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"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर

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कुछ समय के लिए बारहवें इमाम ने [[उस्मान बिन सईद अमरी]] को – जो आपके पिता और दादा के सहाबियों में से थे और उनके विश्वासपात्र और अमीन थे- विशेष दूत बनाया और उनके माध्यम से शियाने अहले-बैत के सवालों का जवाब देते थे। उस्मान बिन सईद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे [[मुहम्मद बिन उस्मान अमरी]] इमाम के विशेष दूत बने उनके निधन पश्चात यह पद [[अबुल क़ासिम हुसैन बिन रूह नौबख्ती]] को सौप दिया गया। हुसैन बिन रूह के स्वर्गवास पश्चात [[अली बिन मुहम्मद समरी]] इमाम असर (अ.स.) नायबे खास थे। <ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231</ref>
कुछ समय के लिए बारहवें इमाम ने [[उस्मान बिन सईद अमरी]] को – जो आपके पिता और दादा के सहाबियों में से थे और उनके विश्वासपात्र और अमीन थे- विशेष दूत बनाया और उनके माध्यम से शियाने अहले-बैत के सवालों का जवाब देते थे। उस्मान बिन सईद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे [[मुहम्मद बिन उस्मान अमरी]] इमाम के विशेष दूत बने उनके निधन पश्चात यह पद [[अबुल क़ासिम हुसैन बिन रूह नौबख्ती]] को सौप दिया गया। हुसैन बिन रूह के स्वर्गवास पश्चात [[अली बिन मुहम्मद समरी]] इमाम असर (अ.स.) नायबे खास थे। <ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231</ref>


अली बिन मुहम्मद सुमरी की मृत्यु के कुछ दिन पहले वर्ष 329 हिजरी में, इमाम अस्र (अ.त.) द्वारा एक संदेश जारी किया गया जिसमें अली बिन मुहम्मद समरी को निर्देश दिया गया था कि "आप आज से छह दिन बाद इस दुनिया को छोड़ देंगे और उसके बाद, नयाबत खासा का द्वार बंद कर दिया गया है और अब गैबते कुबरा (दीर्घ गुप्तकाल) शुरू होगी और यह उस दिन तक जारी रहेगी जब तक अल्लाह ज़हूर की अनुमति नहीं देगा।
अली बिन मुहम्मद समरी की मृत्यु के कुछ दिन पहले वर्ष 329 हिजरी में, [[इमाम अस्र (अ.त.)]] द्वारा एक संदेश जारी किया गया जिसमें अली बिन मुहम्मद समरी को निर्देश दिया गया था कि "आप आज से छह दिन बाद इस दुनिया को छोड़ देंगे और उसके बाद, नयाबत खास्सा का द्वार बंद कर दिया गया है और अब गैबते कुबरा (दीर्घ गुप्तकाल) शुरू होगी और यह उस दिन तक जारी रहेगी जब तक अल्लाह ज़हूर की अनुमति नहीं देगा।


तो, इस भविष्यवाणी (तौकीअ) के अनुसार, बारहवें इमाम (अ.त.) की ग़ैबत के दो काल है।
तो, इस भविष्यवाणी (तौकीअ) के अनुसार, बारहवें इमाम (अ.त.) की ग़ैबत के दो काल है।


'''ग़ैबते सुग़रा (लघु गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 260 हिजरी में शुरू हुआ और साल 329 हिजरी में खत्म हुआ और यह प्रतिक्रिया लगभग 70 साल तक जारी रही।
'''ग़ैबते सुग़रा (लघु गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 260 हिजरी में शुरू हुआ और साल 329 हिजरी में खत्म हुआ और यह प्रतिक्रिया लगभग 70 साल तक जारी रही।
'''ग़ैबते कुबरा (दीर्घ गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 329 हिजरी से शुरू हुआ और जब तक अल्लाह इमाम को ज़हूर की अनुमति नही दे देता तब तक जारी रहेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) शिया और सुन्नियों द्वारा सहमत हदीस के संदर्भ में कहते हैं:
'''ग़ैबते कुबरा (दीर्घ गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 329 हिजरी से शुरू हुआ और जब तक अल्लाह इमाम को ज़हूर की अनुमति नही दे देता तब तक जारी रहेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) [[शिया ऐतेक़ादात|शिया]] और सुन्नियों द्वारा सहमत हदीस के संदर्भ में कहते हैं:
अगर इस दुनिया के जीवन में एक दिन के अलावा कुछ भी नहीं बचा हो, तो अल्लाह तआला इस दिन को इतना लम्बा करेगा जब तक कि मेरे बच्चों में से महदी ज़हूर करे और इस दुनिया को न्याय से भर दे जिस प्रकार यह अत्याचार और उत्पीड़न से भर चुकी होगी। <ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231</ref>
अगर इस दुनिया के जीवन में एक दिन के अलावा कुछ भी नहीं बचा हो, तो अल्लाह तआला इस दिन को इतना लम्बा करेगा जब तक कि मेरे बच्चों में से महदी ज़हूर करे और इस दुनिया को न्याय से भर दे जिस प्रकार यह अत्याचार और उत्पीड़न से भर चुकी होगी। <ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231</ref>




==अहले सुन्नत के बीच शिया इमामो की मंज़ीलत==
==अहले सुन्नत के बीच शिया इमामो की मंज़ीलत==
अहले सुन्नत शिया के बारह इमामों को पैगंबर (स.अ.) का बिला फ़ासला उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं,<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूले ख़म्सा, पेज 514; तफ़ताज़ानी, शरहुल मकासिद, भाग 5, पेज 263 और 290</ref>  लेकिन उनसे मुहब्बत करते है<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः बग़दादी, अलफ़रको बैनल फ़िरक़, पेज 353-354</ref> पैगंबर (स.अ.) के कथन के आधार पर जो उनके स्रोतों में बयान किया गया है। रिश्तेदार जो आय ए मवद्दत के अनुसार<ref> क़ुल्ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा, सूरा ए शूरा आयत, 23</ref> उनसे मवद्दत अनिवार्य है, अली (अ.) और फातिमा (स.) और उनके दो बच्चे है।"<ref>हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत तंज़ील, भाग 2, पेज 189 और 196; ज़मख़शरि, अल कश्शाफ़, भाग 4, पेज 219-220</ref>  6 टी चंद्र शताब्दी हिजरी के सुन्नी मुफ़स्सिर और मुताकल्लिम फख़रूद्दीन राज़ी ने आय ए मुवद्दत का हवाला देते हुए नमाज़ के तशाहुद मे सलवात और पैगंबर (स.अ.) की सीरत मे अली (अ.) और फ़ातिमा (स.) तथा उनके बच्चों से प्यार और दोस्ती को अनिवार्य माना है।<ref>फ़ख्रे राज़ी, अल तफ़सीर उल कबीर, भाग 27, पेज 595</ref>
अहले सुन्नत शिया के बारह इमामों को पैगंबर (स.अ.) का बिला फ़ासला उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं,<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूले ख़म्सा, पेज 514; तफ़ताज़ानी, शरहुल मकासिद, भाग 5, पेज 263 और 290</ref>  लेकिन उनसे मुहब्बत करते है<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः बग़दादी, अलफ़रको बैनल फ़िरक़, पेज 353-354</ref> पैगंबर (स.अ.) के कथन के आधार पर जो उनके स्रोतों में बयान किया गया है। रिश्तेदार जो [[आय ए मवद्दत]] के अनुसार<ref> क़ुल्ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा, सूरा ए शूरा आयत, 23</ref> उनसे मवद्दत अनिवार्य है, अली (अ.) और फातिमा (स.) और उनके दो बच्चे है।"<ref>हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत तंज़ील, भाग 2, पेज 189 और 196; ज़मख़शरि, अल कश्शाफ़, भाग 4, पेज 219-220</ref>  6 टी चंद्र शताब्दी हिजरी के सुन्नी मुफ़स्सिर और मुताकल्लिम [[फख़रूद्दीन राज़ी]] ने आय ए मुवद्दत का हवाला देते हुए नमाज़ के [[तशहुद]] मे सलवात और पैगंबर (स.अ.) की सीरत मे अली (अ.) और फ़ातिमा (स.) तथा उनके बच्चों से प्यार और दोस्ती को अनिवार्य माना है।<ref>फ़ख्रे राज़ी, अल तफ़सीर उल कबीर, भाग 27, पेज 595</ref>


कुछ सुन्नी विद्वान शिया इमामों के दरगाहों पर जाकर जियारत करते और उनसे तवस्सुल करते थे। तीसरी चंद्र शताब्दी हिजरी मे सुन्नी विद्वान अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की कब्र पर जाता और उनसे तवस्सुल करता, और मेरी समस्या हल हो जाती।<ref>बग़दादी, तारीख़ ए बग़दाद, भाग 1, पेज 133</ref> तीसरी चौथी हिजरी के सुन्नी धर्मशास्त्री, मुफस्सिर, मुहद्दिस अबू बक्र मुहम्मद बिन ख़ुजैमा से नकल हुआ है कई बार इमाम रज़ा (अ.) की ज़ियारत को गया तो मेरे तवस्सुल को देखकर दूसरे दंग रह जाते<ref>इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीब उत तहज़ीब, भाग 7, पेज 388</ref> एक और दूसरे सुन्नी मुहद्दिस इब्ने हिब्बान जिनका संबंध भी तीसरी और चौथी शताब्दी से है उन्होंने कहा कि जब मैं तुस में था और मुझे कोई समस्या होती, तो मैं अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ की ज़ियारत को जाता और दुआ करता, और मेरी दुआ कबूल होती और मेरी समस्या हल हो जाती थी<ref>इब्ने हब्बान, अलसेक़ात, भाग 8, पेज 457</ref>
कुछ सुन्नी विद्वान शिया इमामों के दरगाहों पर जाकर जियारत करते और उनसे तवस्सुल करते थे। तीसरी चंद्र शताब्दी हिजरी मे सुन्नी विद्वान अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की कब्र पर जाता और उनसे तवस्सुल करता, और मेरी समस्या हल हो जाती।<ref>बग़दादी, तारीख़ ए बग़दाद, भाग 1, पेज 133</ref> तीसरी चौथी हिजरी के सुन्नी धर्मशास्त्री, मुफस्सिर, मुहद्दिस अबू बक्र मुहम्मद बिन ख़ुजैमा से नकल हुआ है कई बार इमाम रज़ा (अ.) की ज़ियारत को गया तो मेरे तवस्सुल को देखकर दूसरे दंग रह जाते<ref>इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीब उत तहज़ीब, भाग 7, पेज 388</ref> एक और दूसरे सुन्नी मुहद्दिस इब्ने हिब्बान जिनका संबंध भी तीसरी और चौथी शताब्दी से है उन्होंने कहा कि जब मैं तुस में था और मुझे कोई समस्या होती, तो मैं अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ की ज़ियारत को जाता और दुआ करता, और मेरी दुआ कबूल होती और मेरी समस्या हल हो जाती थी<ref>इब्ने हब्बान, अलसेक़ात, भाग 8, पेज 457</ref>
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