सहीफ़ा सज्जादिया की पैतीसवीं दुआ

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(सहीफ़ा सज्जादिया दुआ 35 से अनुप्रेषित)
सहीफ़ा सज्जादिया की पैतीसवीं दुआ
1145 हिजरी में लिखी गई अहमद नयरेज़ी की लिपि में लिखी गई साहिफ़ा सज्जादियाह की पांडुलिपि
1145 हिजरी में लिखी गई अहमद नयरेज़ी की लिपि में लिखी गई साहिफ़ा सज्जादियाह की पांडुलिपि
विषयकज़ा ए इलाही पर रज़ा
प्रभावी/अप्रभावीप्रभावी
किस से नक़्ल हुईइमाम सज्जाद (अ)
कथावाचकमुतवक्किल बिन हारुन
शिया स्रोतसहीफ़ा सज्जादिया


सहीफ़ा सज्जादिया की पैतीसवीं दुआ (अरबीः الدعاء الخامس والثلاثون من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है। इस दुआ मे इमाम सज्जाद (अ) ने ईश्वर ने मनुष्य को जो दिया है और जो नहीं दिया है उसके लिए धन्यवाद दिया है, और मनुष्य को दूसरों के पास जो कुछ है उससे ईर्ष्या करने से रोका है। इमाम गरिमा और सम्मान को अल्लाह की इबादत मे जानते है और गरीबों को अपमानित करने और शक्तिशाली लोगों को गाली देने से परहेज करने को कहते है।

पैतीसवीं दुआ के विभिन्न भाषाओ मे वर्णन जैसे कि फ़ारसी में हसन ममदूही किरमानशाही की शुहूद व शनाख़्त और अरबी भाषा मे सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यदुस साजेदीन है।

शिक्षाएँ

पैतीसवीं दुआ ईश्वरीय निर्णय से मानवीय संतुष्टि के बारे में सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओ में से एक है। इस दुआ के अपने विवरण में मुहम्मद जवाद मुग़्नीया ने वाक्यांश "रज़ल्लाहो रज़ाना..." को अहले-बैत (अ) के नारों में से एक माना है।[१] इसके अलावा, ममदूही किरमानशाही के अनुसार इस दुआ मे ईश्वर द्वारा प्रदान की गई चीजो से प्रसन्न होना और उसके निर्णय पर राज़ी रहना और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का सामना करने में धैर्य रखने से बुलंद मरतबा है क्योंकि जो ईश्वरीय आदेशों से संतुष्ट है, उसने उस पर सहमति जताई है जो उसे पसंद है, लेकिन जो ईश्वरीय आदेशों पर धैर्य रखता है, उसने अपने दिल में इसके प्रति समर्पण नहीं किया है[२] इस दुआ मे इमाम सज्जाद (अ) ईश्वर ने जो दिया है उसके लिए प्रसन्न और आभारी है, और जो नहीं दिया है उसके लिए भी वह आभारी है[३] इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

  • बंदो के बीच न्याय के आधार पर जीविका के वितरण की गवाही देना
  • ईश्वर की कृपा और अनुग्रह प्राप्त करना
  • ईश्वरीय निर्णय का आनंद लेना
  • ईर्ष्या के कारणों और एजेंटों मे गिरफ्तार न होने का आग्रह करना
  • अपने बंदो की जीविका को विभाजित करने में ईश्वर का न्याय
  • अल्लाह की कज़ा व कदर को अपने लिए अच्छा मानना
  • प्रदान किए जाने से अधिक प्रदान न किए जाने पर शुक्र अदा करना
  • गरीबों को हेय दृष्टि और अमीरों को विस्मय की दृष्टि से नहीं देखना
  • ईश्वर की आज्ञा मानने और उसकी इबादत करने में गरिमा और सम्मान की विशिष्टता (ईश्वरीय स्रोत से जुड़ाव मानवीय गरिमा का स्रोत है)
  • अटूट धन और स्थायी सम्मान माँगना
  • ईश्वर को अतुलनीय बताना (ईश्वर ने न तो कोई संतान उत्पन्न की है और न ही वह किसी की संतान है। कोई भी उसका तुल्य नहीं है)[४]

व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे उसकी पैतीसवीं दुआ का वर्णन किया गया है। हुसैन अंसारीयान की किताब दयारे आशेक़ान[५] मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहूद व शनाख़त[६] सय्यद अहमद फ़रहि की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[७] का फ़ारसी भाषा मे वर्णन किया गया है।

इसके अलावा सहीफ़ा सज्जादिया की पैतीसवीं दुआ सय्यद अली ख़ान मदनी की किताब रियाज़ उस-सालेकीन,[८] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की किताब फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया,[९] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की किताब रियाज़ उल-आरेफ़ीन[१०] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह[११] की किताब आफ़ाक़ अल-रूह मे इस दुआ की अरबी भाषा मे व्याख्या लिखी गई है। इस दुआ के सार्वजनिक मफहूम और शब्दिक अर्थ को फ़ैज काशानी की किताब तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया[१२] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी की किताब शरह सहीफ़ा सज्जादिया मे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।[१३]

पाठ और अनुवाद

सहीफ़ा सज्जादिया की पैतीसवीं दुआ
दुआ का हिंदी उच्चारण अनुवाद दुआ का अरबी उच्चारण
व काना मिन दुआऐहि अलैहिस सलामो फ़िर रेज़ा इज़ा नज़र एला अस्हाबिद दुनिया ईश्वरीय निर्णयो पर प्रसन्न रहने की दुआ وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي الرِّضَا إِذَا نَظَرَ إِلَى أَصْحَابِ الدُّنْيَا
अल्हम्दो लिल्लाहे रेज़न बेहुक्मिल्लाहे, शहिदतो अन्नल्लाहो क़समा मआऐशा ऐबादेहि बिल अद्ले, व अख़ज़ा अला जमीऐ ख़ल्क़ेहि बिल फ़ज़्ले अल्लाह तआला के आदेश पर अल्लाह की रज़ा और प्रसन्नता के लिए अल्लाह की स्तुति है। मैं गवाही देता हूं कि उसने अपने सेवकों की जीविका को न्याय के अनुसार वितरित किया है। और सभी प्राणियों के प्रति अनुग्रह और दयालुता का रवैया अपनाया है। الْحَمْدُ لِلَّهِ رِضًى بِحُكْمِ اللَّهِ، شَهِدْتُ أَنَّ اللَّهَ قَسَمَ مَعَايِشَ عِبَادِهِ بِالْعَدْلِ، وَ أَخَذَ عَلَى جَمِيعِ خَلْقِهِ بِالْفَضْلِ
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिनव वा आलेहि, वला तफ़तिन्नी बेमा आतयतहुम, वला तफ़तिनहुम बेमा मनअतनी फ़अहसोदा ख़ल्क़का, व अग़मता हुक्मका हे परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और जो कुछ दूसरों को दिया है, उससे मुझे परेशान मत होने दे, ताकि मैं तेरी रचना से ईर्ष्या करूँ और तेर निर्णय का तिरस्कार करूँ, और दूसरों को वह न दूँ जिससे मैं वंचित रह गया हूँ उन्हे दूसरो के लिए फ़ितना और आज़माइश ना बना दे (ताकि वे अभिमान के कारण मुझे तुच्छ समझें) اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ لَا تَفْتِنِّي بِمَا أَعْطَيْتَهُمْ، وَ لَا تَفْتِنْهُمْ بِمَا مَنَعْتَنِي فَأَحْسُدَ خَلْقَكَ، وَ أَغْمَطَ حُكْمَكَ
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिव वा आलेहि, व तय्यिब बेक़जआएका नफ़सी, व वस्सेअ बेमवाक़ेआ हुक्मेका सदरी, व हब लियस सक़ता लेओक़िर्रा मअहा बेअन्ना क़जआअका लम यजरे इल्ला बिलखैयरते, वजअल शुकरी लका अला मा जवयता अन्नी ओफ़रा मिन शुकरी इय्याका अला मा ख़व्वलतनी हे पालन हार! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और मुझे अपने फैसले से खुश कर, और अपने भाग्य को स्वीकार करने के लिए मेरा सीना चौड़ा कर, और मुझमें आत्मविश्वास की भावना पैदा कर कि मैं कबूल कर सकूं कि तेरा फैसला फैसला है और क़दर पर अच्छाई का असर हुआ है और समृद्धि, और जो आशीर्वाद मुझे दिए गए हैं उनके लिए मेरी कृतज्ञता उन चीजों के लिए कृतज्ञता से अधिक पूर्ण है जो मुझसे वापस ले ली गई हैं। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ طَيِّبْ بِقَضَائِكَ نَفْسِي، وَ وَسِّعْ بِمَوَاقِعِ حُكْمِكَ صَدْرِي، وَ هَبْ لِيَ الثِّقَةَ لِأُقِرَّ مَعَهَا بِأَنَّ قَضَاءَكَ لَمْ يَجْرِ إِلَّا بِالْخِيَرَةِ، وَ اجْعَلْ شُكْرِي لَكَ عَلَى مَا زَوَيْتَ عَنِّي أَوْفَرَ مِنْ شُكْرِي إِيَّاكَ عَلَى مَا خَوَّلْتَنِي
वअसिमनी मिन अन अज़ुन्ना बेज़ी अदमिन ख़सासतन, ओ अज़ुन्ना बेसाहेबे सरवतिन फ़ज़्लन, फ़इन्नश शरीफ़े मन शर्रफ़तहो ताआतोका, वल अज़ीज़ा मन अअज़्ज़तहो ऐबादतोका और मुझे किसी गरीब व्यक्ति को अपमान और अवमानना की दृष्टि से देखने से, या किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचने से सुरक्षित रख जो (इस धन के कारण) गुण और श्रेष्ठता से समृद्ध है। क्योंकि साहिब शराफ़ वह हैं जिन्हें तेरी आज्ञाकारिता से सम्मानित किया गया है और साहिबे इज़्ता वह हैं जिन्हें तेरी इबादत से सम्मानित और ऊंचा किया गया है। وَ اعْصِمْنِي مِنْ أَنْ أَظُنَّ بِذِي عَدَمٍ خَسَاسَةً، أَوْ أَظُنَّ بِصَاحِبِ ثَرْوَةٍ فَضْلًا، فَإِنَّ الشَّرِيفَ مَنْ شَرَّفَتْهُ طَاعَتُكَ، وَ الْعَزِيزَ مَنْ أَعَزَّتْهُ عِبَادَتُكَ
फसल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व मत्तेअना बेसरवतिन ला तन्फ़ेदो, व अय्यदना बेइज़्ज़िन ला युफ़्क़दो, वसरहना फ़ि मुल्किल अबदे, इन्नकल वाहेदुल अहदुस समदुल लज़ी लम तलिद व लम तूलद व लम यकुन लका कोफ़ोवन अहद हे परमात्मा, मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और हमें उस धन और संपत्ति का आनंद दे जो खत्म नहीं होगी और हमें सम्मान और गरिमा के साथ समर्थन दे जो गायब नहीं होगा। और हमें सनातन देश की ओर प्रवाहित कर। वास्तव में, तू केवल और केवल एक हैं, और तू इतना स्वतंत्र हैं कि तेरी कोई संतान नहीं है, न ही किसी की संतान है, और न ही तेरे समान कोई दूसरा है। وَ اعْصِمْنِي مِنْ أَنْ أَظُنَّ بِذِي عَدَمٍ خَسَاسَةً، أَوْ أَظُنَّ بِصَاحِبِ ثَرْوَةٍ فَضْلًا، فَإِنَّ الشَّرِيفَ مَنْ شَرَّفَتْهُ طَاعَتُكَ، وَ الْعَزِيزَ مَنْ أَعَزَّتْهُ عِبَادَتُكَ

फ़ुटनोट

  1. मुग़निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 427
  2. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 183
  3. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 183-179
  4. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7,पेज 249-259; ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 183-188; शरह फ़राज़हाए दुआ ए सीओ पंजुम अज़ साइट इरफ़ान
  5. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7,पेज 249-259
  6. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 181-188
  7. फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 87-91
  8. मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 5, पेज 177-198
  9. मुग़निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 427-430
  10. दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 453-456
  11. फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 200-222
  12. फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 73
  13. जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 184-185


स्रोत

  • अंसारियान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफ़सीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयामे आज़ादी, 1372 शम्सी
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
  • दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
  • फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
  • फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
  • मुग़निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी