अमेरिका में फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों को आयतुल्लाह ख़ामेनेई का पत्र

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अमेरिका में फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने वाले छात्रों को आयतुल्लाह ख़ामेनेई का पत्र, संयुक्त राज्य अमेरिका में फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों के साथ इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई का एकजुटता और सहानुभूति का संदेश, जिन्होंने अल-अक्सा तूफ़ान ऑपरेशन के बाद गाज़ा पट्टी पर इज़राइल के हमलों के ख़िलाफ़ अमेरिकी विश्वविद्यालयों में रैलियां निकालीं।

इस पत्र में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अमेरिका में फ़िलिस्तीन का समर्थन करने वाले युवाओं को प्रतिरोध मोर्चे का हिस्सा बताया, जिन्होंने अपनी सरकार के विपरीत इज़राइल के ख़िलाफ़ सम्मानजनक संघर्ष शुरू किया है और इतिहास के सही पक्ष पर खड़े हैं। उन्होंने ज़ायोनी शासन की स्थापना में इंग्लैंड की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने इंग्लैंड और अमेरिका को इज़राइल के सबसे बड़े समर्थकों के रूप में पेश किया और फ़िलिस्तीनियों के अपनी रक्षा के अधिकार पर ज़ोर दिया। इस पत्र में, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सत्य के मार्ग पर खड़े होने को उन पाठों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है जो क़ुरआन ने मुसलमानों और सभी मनुष्यों को सिखाया है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की व्यवस्था ने प्रतिरोध मोर्चे का विस्तार किया है और उसे सशक्त बनाया है। पत्र के अंत में, उन्होंने युवाओं को क़ुरआन से परिचित होने की सलाह दी।[१] इस पत्र में, अन्य दो पत्रों की तरह, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पश्चिमी युवाओं से इस्लाम धर्म को समझने के लिए प्रामाणिक इस्लामी ग्रंथों का संदर्भ लेने और पूर्वी और पश्चिमी व्याख्याओं और विभिन्न संप्रदायों से प्रभावित न होने के लिए कहा।[२]

इस पत्र के प्रकाशन के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रतिक्रियाएं हुईं और विश्व मीडिया ने इसे प्रतिबिंबित किया।[३] कुछ समाचार एजेंसियों ने बताया कि 31 मई (प्रकाशन के एक दिन बाद) तक अमेरिकी युवाओं को पत्र के विषय के साथ आयतुल्लाह ख़ामेनेई के नाम से उपयोगकर्ता खाते के ट्वीट्स को 15 मिलियन बार देखा गया।[४]

यह पत्र 25 मई, 2024 ईस्वी को जारी किया गया था और[५] इज़राइल द्वारा गाज़ा के लोगों के नरसंहार और हत्या का विरोध करने वाले अमेरिकी विश्वविद्यालय के छात्रों के विद्रोह को अमेरिकी पुलिस के दमन का सामना करना पड़ा।[६] गाज़ा के समर्थन में शांतिपूर्ण छात्र विद्रोह 17 अप्रैल, 2024 को अमेरिकी विश्वविद्यालयों से शुरू हुआ और धीरे-धीरे अन्य पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों तक भी फैल गया।[७] अमेरिकी विश्वविद्यालयों और अन्य देशों से प्रदर्शनकारी छात्रों के दमन, गिरफ्तारी और निष्कासन के कारण अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ हुईं।[८]

अमेरिका में फिलिस्तीन समर्थक छात्रों को आयतुल्लाह ख़ामेनेई का पत्र

अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु और कृपालु है

मैं यह खत उन जवानों को लिख रहा हूँ जिनके बेदार ज़मीरों ने उन्हें ग़ज़्ज़ा के मजलूम बच्चों और औरतों की रक्षा के लिए उत्साहित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका के नौजवान छात्रों ! यह आपसे हमारी हमदिली और एकजुटता का पैग़ाम है। इतिहास बदल रहा है और इस समय आप सही पक्ष में खड़े हो ! आज आपने प्रतिरोध का एक छोटा सा मोर्चा बनाया है। और अतिक्रमणकारी ज़ायोनी शासन का खुल्लम-खुल्ला समर्थन कर रही अपनी सरकार के अन्यायपूर्ण दबाव के बावजूद प्रतिरोध का बिगुल फूंका है। प्रतिरोध का एक बड़ा मोर्चा आपकी इन्ही भावनाओ और जज़्बात के साथ आपसे दूर क्षेत्र में संघर्ष कर रहा है। इस प्रतिरोध का मक़सद उस ज़ुल्म और अत्याचार को रोकना है जो ज़ायोनी दहशतगर्द नेटवर्क वर्षों से फिलिस्तीन पर कर रहा है और उनके देश पर क़ब्ज़ा करने के बाद से उन्हें गंभीर दबाव और उत्पीड़न का शिकार बना रहा है। रंगभेदी ज़ायोनी शासन के हाथों आज का नरसंहार दशकों की क्रूरता का ही सिलसिला है। फ़िलिस्तीन एक संप्रभु भूमि है जहाँ मुसलमान, ईसाई और यहूदियों का एक लंबा इतिहास है। विश्व युद्ध के बाद, ज़ायोनी लॉबी के पूंजीपतियों ने ब्रिटिश सरकार की मदद से धीरे-धीरे हजारों आतंकवादियों को इस धरती पर भेजा जिन्होंने फिलिस्तीन के शहरों और गांवों पर हमला किया, हजारों लोगों को मार डाला या घायल कर दिया, उन्हें पड़ोसी देशों की तरफ भगा दिया, उनके घरों, बाज़ारों और कृषि भूमियों को छीन लिया और फ़िलिस्तीन की हड़पी हुई भूमि पर इस्राईल नामक अवैध राष्ट्र का गठन किया। अंग्रेज़ों की शुरूआती मदद के बाद इस अवैध शासन का सबसे बड़ी मददगार अमेरिका की सरकार है जिसने इस सरकार को लगातार राजनैतिक, आर्थिक और यहाँ तक की सैन्य मदद जारी रखी है। यहाँ तक कि नाक़ाबिले मुआफी लापरवाही करते हुए इस सरकार के लिए परमाणु हथियार बनाने के रास्ते भी खोल दिए और इस मामले में उसकी भरपूर मदद भी की। ज़ायोनी शासन ने पहले दिन से ही निहत्थे असहाय फिलिस्तीनी लोगों के विरुद्ध आक्रमक और हिंसक रवैया अपनाया और तमाम मानवीय और धार्मिक मूल्यों और इंसानी भावनाओं को रौंद डाला जो गुज़रते समय के साथ बढ़ता ही गया। अमेरिकी सरकार और उसके घटक देशों ने राज्य प्रायोजित इस आतंकवाद और ज़ुल्म पर ज़रा सी नाराज़गी का इज़हार भी नहीं किया आज भी ग़ज़्ज़ा के दिल दहला देने वाले जघन्य अपराधों पर अमेरिकी सरकार के बयान सच्चाई पर आधारित न होकर बस औपचारिक होते हैं। प्रतिरोधी मोर्चा ऐसे अंधेर और उदासीन माहौल के बीच से उभरा, ईरान की इस्लामी क्रांति ने इस आंदोलन को बढ़ावा और ताक़त दी। अमेरिका और यूरोप के अधिकांश मीडिया संसाधनों के मालिक या उन्हें अपनी आर्थिक शक्ति के अधीन रखने वाले ज़ायोनी लॉबी के सरग़नाओं ने इस प्रतिरोध को आतंकवाद के नाम से बदनाम किया। क्या अतिक्रमणकारी अत्याचारियों से अपने देश और अपनी मातृभूमि की रक्षा करना आतंकवाद है ? क्या ऐसी क़ौम और ऐसे राष्ट्र की मानवीय सहायता और उसके बाज़ुओं को मज़बूत करना आतंकवाद की मदद कहा जा सकता है ? दुनिया पर दमनकारी प्रभाव रखने वाले सरगना मानवीय मूल्यों की भी परवाह नहीं करते। वह इस्राईल की अतिक्रमणकारी अत्याचारी सरकार के आतंक को आत्मरक्षा बताते हैं और अपनी आज़ादी, सुरक्षा और भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे फिलिस्तीनियों को दहशतगर्द कहते हैं। मैं आपको यक़ीन दिलाना चाहता हूँ कि आज माहौल बदल रहा है। एक नया भविष्य पश्चिमी एशिया के संवेदनशील इलाक़े का इंतेज़ार कर रहा है विश्व स्तर पर बहुत से ज़मीर बेदार हो चुके हैं और हक़ीक़त खुल कर सामने आ चुकी है। प्रतिरोधी मोर्चा भी शक्तिशाली हो चुका है जो अभी और ताक़तवर और मज़बूत होगा। इतिहास बदल रहा है। तारीख़ के पन्ने भी पलटने वाले हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के दर्जनों विश्वविद्यालयों में आप जैसे छात्रों के अलावा, अन्य देशों के विश्वविद्यालय और वहां के लोग भी उठ खड़े हुए हैं। विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा आप जैसे विद्यार्थियों का सहयोग एवं समर्थन एक महत्वपूर्ण एवं निर्णायक घटना है। इस से सरकार का दमनकारी रवैया और आप पर पड़ने वाला दबाव कुछ हद तक कम हो सकता है। मैं भी आप नौ जवानों के प्रति सहानुभूति रखता हूं आप से हमदर्दी का इज़हार करता हूँ और आपकी दृढ़ता की सराहना करता हूं। हम मुसलमानों और दुनिया के सभी लोगों के लिए पवित्र क़ुरआन की सीख यह है कि सच्चाई के रास्ते पर डटे रहो "استقم کما اُمرت۔" मानवीय रिश्तों के बारे में भी क़ुरआने मजीद का साफ़ साफ़ दर्स है कि " न ज़ुल्म कर और न ही ज़ुल्म सहो" لاتَظلمون و لاتُظلمون۔" प्रतिरोधी मोर्चा इन अहकाम और आदेश तथा इन जैसी सैंकड़ों तालीम और सिद्धांतों को सीख कर और इन पर अमल करते हुए आगे बढ़ रहा है और एक दिन अल्लाह की मर्ज़ी से कामयाब भी होगा। मैं अपील करता हूँ कि क़ुरआन को जानने की कोशिश कीजिये।

सय्यद अली ख़ामेनई 25 मई 2024

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फ़ुटनोट

  1. "संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने वाले छात्रों को आयतुल्लाह ख़ामेनेई का पत्र", आयतुल्लाह उज़मा ख़ामेनेई के कार्यों के संरक्षण और प्रकाशन के लिए कार्यालय की वेबसाइट।
  2. बिबन्नूर्ड सरोस्तानी, "फ़ुर्सते दर्क बेदूने पीशदावरी अज़ इस्लाम मोहय्या अस्त", फ़रहिख्तेग़ान अख़बार।
  3. "अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष में अमेरिकी छात्रों को रहबरे इंक़ेलाब का पत्र", मेहर समाचार एजेंसी।
  4. "रहबरे इंक़ालेबा के उपयोगकर्ता ख़ाते पर 15 मिलियन विज़िट", मशरिक़ न्यूज़।
  5. "संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने वाले छात्रों को आयतुल्लाह ख़ामेनेई का पत्र", आयतुल्लाह उज़मा ख़ामेनेई के कार्यों के संरक्षण और प्रकाशन के लिए कार्यालय की वेबसाइट।
  6. अज़हरी, "शिकस्त मारपीच सुकूत दर दिले अमेरिका", फ़रहिख्तेगान समाचार पत्र।
  7. "तुर्किया के TRT चैनल पर अमेरिकी छात्रों को रहबरे इंक़ेलाब के पत्र का प्रतिबिंब", मेहर समाचार एजेंसी।
  8. उदाहरण के लिए देखें, "अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों की गिरफ्तारी पर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया", आईआरएनए समाचार एजेंसी।
  9. "संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने वाले छात्रों को आयतुल्लाह ख़ामेनेई का पत्र", आयतुल्लाह उज़मा ख़ामेनेई के कार्यों के संरक्षण और प्रकाशन के लिए कार्यालय की वेबसाइट।

स्रोत