हक़्क़ुल्लाह
हक़्क़ुल्लाह (अरबी: حق الله) बंदो पर अल्लाह के हुक़ूक़ (अधिकार) है। इसके मुक़ाबिल मे हक़्क़ुन्नास (मानव अधिकार) जोकि मानव के एक दूसरे पर अधिकार की ओर संकेत करता है। अल्लाह के हक़्क़ के मुक़ाबिल मे जैसे नमाज़ और रोज़ा जोकि बंदो पर वाजिब क़रार दिया गया है कि अगर उन्हे अंजाम न दिया जाए तो तौबा और कज़ा वाजिब हो जाती है।
इस्लाम के न्यायिक अहकाम में हक़्क़ुल्लाह (अल्लाह के अधिकार) और हक़्क़ुन्नास (मानव अधिकार) के बीच कुछ अंतर हैं; हक़्क़ुल्लाह जैसे ज़िना (बलात्कार) की शरई हद (सज़ा) मे न्यायाधीश अपराधी को स्वीकार करने से मना कर सकता है; लेकिन हक़्क़ुन्नास जैसे चोरी के मामले में ऐसा नहीं कर सकता। हक़्क़ुल्लाह और हक़्क़ुन्नास अर्थात अल्लाह और मानव अधिकार मे अंतर इस तथ्य के कारण भी है कि इस्लाम धर्म में हक़्क़ुल्लाह (अल्लाह के अधिकार) में आसानी और हक़्क़ुन्नास (मानव अधिकार) में गंभीरता और एहतीयात के साथ काम लेने की सिफारिश की गई है।
परिभाषा
इस्लाम धर्म मे अधिकारो (हुक़ूक़) को हक़्क़ुल्लाह और हक़्क़ुन्नास मे विभाजित किया गया है।[१] हक़्क़ुल्लाह का अर्थ, बंदो पर अल्लाह के हुक़ूक़ है जोकि लोगो के एक दूसरे पर अधिकार के मुक़ाबले मे है।[२] हालांकि, हक़्क़ुल्लाह मे सभी ईश्वरीय आदेश और निषेध (अवामिर और नवाही) शामिल[३] करने सहित हक़्क़ुन्नास को भी शामिल है;[४] लेकिन जब इस शब्द का उपयोग हक़्क़ुन्नास के लिए किया जाता है, तो यह केवल उन अधिकारों को संदर्भित करता है जिनमे लोगो का कोई अधिकार नही है और कोई भी उन्हें ख़त्म नहीं कर सकता है।[५]
कानूनी दृष्टिकोण से, कोई भी अपराध जो आदेश को बाधित करता है और सामाजिक हितों और सार्वजनिक अधिकारों को नुकसान पहुंचाता है, उसकी सजा हक़्कुल्लाह मानी जाती है।[६] कुछ फ़ुक़्हा ने अल्लाह के अधिकारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया है: ख़ालिस अल्लाह के अधिकार (हक़्क़ुल्लाह महज़): जैसे कि बलात्कार की सज़ा, लवात और शराब पीना इत्यादि; और वो अधिकार जो अल्लाह के अलावा लोगो के अधिकार (हक़्क़ुल्लाह ग़ैर महज), जैसे: चोरी की सज़ा।[७]
नमाज़[८] और क़ज़्फ़ की सज़ा को छोड़कर सभी सज़ाए पहली श्रेणी से हैं[९] जबकि ताज़ीर[१०] और क़ज़्फ़[११] की सज़ा के अहकाम दूसरी श्रेणी से हैं।
महत्व
आयतो और रिवायतो में हक़्क़ुल्लाह की पाबंदी पर बहुत बल दिया गया है। अल्लामा तबातबाई के अनुसार, सूर ए मुद्दस्सिर की आयत 42 से 45 में, नमाज़ न पढ़ना और गरीबो को खाना न खिलाना नरक में प्रवेश करने का कारण माना जाता है,[नोट १] नमाज़ अल्लाह का अधिकार (हक़्क़ुल्लाह) और गरीबों को खाना खिलाना लोगो का अधिकार (हक़्क़ुन्नास) की ओर इशारा है।[१२] इसी तरह उन्होने सभी दैवीय अधिकारों को दीन सीखने और उन पर अमल करना संक्षेप में प्रस्तुत किया है।[१३] इमाम सज्जाद (अ) के रिसाला ए हक़ूक़ के अनुसार सबसे बड़ा हक़, हक़्क़ुल्लाह है।[१४] फ़िक़्ह में, न्यायिक फैसलों की धारा (क़जाई अहकाम) के अंतर्गत हक़्क़ुल्लाह पर चर्चा होती है। इसे इस्लामी देशो के कानूनों में भी इन अधिकारो के संबंध मे उल्लेख होता है। और सदैव हक़्क़ुल्लाह को हक़्क़ुन्नास पर प्राथमिकता हासिल है।[१५]
अल्लाह और मानव अधिकार मे अंतर
अल्लाह और मानव अधिकार के बीच कुछ अंतर का उल्लेख किया गया है जोकि निम्नलिखित हैः
- न्यायधीश के सामने अल्लाह के अधिकार को साबित करना मानव अधिकार की तुलना मे अधिक कठिन है; क्योकि हक़्क़ुल्लाह एक पुरूष और दो महिलाओ की गवाही या एक पुरूष और एक क़सम (सौगंध) या मात्र महिलाओ की गवाही से साबित नही होती लेकिन कुछ मानव अधिकार इनके माध्यम से साबित हो जाते है।[१६]
- अल्लाह के अधिकार को लागू करने के लिए किसी का मुतालबा करना ज़रूरी नही है मानव अधिकार के विपरीत, हकदार की ओर से मुतालबा करना ज़रूरी है।[१७]
- हक़्क़ुल्लाह मे न्यायधीश मानव अधिकार के विपरीत अपराधी को स्वीकार करने से रोक सकता है।[१८]
- हक़्क़ुल्लाह मे अनुपस्थित व्यक्ति के संबंध मे फैसला नही होता है मुलज़िम की अदालत मे उपस्थिति आवश्यक है।[१९]
- हक़्क़ुल्लाह मे जिस व्यक्ति पर जुर्म साबित हुआ है उसके राज़ी होने से सज़ा माफ़ नही होती, जबकि मानव अधिकार के कुछ मामलो मे राज़ी होने से सज़ा माफ़ या परिवर्तित हो सकती है।[२०]
- कुछ हक़्क़ुल्लाह तौबा करने से साक़ित (समाप्त) हो जाते है परंतु मानव अधिकार तौबा करने से माफ़ नही होते।[२१]
- हक़्क़ुल्लाह मे छूट और नरमी से काम लिया जाता है जबकि हक़्क़ुन्नास मे सावधानी और गंभीरता से काम लिया जाता है।[२२] कहा जाता है कि कुछ ने न्यायिक फ़ैसलो मे हक़्क़ुल्लाह और हक़्क़ुन्नास मे अंतर का कारण इसी को बताया है।[२३]
अल्लाह के अधिकार की भरपाई
मनुष्य के वो दायित्व जिन्हे अल्लाह के लिए अंजाम देता है उन्हे हक़्क़ुल्लाह (अल्लाह के अधिकार) कहा जाता है।[२४] यदि इन दायित्वो को पूरा ना करे तो उनकी भरपाई करना होगी, उनमे से कुछ की भरपाई तौबा करके होती है[२५] जबकि नमाज़ और रोज़े के प्रकार के कुछ हुक़ूक़ की क़ज़ा करके भरपाई की जाती है।[२६]
संबंधित लेख
नोट
- ↑ ما سَلَكَكُمْ فِي سَقَرَ ﴿٤۲﴾ قالوا لَمْ نَكُ مِنَ الْمُصَلِّينَ﴿٤٣﴾ و لمْ نَكُ نُطْعِمُ الْمِسْكِينَ﴿٤٤﴾ मा सालाकाकुम फ़ी सक़र, क़ालू लम नको मिनल मुसल्लीन, वा लम नको नुत्एमुल मिस्कीन अनुवादः तुम्हें कौनसी चीज आग में ले आई?" वो कहते हैं: "हम नमाज़ पढ़ने वालों में से नहीं थे और हमने गरीबों को खाना नहीं खिलाया।" (सूर ए मुद्दस्सिर, आयत 42-43)
फ़ुटनोट
- ↑ देखेः इब्ने शैय्बा, तोहफुल उक़ूल, 1404 हिजरी, पेज 255
- ↑ देखेः आमोली, अल-इस्तेलाहात अल-फ़िक्हीया, 1413 हिजरी, पेज 71
- ↑ देखेः अरदबेली, फ़िक्हुल क़ज़ा, 1423 हिजरी, भाग 2, पेज 188
- ↑ देखेः शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43; मूसवी अरदबेली, फ़िक़्हुल क़ज़ा, 1423 हिजरी, भाग 2, पेज 188
- ↑ शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43; देखेः अरदबेली, फ़िक्हुल क़ज़ा, 1423 हिजरी, भाग 2, पेज 188; अब्दुर रहमान, मोअजम अल-मुस्तलेहात वल अल-फ़ाज अल-फ़िक़्हीया, भाग 1, पेज 579
- ↑ शीरी, सक़ूत मजाज़ात दर हक़ूक़ कैफ़री इस्लाम वा ईरान, 1372 शम्सी, पेज 114
- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 8, पेज 163
- ↑ शहीद अव्वल, अल-कवाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43
- ↑ मोहक़्क़िक़ दामाद, कवाइद फ़िक़्ह, 1406 हिजरी, भाग 4, पेज 209
- ↑ मोहक़्क़िक़ दामाद, कवाइद फ़िक़्ह, 1406 हिजरी, भाग 3, पेज 160
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 97
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 97
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 444
- ↑ इब्ने शैय्बा, तोहफुल उक़ूल, 1404 हिजरी, पेज 255
- ↑ आख़ुंदी, आईने दादरसी कैफ़री, 1368 शम्सी, भाग 1, पेज 162 फ़ुटनोट
- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 7, पेज 248-249
- ↑ मुंतज़री, दरासात फ़ी विलायतिल फ़क़ीह, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 201
- ↑ मोहक़्क़िक़ दामाद, क़वाइदे फ़िक़्ह, 1406 हिजरी, भाग 3, पेज 33
- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 8, पेज 163; मोहक़्क़िक़ दामाद, क़वाइदे फ़िक़्ह, 1406 हिजरी, भाग 3, पेज 51
- ↑ देखेः शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43-44
- ↑ अरदबेली, ज़ुब्दातुल बयान, अल-मकतबा तुल जाफ़रीया ले एहयालि आसार अल-जाफ़रीया, पेज 308-309
- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 8, पेज 163
- ↑ मरक़ाई, हक़्क़ुल्लाह वा हक़्क़ुन्नास, भाग 13
- ↑ बहिश्ती, हक़्क़ वा तकलीफ़, पेज 36
- ↑ अरदबेली, ज़ुब्दातुल बयान, अल-मकतबातुल जाफरीया लेएहयाइल आसारे अल-जाफरीया, पेज 308-309
- ↑ बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 949 और 1163
स्रोत
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