकता नही है।
परिभाषा
आम तौसीक़ इल्म हदीस (हदीस विज्ञान) मे बोला जाने वाला एक शब्द अर्थात इस्तेलाह है, सामान्य रूप से हदीस के वर्णनकर्ताओं मे से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की वेसाक़त की घोषणा करना आम तौसीक़ कहलाती है।[१] आम तौसीक़ के मुक़ाबले (विपरीत) मे ख़ास तौसीक़ होती है जिसमे किसी सामान्य नियम के अस्तित्व के बिना किसी नाम और शीर्षक वाले व्यक्ति या व्यक्तियों की वेसाक़त की घोषणा करना।[२] जैसेकि नज्जाशी ने अपनी पुस्तक में मुहम्मद बिन अबी उमैर को जलील अल-क़द्र माना है।[३]
आम तौसीक़ के उदाहरणों में से एक यह है कि उबैदुल्लाह बिन अली बिन अबी शौअबा की जीवनी में नज्जाशी ने अबी शौअबा के परिवार को भरोसेमंद लोग माना है[४] इसके अलावा, शहीद सानी ने मशाइख इजाज़ा को सेक़ा माना और इस बात को मानते है कि उन्हें अदालत के लिए किसी तौसीक़ और बय्येना की आवश्यकता नहीं है[५] इन दो उदाहरणों में, अबी शौअबा परिवार या शेख इजाज़ा को आम तौसीक़ मे अनुमोदित किया गया है।
एक दूसरा उदाहरण मुहम्मद फ़ाज़िल लंकारानी ने अब्दुर्रहमान बिन हम्माद की वेसाक़त साबित करने और उनकी रिवायतो पर भरोसा करने के संबंध मे लिखा है, हालाँकि शहीद सानी ने किताब मसालिक में अब्दुर्रहमान बिन हम्माद को असत्यापित और अज्ञात मानते हैं, और परिणामस्वरूप, उनके रिवायतो को अविश्वसनीय मानते है; लेकिन यह व्यक्ति कामिल अल-ज़ियारात के वर्णनकर्ताओं में से है और उन लोगों के संग्रह में है जो इब्न क़ूलवैय के आम तौसीक़ वालो के अधीन रहे हैं। यह आम तौसीक़ हमारे लिए हुज्जत (प्रमाण) है। इसलिए, अब्दुर्रहमान बिन हम्माद की रिवायत मान्य है।[६]
आम तौसीक़ के प्राकर
इस किताब की हदीसें हमारे पास शिया सेक़ा रावीयो से आई हैं, और जिन शाज़ हदीसो को इमामो से हम तक रावीयो ने पुहंचाया है, लेकिन रिवायात मे, इल्म और हदीस मे अज्ञात थे और कोई हदीस नकल नही हुई है।[७]
मुहम्मद काज़िम रहमान सताइश ने अपनी किताब तौसीक़ात आम व खास मे आम तौसीक़ को तर्क और दस्तावेज़ीकरण के प्रकार के आधार पर चार श्रेणियों में विभाजित किया है:
- किताबों के रावीयो की तौसीक़: इस प्रकार की तौसीक़ में, हदीस की पुस्तकों के कुछ लेखकों ने जो स्वयं सेक़ा हैं, अपने शिक्षकों को या उनसे रिवायत करने वालों को सेक़ा कहा है। उदाहरण स्वरुप, अली इब्न इब्राहिम ने तफ़सीर क़ुमी के मुक़दमे में अपनी किताब मे मौजूद हदीसों के शिया वर्णनकर्ताओं की तौसीक़ की है, जिन्होने सीधे इमाम (अ) से रिवायत बयान की है। [८] इब्न क़ूलवैय ने अपनी किताब कामिल अल-ज़ियारात और मुहम्मद बिन मश्हदी ने अल-मज़ार अल-कबीर में तथा मुहम्मद अली तबरी ने बशारतुल मुस्तफ़ा किताब मे रावीयो को उन विद्वानों में माना गया है जिन्होंने अपनी पुस्तकों में इस तरह आम तौसीक़ का उपयोग किया है।[९]
- रावीयो के गुरुओं की तौसीक़: कुछ रावीयो की जांच करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया है कि वे अपने विश्वसनीय गुरुओं से हदीस नकल करते हैं। इस प्रकार की तौसीक़ रावीयो के कहने से नही बल्कि रावीयो के अमल से प्राप्त होती है। जैसे कश्शी असहाबे इज्माआ की रिवायत को शिया बुजुर्गों की सहमति के अनुसार सही मानते है। उनके इस कथन से यह निष्कर्ष निकलता है कि असहाबे इज्माअ के सेक़ा है। दूसरा उदाहरण यह है कि नज्जाशी ने कुछ सेक़ा के कार्यों पर आश्चर्य व्यक्त किया जो गैर-सेक़ा से बयान करते थे। उनके शब्दों से उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि नज्जाशी के प्रत्यक्ष शिक्षक सेक़ा हैं।[१०]
- विशेष आधारों पर आधारित तौसीक़: पुरूष विज्ञान की परख रखने वालो ने कुछ उपाधियों को व्यक्तियों की तौसीक़ का कारण माना है; उदाहरण स्वरूप कुछ लोगों के अनुसार, किसी इमाम का वकील होना[११], शेख इजाज़ा होना,[१२] कसीर अल रिवायत होना[१३] किताब और असल का मालिक होना[१४] और मासूम (अ) का दोस्त और साथी होना[१५] वेसाक़त की निशानी हैं।
- रावीयो के परिवारों की तौसीक़: अपने सकारात्मक गुणों के लिए जाने वाले कुछ परिवारों पर पुरूष विज्ञान की परख रखने वालो का भरोसा रहा है। जिन परिवारों को रेजालियान का समर्थन प्राप्त है उनमें अबू शौआबा हल्बी का परिवार, रव्वासी का परिवार और अबू जहम का परिवार शामिल हैं।[१६]
आम तौसीक़ की स्वीकृति में प्रभावी शर्तें
आम तौसीक़ अर्थात सामान्य प्रमाणीकरण की स्वीकृति और व्यक्तियों की वेसाक़त के लिए इसके कार्य के संबंध में, हदीस की परख रखने वाले विद्वानों द्वारा कुछ बिंदुओं पर ध्यान दिया गया है। इनमें से कुछ बिंदु इस प्रकार हैं:
- आम तौसीक़ की सीमा और कार्यक्षेत्र की खोज: व्यक्तियों की तौसीक़ के कार्यक्षेत्र की गणना करना महत्वपूर्ण है। यह मामला कभी-कभी न्यायविदों के बीच विवादित रहा है, उदाहरण स्वरूप सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई ने कामिल अल-ज़ियारात के मुक़दमे में इब्न क़ूलवैय की आम तौसीक़ को अपने प्रत्यक्ष शिक्षक अर्थात मशाईख़ से संबंधित माना; लेकिन हुर्रे आमोली इस वाक्यांश को हदीसों के सभी वर्णनकर्ताओं के लिए तौसीक़ मानते हैं।[१७]
- रेजालियान की राय की वैधता का आधार: पुरूष विज्ञान की परख रखने वाले विद्वानों के पास व्यक्तियों की वेसाक़त स्वीकार करने के अलग-अलग आधार और कारण हैं। इनमें खबर वाहिद की हुज्जियत, गवाहों की गवाही, वुसूक़, इतमिनान और खुबरुवियत शामिल हैं। इसके आधार पर, यह संभव है कि एक तौसीक़ जिसमें खबर वाहिद की हुज्जियत की शर्तें नहीं हैं, परंतु एक न्यायविद् जो विश्वास (इतमिनान) और आश्वासन (वुसूक़) को पर्याप्त मानता है उसकी नज़र मे हुज्जत हो[१८] उदाहरण स्वरूप सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई मुहम्मद बिन मशहदी की किताब अल मज़ार मे तौसीक़ को और इसे प्रमाणित करने वाले लोगों के बीच लंबे समय के अंतराल के कारण स्वीकार नहीं करते हैं और इस खबर को अनुमान के आधार पर जानते हैं[१९] रहमान सतीश के अनुसार, यदि कोई न्यायविद् प्रामाणिकता को विश्वास के आधार पर स्वीकार करता है तो वह वेसाक़त को निश्चित काल और अवधि तक सीमित नहीं मानता है।[२०]
- आम और खास तौसीक़ के बीच संबंध: आम तौसीक़ की प्रभावशीलता पर तब विचार किया जाता है जब कोई खास तौसीक़ नहीं होती या उसकी जरह और तअदील के बारे में कोई जानकारी नहीं होती; हालाँकि, यदि रावी की खास तौसीक़ की गई हो तो उसे आम तौसीक़ की कोई आवश्यकता नहीं है।[२१] इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति की आम तौसीक़ की गई हो, लेकिन विद्वानों ने उस व्यक्ति की स्थिति की जांच करके उसकी वेसाक़त को कमजोर कर दिया हो तो कुछ न्यायविदो के दृष्टि से उस व्यक्ति की वेसाक़त समाप्त हो जाती है।[२२]
फ़ुटनोट
- ↑ हादूई तेहरानी, तहरीर अल मक़ाल फ़ी कुल्लियात इल्म अल रेजाल, 1383 शम्सी, पेज 55
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, मिक़्यास अल रुवात फ़ी कुल्लियात इल्म अल रेजाल, 1422 हिजरी, पेज 213; सुब्हानी, दुरूस मोजिज़ फ़ी इल्मी अल रेजाल व अल देराया, 1380 शम्सी, पेज 25
- ↑ नज्जाशी, रेजाल अल नज्जाशी फहरिस्त अस्मा मुसन्नेफ़ी अल शिया, 1407 हिजरी, पेज 326
- ↑ नज्जाशी, रेजाल अल नज्जाशी फहरिस्त अस्मा मुसन्नेफ़ी अल शिया, 1407 हिजरी, पेज 231
- ↑ हाफ़िज़यान, रसाइल फ़ी अल देराया, 1390 शम्सी, भाग 1, पेज 218
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, आईने कैफ़रि इस्लाम, 1390 शम्सी, भाग 1, पेज 186-187
- ↑ इब्न क़ूलवैह, कामिल अल ज़ियारात, 1356 शम्सी, पेज 4; रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 49
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 42
- ↑ हादूई तेहरानी, तहरीर अल मक़ाल फ़ी कुल्लियात इल्म अल रेजाल, 1383 शम्सी, पेज 56-60
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 72
- ↑ ख़ूई, मोअजम रेजाल अल हदीस व तफ़सील तबक़ात अल रुवात, 1372 शम्सी, भाग 1, पेज 71
- ↑ ख़ूई, मोअजम रेजाल अल हदीस व तफ़सील तबक़ात अल रुवात, 1372 शम्सी, भाग 1, पेज 72
- ↑ अल्लामा हिल्ली, मबानी अल रेजालीया, 1440 हिजरी, पेज 308
- ↑ ख़ूई, मोअजम रेजाल अल हदीस व तफ़सील तबक़ात अल रुवात, 1372 शम्सी, भाग 1, पेज 73
- ↑ ख़ूई, मोअजम रेजाल अल हदीस व तफ़सील तबक़ात अल रुवात, 1372 शम्सी, भाग 1, पेज 73
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 168-175
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 49
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 54
- ↑ ख़ूई, मोअजम रेजाल अल हदीस व तफ़सील तबक़ात अल रुवात, 1372 शम्सी, भाग 1, पेज 51
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 54 और 27
- ↑ रहमान सताइश, तौसीक़ात आम व ख़ास, 1380 शम्सी, पेज 39
- ↑ हादूई तेहरानी, तहरीर अल मक़ाल फ़ी कुल्लियात इल्म अल रेजाल, 1383 शम्सी, पेज 122
स्रोत
- इब्न क़ूलवैह, कामिल अल ज़ियारात, संशोधनः अब्दुल हुसैन अमीनी, क़ुम, दार अल मुर्तजवीया, 1356 शम्सी
- हाफ़िज़यान, अबुल फ़ज़्ल, रसाइल फ़ी अल देराया, रेसाला अल रेआया लेहाल अल बेदाया फ़ी इल्म अल देराया नविश्ते शहीद सानी, क़ुम, मोअस्सेसा इल्मी फ़रहंगी दार अल हदीस, साज़मान चाप व नशर, 1390 शम्सी
- ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, मोअजम रेजाल अल हदीस व तफसील तबक़ात अल रुवात, 1372 शम्सी
- रहमान सताइश, मुहम्मद काज़िम, तौसीक़ात आम व खास, क़ुम, नशर दानिशगाह क़ुरआन व हदीस, 1387 शम्सी
- सुब्हानी, जाफ़र, दुरूस मोजिज़ फ़ी इल्मी अल रेजाल व अल देराया, क़ुम, अल मरकज़ अल आलमी लिल देरासात अल इस्लामी, 1380 शम्सी
- सैफ़ी माज़ंदरानी, अली अकबर, मिक़्यास अल रुवात फ़ी कुल्लियात इल्म अल रेजाल, क़ुम, जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम, 1422 हिजरी
- फ़ाज़िल लंकरानी, मुहम्मद, आईन कैफ़री इस्लाम, क़ुम, मरकज़ फ़िक़्ही आइम्मा अत्हार, 1390 शम्सी
- अल्लामा हिल्ली, मबानी अल रेजालीया, इराक़, अल अत्बा अल अब्बासीया, 1440 हिजरी
- नज्जाशी, अहमद बिन अली, रेजाल अल नज्जाशी फ़हरिस्त अस्मा मुसन्नफ़ी अल शिया, क़ुम, जामेअ मुदर्रेसीन, 1407 हिजरी
- हादूई तेहरानी, महदी, तहरीर अल मक़ाल फ़ी कुल्लियात इल्म अल रेजाल, क़ुम, मोअस्सेसा फ़रहंगी खाने खिरद, 1383 शम्सी