सहीफ़ा सज्जादिया की सैतीसवीं दुआ
अन्य नाम | भलाई का आग्रह करने की दुआ |
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विषय | अल्लाह का शुक्र अदा करने मे कमी की स्वीकारोक्ति |
प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
कथावाचक | मुतवक्किल बिन हारुन |
शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की सैंतीसवीं दुआ (अरबीःالدعاء السابع والثلاثون من الصحيفة السجادية) मनुष्य की कमजोरी और कमी के बारे में इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है। इमाम सज्जाद (अ) इस दुआ में हमें ईश्वर के आशीर्वाद के लिए आभारी होने की असंभवता की याद दिलाते हैं और ईश्वर के आशीर्वाद को ईश्वर की कृपा का परिणाम मानते हैं। इस दुआ में, पश्चाताप की आशा और दिव्य मार्गदर्शन की ओर लौटने की आशा के कारण, ईश्वर ने दुष्टों को दंडित न करने की जल्दबाजी नही की। हज़रत ज़ैनुल-आबेदीन (अ) भी बंदो के साथ व्यवहार में ईश्वर के निर्णय का उल्लेख करते हैं और ईश्वरीय मार्ग से विचलन को शैतान का धोखा मानते हैं।
सैंतीसवीं दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ का वर्णन विभिन्न भाषाओ मे किया गया है, जैसे कि फ़ारसी में हुसैन अंसारियान की दयारे आशेक़ान, हसन ममदूही किरमानशाही की शुहूद व शनाख़्त और अरबी भाषा मे सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यदुस साजेदीन है।
शिक्षाएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं में से सैंतीसवीं दुआ, ईश्वर को धन्यवाद देने में मनुष्य की असमर्थता के बारे में है। इस दुआ में, इमाम सज्जाद (अ) ईश्वर को धन्यवाद देने में मनुष्य की कमी का उल्लेख करते हैं।[१] ममदूही किरमानशाही के अनुसार, जिस स्थान पर मनुष्य ईश्वर के आशीर्वाद के लिए धन्यवाद नहीं कर सकता, वह वह स्थान है जहां कोई नहीं पहुंच सकता। लेकिन गरीब पहुंच सकते हैं[२] इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
- मनुष्य की ऊर्जा ईश्वर के आशीर्वाद से है
- मनुष्य की ईश्वर की आज्ञा मानने और उसकी आराधना करने में असमर्थता
- आशीर्वाद के प्रति कृतज्ञता मूल आशीर्वाद से श्रेष्ठ है।
- ईश्वर की कृपा का धन्यवाद करना असंभव है
- किसी के अधिकार की कमी के कारण ईश्वर के बारे में आदेश जारी करना संभव नहीं है
- ईश्वरीय कृपा ईश्वरीय संतुष्टि और क्षमा का स्रोत है
- स्वार्थी मनुष्य ईश्वर की कृपा और उपकार के लिए उसका आभारी होता है
- भलाई, उपकार, क्षमा, सुन्नत और ईश्वरीय आदत
- बंदों के कम कर्मों का ईश्वर का महान पुरस्कार
- सेवकों की अयोग्यता के लिए ईश्वर की परम क्षमा
- ईश्वर के आशीर्वाद के विरुद्ध ईश्वर की नैतिकता की आवश्यकता
- दरबार के प्रति सभी का आभार और सेवकों के साथ व्यवहार में ईश्वर की कृपा
- शैतान का धोखा ही ईश्वरीय मार्ग से भटकाव का कारण है।
- सत्य के सामने झूठ दिखाकर शैतान को धोखा देना
- ईश्वर को अविश्वासयो को दण्ड देने मे कोई जल्दी नहीं है
- आज्ञाकारी पापियों पर ईश्वर की कृपा
- ईश्वरीय कृपा से ईश्वर की आज्ञाकारिता
- ईश्वर की दया उनके सेवकों तक फैली हुई है
- सेवकों को अच्छे कर्मों के बराबर पुरस्कार मिलना चाहिए
- अपने सेवकों को बिना हिसाब, बिना प्रतिज्ञा और बिना मुआवज़ा के जीविका देने में ईश्वर की कृपा
- पापियों से निपटने में ईश्वर की अनंत गरिमा
- सखावत ईश्वर की दया के विस्तार से असीम पापी है
- ईश्वर का न्याय ही भय का एकमात्र स्रोत है
- पापियों को ईश्वर द्वारा उत्पीड़ित होने से मुक्ति
- पश्चाताप और ईश्वर के मार्गदर्शन की ओर लौटने की आशा में सेवकों की सज़ा में देरी करना
- ईश्वरीय मार्गदर्शन की छाया में सफलता से लाभ उठाना
- आज्ञापालन करने वालों के लिए ईश्वरीय पुरस्कार
- अल्लाह की अदालत में स्वीकारोक्ति[३]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे उसकी सैंतीसवीं दुआ का वर्णन किया गया है। हुसैन अंसारियान की दयारे आशेकान[४] मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहूद व शनाख़त[५] सय्यद अहमद फ़रहि की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[६] का फ़ारसी भाषा मे वर्णन किया गया है। इसके अलावा सहीफ़ा सज्जादिया की सैतीसवीं दुआ सय्यद अली ख़ान मदनी की किताब रियाज़ उस-सालेकीन,[७] मुहम्मद जवाद मुग़निया की किताब फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया,[८] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की किताब रियाज़ उल-आरेफ़ीन[९] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह[१०] की किताब आफ़ाक़ अल-रूह मे इस दुआ की अरबी भाषा मे व्याख्या लिखी गई है। इस दुआ के सार्वजनिक मफहूम और शब्दिक अर्थ को फ़ैज काशानी की किताब तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया[११] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी की किताब शरह सहीफ़ा सज्जादिया मे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।[१२]
पाठ और अनुवाद
दुआ का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | दुआ का अरबी उच्चारण |
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वकाना मिन दुआऐहि अलैहिस सलामो इज़ा ऐअतरफ़ा बित तक़सीरे अन तादीयते अश शुक़्रा | शुक्र मे कमी की स्वीकारोक्ति की हज़रत की दुआ | وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ إِذَا اعْتَرَفَ بِالتَّقْصِيرِ عَنْ تَأْدِيَةِ الشُكْرِ |
अल्लाहुम्मा इन्ना अहदन ला यबलोग़ो मिन शुकरेका ग़ायतन इल्ला हसला अलैहे मिन एहसानेका मा युलजेमोहू शुकरन | हे परमेश्वर! कोई भी व्यक्ति तेरे शुक्र की किसी मंज़िल तक नही पहुँचता। मगर यह कि तेरे इतने एहसान इकट्ठा हो जाते हैं कि वे उस पर और अधिक शुक्र वाजिब कर देते हैं और कोई भी तेरी आज्ञाकारिता के स्तर तक नहीं पहुंच सकता, चाहे वह कितनी ही सक्रियता दिखाए; | اللَّهُمَّ إِنَّ أَحَداً لَا يَبْلُغُ مِنْ شُكْرِكَ غَايَةً إِلَّا حَصَلَ عَلَيْهِ مِنْ إِحْسَانِكَ مَا يُلْزِمُهُ شُكْراً. |
वला यबलोग़ो मबलेगन मिन ताअतेका व एनिज तहदा इल्ला काना मुक़स्सेरन दूनस तेहक़ाक़ेका बेफ़ज़्लेका | और तेरे इस हक की तुलना में तेरा यह विशेषाधिकार, जो अनुग्रह और दयालुता है, असमर्थ रहता है; | وَ لَا يَبْلُغُ مَبْلَغاً مِنْ طَاعَتِكَ وَ إِنِ اجْتَهَدَ إِلَّا كَانَ مُقَصِّراً دُونَ اسْتِحْقَاقِكَ بِفَضْلِكَ |
फ़अशकरो ऐबादेका आजेज़ुन अन शुकरेका, व आअबदोहुम मुक़स्सेरुन अन ताअतेका | जब ऐसी स्थिति होगी तो तेरा सबसे कृतज्ञ सेवक भी धन्यवाद देने में असमर्थ हो जायेंगा और तेरा सबसे अधिक उपासक भी असहाय हो जायेंगा। | فَأَشْكَرُ عِبَادِكَ عَاجِزٌ عَنْ شُكْرِكَ، وَ أَعْبَدُهُمْ مُقَصِّرٌ عَنْ طَاعَتِكَ |
उदाहरण | उदाहरण | उदाहरण |
ला यजेबो लेअहदिन अन तग़फ़ेरा लहू बेइसतेहक़ाकेही, वला अन तरज़ा अन्हो बेइस्तिजाबेहि | किसी को भी तेरे अधिकार के कारण क्षमा करने या अपने अधिकार के कारण उससे प्रसन्न होने का अधिकार नहीं है। | لَا يَجِبُ لِأَحَدٍ أَنْ تَغْفِرَ لَهُ بِاسْتِحْقَاقِهِ، وَ لَا أَنْ تَرْضَى عَنْهُ بِاسْتِيجَابِهِ |
फ़मन ग़फ़रता लहू फ़बेतूलेका, वमन रज़ीता अन्हो फ़बेफ़ज़्लेका | जिस किसी को तू क्षमा कर दे, तो यह तेरा अहसान है, और जिस किसी को तू राजी हो गया, तो यह तेरा फ़ज़्ल है | فَمَنْ غَفَرْتَ لَهُ فَبِطَوْلِكَ، وَ مَنْ رَضِيتَ عَنْهُ فَبِفَضْلِكَ |
तशकोरो यसीरा मा शकरतहू, व तोसीबो अला क़लीले मा तोताओ फ़ीहे हत्ता कअन्ना शुकरा ऐबातेकल लज़ी ओजबता अलैहे सवाबहुम व आअज़मता अन्हो जज़ाअहुम अमरुन मलकुस तेताआतल इम्तेनाए मिन्हो दूनका फ़काफ़यतहुम, ओ लम यकुन सबबोहू बेयदेका फ़जाज़यतहुम | जिस छोटे से अमल को तू स्वीकार करता है उसकी जज़ा अधिक देता है और थोड़ी सी इबादत पर भी सवाब देता है यहा तक कि बंदो का वह शुक्र अदा करना जिसके मुकाबले मे तूने अज्र और सवाब को जरूरी किया है और जिसके बदले उसको अजीम अज्र प्रदान किया है ऐक ऐसी बात थी कि उस शुक्र से हाथ उठाना उनके हाथो मे था तो इस लेहाज़ से तूने सवाब दिया (कि उन्होने अपनी इच्छा से शुक्र अदा किया) या यह कि शुक्र का अदाएगी तेरी हाथो मे नही थी ( और अन्होने स्वयं शुक्र के असाबाब मोहय्या किए) जिस पर तूने उन्हे सवाब अता किया। | تَشْكُرُ يَسِيرَ مَا شَكَرْتَهُ، وَ تُثِيبُ عَلَى قَلِيلِ مَا تُطَاعُ فِيهِ حَتَّى كَأَنَّ شُكْرَ عِبَادِكَ الَّذِي أَوْجَبْتَ عَلَيْهِ ثَوَابَهُمْ وَ أَعْظَمْتَ عَنْهُ جَزَاءَهُمْ أَمْرٌ مَلَكُوا اسْتِطَاعَةَ الِامْتِنَاعِ مِنْهُ دُونَكَ فَكَافَيْتَهُمْ، أَوْ لَمْ يَكُنْ سَبَبُهُ بِيَدِكَ فَجَازَيْتَهُمْ |
बल मलकता या इलाही अमरहुम क़ब्ला अन यमलेकू ऐबादतका, व आअदता सवाबहुम क़ब्ला अन युफ़ीज़ू फ़ी ताअतेका, व ज़ालेका अन्ना सुन्नतकल इफ़ज़ालो, व अदतेकल एहसान, व सबीलकल अफ़वो | हे परमात्मा ! तू उनके सभी कामो का मालिक था। इससे पहले कि वह तेरी इबादत पर कुदरत रखते तूने उनके लिए सवाब को निर्रधारित किया था। इससे पहले कि वह तेरी इबादत पर कुदरत रखते, तूने उनके लिए सवाब को निर्रधारित किया था। इससे पहले कि वह तेरी इताअत (आज्ञाकारिता) पर कुदरत रखते यह इसलिए कि तेरे इनाम और तेरी आदत तफज़्ज़ुल व एहसानात और तेरी क्षमा की शैली है। | تَشْكُرُ يَسِيرَ مَا شَكَرْتَهُ، وَ تُثِيبُ عَلَى قَلِيلِ مَا تُطَاعُ فِيهِ حَتَّى كَأَنَّ شُكْرَ عِبَادِكَ الَّذِي أَوْجَبْتَ عَلَيْهِ ثَوَابَهُمْ وَ أَعْظَمْتَ عَنْهُ جَزَاءَهُمْ أَمْرٌ مَلَكُوا اسْتِطَاعَةَ الِامْتِنَاعِ مِنْهُ دُونَكَ فَكَافَيْتَهُمْ، أَوْ لَمْ يَكُنْ سَبَبُهُ بِيَدِكَ فَجَازَيْتَهُمْ
بَلْ مَلَكْتَ يَا إِلَهِي أَمْرَهُمْ قَبْلَ أَنْ يَمْلِكُوا عِبَادَتَكَ، وَ أَعْدَدْتَ ثَوَابَهُمْ قَبْلَ أَنْ يُفِيضُوا فِي طَاعَتِكَ، وَ ذَلِكَ أَنَّ سُنَّتَكَ الْإِفْضَالُ، وَ عَادَتَكَ الاحسان، وَ سَبِيلَكَ الْعَفْوُ |
फ़क़ुल्लुल बरीय्यते मोअतरेफ़तुन बेअन्नका ग़ैरो ज़ालेमिन लेमन आक़बता, व शाहेतदुन बेअन्नका मुतफ़ज़्ज़लुन अला मन आफ़यता, व कुल्लो मोक़िर्रुन अला नफ़सेहि बित्तक़सीरे अम्मस तोजबता | अतः सारी सृष्टि यह मानती है कि जिसे तू दण्ड देता है, उस पर कोई ज़ुल्म नहीं करता, और यह इस बात की गवाही है कि जिसे तू क्षमा करता है, वह उस पर अनुग्रह करता है, और उस (आज्ञाकारिता) को पूरा करने में हर कोई अपनी-अपनी कमियाँ स्वीकार करेगा जिसके तू लायक हैं; | فَكُلُّ الْبَرِيَّةِ مُعْتَرِفَةٌ بِأَنَّكَ غَيْرُ ظَالِمٍ لِمَنْ عَاقَبْتَ، وَ شَاهِدَةٌ بِأَنَّكَ مُتَفَضَّلٌ عَلَى مَنْ عَافَيْتَ، وَ كُلٌّ مُقِرٌّ عَلَى نَفْسِهِ بِالتَّقْصِيرِ عَمَّا اسْتَوْجَبْتَ |
फ़लोला अन्नश शैताना यखतदेओहुम अन ताअतेका मा असाका आसिन, व लौ ला अन्नहू सव्वर लहोमुल बातेला फ़ी मिसालिल हक़्क़े मा ज़ल्ला अन तरीक़ेका ज़ाल्लुन | यदि शैतान ने उन्हें तेरी उपासना से न बहकाया होता, तो कोई भी तेरी अवज्ञा न करता। और यदि तुम सच की आड़ में उनके सामने झूठ न पेश करता, तो कोई भी तेरे मार्ग से न भटकता। | فَلَوْ لَا أَنَّ الشَّيْطَانَ يَخْتَدِعُهُمْ عَنْ طَاعَتِكَ مَا عَصَاكَ عَاصٍ، وَ لَوْ لاَ أَنَّهُ صَوَّرَ لَهُمُ الْبَاطِلَ فِي مِثَالِ الْحَقِّ مَا ضَلَّ عَنْ طَرِيقِكَ ضَالٌّ |
फ़सुबाहानका मा अबयना करमका फ़ी मोआमलते मन अताअका ओ असाका तशकुरो लिलमुतीए मा अन्ता तवल्लयतहू लहू, व तुमली लिलआसी फ़ीमा तमलेको मोआजलतहू फ़ीहे | पवित्र है तेरी ज़ात, तेरी प्रसन्नता और कृपा। यह हर किसी के मामले में कितना स्पष्ट है, चाहे वह आज्ञाकारी हो या पापी, कि वह आज्ञाकारी को उस अच्छे काम के लिए पुरस्कार देता है जिसके लिए आपने कारण प्रदान किया है और राहत देता है, पापी को तुरंत दंडित करने की शक्ति रखता है; | فَسُبْحَانَكَ مَا أَبْيَنَ كَرَمَكَ فِي مُعَامَلَةِ مَنْ أَطَاعَكَ أَوْ عَصَاكَ تَشْكُرُ لِلْمُطِيعِ مَا أَنْتَ تَوَلَّيْتَهُ لَهُ، وَ تُمْلِي لِلْعَاصِي فِيما تَمْلِكُ مُعَاجَلَتَهُ فِيهِ |
आतयता क़ुल्लन मिन्होमा मा लन यजिब लहू, व तफज़्जलता अला कुल्ले मिन्होमा बेमा यक़सोरो अमलूहू अन्हो | तूने आज्ञाकारी और अवज्ञाकारी दोनों को वह दिया जिसके वे हकदार नहीं थे। और तू ने उन में से हर एक को वह अनुग्रह और दयालुता प्रदान की, जिसके मुकाबले में उनके काम बहुत कम थे। | أَعْطَيْتَ كُلًّا مِنْهُمَا مَا لَمْ يَجِبْ لَهُ، وَ تَفَضَّلْتَ عَلَى كُلٍّ مِنْهُمَا بِمَا يَقْصُرُ عَمَلُهُ عَنْهُ |
व लौ काफ़ातल मुतीआ अला मा अन्ता तवल्लयतहू लओशका अन यफ़केदा सवाबका, व अन तज़ूला अन्हो नेअमतोका, व लकिन्नका बेकरमेका जाज़यतहू अलल मुद्दतिल कसीरतिल फ़ानीयते बिल मुद्दातित तवीलतिह ख़ालेदते, व अलल ग़ायतिल क़रीबतिज़ ज़ाएलते बिल ग़ायतिल मदीदतिल बाक़ीयते | और यदि तू आज्ञाकारी को केवल उन्हीं कामों का बदला देगा, जिनके बदले तू ने उसे सिर और धन दिया है, तो लगभग यही हुआ कि वह अपने हाथ से अपना बदला खो देगा और तेरी नेमतें भी उस पर से चली जाएंगी। परन्तु आपने अपनी कृपा व कृपा से अल्पकालीन व नश्वर कर्मों का दीर्घ व अनन्त फल दिया तथा अल्पायु व नाशवान कर्मों का अनन्त व अनन्त फल दिया। | وَ لَوْ كَافَأْتَ الْمُطِيعَ عَلَى مَا أَنْتَ تَوَلَّيْتَهُ لَأَوْشَكَ أَنْ يَفْقِدَ ثَوَابَكَ، وَ أَنْ تَزُولَ عَنْهُ نِعْمَتُكَ، وَ لَكِنَّكَ بِكَرَمِكَ جَازَيْتَهُ عَلَى الْمُدَّةِ الْقَصِيرَةِ الْفَانِيَةِ بِالْمُدَّةِ الطَّوِيلَةِ الْخَالِدَةِ، وَ عَلَى الْغَايَةِ الْقَرِيبَةِ الزَّائِلَةِ بِالْغَايَةِ الْمَدِيدَةِ الْبَاقِيَةِ. |
सुम्मा लम तसुमहुल क़ेसासा फ़ीमा अकला मिन रिज़्केकल लज़ी यक़वा बेहि अला ताअतेका, वलम तहमिलहो अलल मुनाक़शाते फ़िल आलातिल ली तसब्बा बेइस्तेमालेहा ऐला मग़फ़ेरतेका, वलो फ़अलता ज़ालेका बेहि लज़हबा बेजमीऐ मा कदहा लगू व जुमलते मा सऐया फ़ीहे जज़ाअन लिस सुग़रा मिन आयादेका व मेननेका, व लबकेया रहीनन बयना यदयका बेसाऐसे नेअमिका, फ़मता काना यस्तहिक़्क़ो शैअन मिन सवाबेका ला मता | फिर तूने उस जीविका के बदले में कुछ भी नहीं माँगा, जिससे उसने तेरी नेमतो से भोजन करके तेरी आज्ञा मानने की शक्ति प्राप्त की थी, और तूने उन तरीकों का सख्ती से हिसाब नहीं दिया, जिनके द्वारा उसने तुझे क्षमा का मार्ग बनाया था। और यदि तू ऐसा करता तो उसकी सारी मेहनत और सारी कोशिशों का नतीजा तेरे एक उपकार और परोपकार की तुलना में ख़त्म हो जाती और बाकी आशीर्वाद के लिए वह तेरे हुजूर में गिरवी बनकर रह जाता। (अर्थात्, उसके पास स्वयं को छुड़ाने के लिए कुछ भी नहीं होता) ऐसी स्थिति में, वह तुझ से किसी भी पुरस्कार का हकदार कहां हो सकता है? नहीं! वह इसके लायक कब हो सकता है? | ثُمَّ لَمْ تَسُمْهُ الْقِصَاصَ فِيما أَكَلَ مِنْ رِزْقِكَ الَّذِي يَقْوَى بِهِ عَلَى طَاعَتِكَ، وَ لَمْ تَحْمِلْهُ عَلَى الْمُنَاقَشَاتِ فِي الآْلَاتِ الَّتِي تَسَبَّبَ بِاسْتِعْمَالِهَا إِلَى مَغْفِرَتِكَ، وَ لَوْ فَعَلْتَ ذَلِكَ بِهِ لَذَهَبَ بِجَمِيعِ مَا كَدَحَ لَهُ وَ جُمْلَةِ مَا سَعَى فِيهِ جَزَاءً لِلصُّغْرَى مِنْ أَيَادِيكَ وَ مِنَنِكَ، وَ لَبَقِيَ رَهِيناً بَيْنَ يَدَيْكَ بِسَائِرِ نِعَمِكَ، فَمَتَى كَانَ يَسْتَحِقُّ شَيْئاً مِنْ ثَوَابِكَ لَا مَتَي |
हाज़ा या इलाही हालो मन अताअका, व सबीलो मन तअब्बदा लका, फ़अम्मल आसेया अमरका वल मुवाक़ेओ नहयका फ़लम तोआजिलहो बेनक़ीमतेका लेकय यसतबदेला बेहालेहि फ़ी मअसीयकेता हालल इनाबते ऐला ताअतेका, व लक़द काना यस्तहिक्को फ़ी अव्वले मा हम्मा बेइसयानेका कुल्ला मा आअददता लेजमीइ ख़लक़ेका मिन उक़ूबतेका | हे मेरे परमात्मा! जो तेरी आज्ञा मानता है, उसकी यही दशा है, और जो तेरी उपासना करता है, उसका इतिहास यह है, और जिस ने तेरी आज्ञाओं का उल्लंघन किया, और तेरे पाप किए, उसको दण्ड देने में तू ने जल्दी न की, यहां तक कि वह पाप और अवज्ञा की दशा में पड़ा मुझे छोड़कर अपनी आज्ञाकारिता की ओर मुड़ सकते हैं। सच्चाई यह है कि जब उसने पहली बार तेरी अवज्ञा करने का इरादा किया था, जब वह पहले से ही हर उस सज़ा का हकदार था जो तूने सारी सृष्टि के लिए प्रदान की थी; | هَذَا يَا إِلَهِي حَالُ مَنْ أَطَاعَكَ، وَ سَبِيلُ مَنْ تَعَبَّدَ لَكَ، فَأَمَّا الْعَاصِي أَمْرَكَ وَ الْمُوَاقِعُ نَهْيَكَ فَلَمْ تُعَاجِلْهُ بِنَقِمَتِكَ لِكَيْ يَسْتَبْدِلَ بِحَالِهِ فِي مَعْصِيَتِكَ حَالَ الْإِنَابَةِ إِلَى طَاعَتِكَ، وَ لَقَدْ كَانَ يَسْتَحِقُّ فِي أَوَّلِ مَا هَمَّ بِعِصْيَانِكَ كُلَّ مَا أَعْدَدْتَ لِجَمِيعِ خَلْقِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ |
फजीओ मा अख्खरता अन्हो मिनल अज़ाबे व अबताता बेहि अलैहे मिन सतवातिन नकेमते वल ऐकाबे तरक़ुन मिन हक़्क़ेका, व रेज़न बेदूने वाजेबेका | इसलिए, हर सज़ा जो तूने उससे रोकी थी और हर सज़ा जो तूने उसके पक्ष में रखी थी: यह तेरा अपने अधिकार की अनदेखी करना और जो आप योग्य हैं उससे कम पर सहमत होना है। | فَجَمِيعُ مَا أَخَّرْتَ عَنْهُ مِنَ الْعَذَابِ وَ أَبْطَأْتَ بِهِ عَلَيْهِ مِنْ سَطَوَاتِ النَّقِمَةِ وَ الْعِقَابِ تَرْكٌ مِنْ حَقِّكَ، وَ رِضًى بِدُونِ وَاجِبِكَ |
फ़मन अकरमो या इलाही मिन्का, व मन अशका मिम्मन हलका अलैका ला मन फ़तबारकता अन तूसफ़ा इल्ला बिल एहसाने, क करुमता अन योखाफ़ा मिनका इल्लल अदलो, ला युख़शा जोरोका अला मन असाका, वला योख़ाफ़ो इगडफालोका सवाबा मन अरज़ाका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिन व आलेही, व हब ली अमली, व ज़िदनी मिन हुदाका मा असेलो बेहि ऐलत तौफ़ीक़े फ़ी अमली, इन्नका मन्नानुन करीमुन | हे मेरे परमेश्वर! ऐसी स्थिति में जो तेरी इच्छा के विरुद्ध नष्ट हो जाए, उससे अधिक दानी कौन हो सकता है और तुझसे अधिक अभागा कौन हो सकता है? नहीं! उससे अधिक दुखी कौन है? यह धन्य है कि तेरी प्रशंसा केवल प्रसन्नता और दयालुता से ही की जा सकती है और तेरा न्याय और निष्पक्षता के विरुद्ध जिस चीज से डरते हैं, उससे भी ऊंचे हैं। जो व्यक्ति तेरी अवज्ञा करता है उसे इस बात का डर नहीं हो सकता कि तू उस पर अत्याचार करेंगा और न ही तू उस व्यक्ति से अपना अधिकार खोने से डर सकता हैं जो तेरी खुशी का सम्मान करता है। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजिल करा और मेरी इच्छाएँ पूरी कर और मेरे मार्गदर्शन को इतना बढ़ा कि मैं अपने कामों में सफल हो जाऊँ। क्योंकि तू ही वरदाता और सुखों का दाता हैं। | فَمَنْ أَكْرَمُ يَا إِلَهِي مِنْكَ، وَ مَنْ أَشْقَى مِمَّنْ هَلَكَ عَلَيْكَ لَا مَنْ فَتَبَارَكْتَ أَنْ تُوصَفَ إِلَّا بِالْإِحْسَانِ، وَ كَرُمْتَ أَنْ يُخَافَ مِنْكَ إِلَّا الْعَدْلُ، لَا يُخْشَى جَوْرُكَ عَلَى مَنْ عَصَاكَ، وَ لَا يُخَافُ إِغْفَالُكَ ثَوَابَ مَنْ أَرْضَاكَ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ هَبْ لِي أَمَلِي، وَ زِدْنِي مِنْ هُدَاكَ مَا أَصِلُ بِهِ إِلَي التَّوْفِيقِ فِي عَمَلِي، إِنَّكَ مَنَّانٌ كَرِيمٌ |
फ़ुटनोट
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 210
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 210
- ↑ अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 273-285 ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 210-247 शरह फ़राज़हाए दुआ सीयो हफ़्तुम अज़ साइट इरफ़ान
- ↑ अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 273-285
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 207-247
- ↑ फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 107-116
- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 5, पेज 221-272
- ↑ मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 435-444
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 463-474
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 233-252
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 73-74
- ↑ जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 189-192
स्रोत
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- जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
- दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
- फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
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- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी