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"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर

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'''''यह लेख बारह इमामों के परिचय से संबंधित है। इमामों की [[इमामत]] और उनके तर्को के बारे में जानने के लिए [[शिया इस्ना अशरी|शिया]] इमामों की इमामत को देखे। अभी इस लेख पर कार्य जारी है और यह पूरा नही हुआ है।'''''
'''''यह लेख बारह इमामों के परिचय से संबंधित है। इमामों की [[इमामत]] और उनके तर्को के बारे में जानने के लिए [[शिया इस्ना अशरी|शिया]] इमामों की इमामत को देखे।'''''




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'''विस्तृत लेख: नवाब अरबा'''
'''विस्तृत लेख: नवाब अरबा'''


कुछ समय के लिए बारहवें इमाम ने उस्मान बिन सईद अमरी को – जो आपके पिता और दादा के सहाबियों में से थे और उनके विश्वासपात्र और अमीन थे- विशेष दूत बनाया और उनके माध्यम से शियाने अहले-बैत के सवालों का जवाब देते थे। उस्मान बिन सईद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे मुहम्मद बिन उस्मान अमरी इमाम के विशेष दूत बने उनके निधन पश्चात यह पद अबुल क़ासिम हुसैन बिन रूह नौबख्ती को सौप दिया गया। हुसैन बिन रूह के स्वर्गवास पश्चात अली बिन मुहम्मद समरी इमाम असर (अ.स.) नायबे खास थे। [151]
कुछ समय के लिए बारहवें इमाम ने उस्मान बिन सईद अमरी को – जो आपके पिता और दादा के सहाबियों में से थे और उनके विश्वासपात्र और अमीन थे- विशेष दूत बनाया और उनके माध्यम से शियाने अहले-बैत के सवालों का जवाब देते थे। उस्मान बिन सईद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे मुहम्मद बिन उस्मान अमरी इमाम के विशेष दूत बने उनके निधन पश्चात यह पद अबुल क़ासिम हुसैन बिन रूह नौबख्ती को सौप दिया गया। हुसैन बिन रूह के स्वर्गवास पश्चात अली बिन मुहम्मद समरी इमाम असर (अ.स.) नायबे खास थे। <ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231</ref>


अली बिन मुहम्मद सुमरी की मृत्यु के कुछ दिन पहले वर्ष 329 हिजरी में, इमाम अस्र (अ.त.) द्वारा एक संदेश जारी किया गया जिसमें अली बिन मुहम्मद समरी को निर्देश दिया गया था कि "आप आज से छह दिन बाद इस दुनिया को छोड़ देंगे और उसके बाद, नयाबत खासा का द्वार बंद कर दिया गया है और अब गैबते कुबरा (दीर्घ गुप्तकाल) शुरू होगी और यह उस दिन तक जारी रहेगी जब तक अल्लाह ज़हूर की अनुमति नहीं देगा।
अली बिन मुहम्मद सुमरी की मृत्यु के कुछ दिन पहले वर्ष 329 हिजरी में, इमाम अस्र (अ.त.) द्वारा एक संदेश जारी किया गया जिसमें अली बिन मुहम्मद समरी को निर्देश दिया गया था कि "आप आज से छह दिन बाद इस दुनिया को छोड़ देंगे और उसके बाद, नयाबत खासा का द्वार बंद कर दिया गया है और अब गैबते कुबरा (दीर्घ गुप्तकाल) शुरू होगी और यह उस दिन तक जारी रहेगी जब तक अल्लाह ज़हूर की अनुमति नहीं देगा।
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'''ग़ैबते सुग़रा (लघु गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 260 हिजरी में शुरू हुआ और साल 329 हिजरी में खत्म हुआ और यह प्रतिक्रिया लगभग 70 साल तक जारी रही।
'''ग़ैबते सुग़रा (लघु गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 260 हिजरी में शुरू हुआ और साल 329 हिजरी में खत्म हुआ और यह प्रतिक्रिया लगभग 70 साल तक जारी रही।
'''ग़ैबते कुबरा (दीर्घ गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 329 हिजरी से शुरू हुआ और जब तक अल्लाह इमाम को ज़हूर की अनुमति नही दे देता तब तक जारी रहेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) शिया और सुन्नियों द्वारा सहमत हदीस के संदर्भ में कहते हैं:
'''ग़ैबते कुबरा (दीर्घ गुप्त काल):''' जिसका आरम्भ साल 329 हिजरी से शुरू हुआ और जब तक अल्लाह इमाम को ज़हूर की अनुमति नही दे देता तब तक जारी रहेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) शिया और सुन्नियों द्वारा सहमत हदीस के संदर्भ में कहते हैं:
अगर इस दुनिया के जीवन में एक दिन के अलावा कुछ भी नहीं बचा हो, तो अल्लाह तआला  इस दिन को इतना लम्बा करेगा जब तक कि मेरे बच्चों में से महदी ज़हूर करे और इस दुनिया को न्याय से भर दे जिस प्रकार यह अत्याचार और उत्पीड़न से भर चुकी होगी। [152]
अगर इस दुनिया के जीवन में एक दिन के अलावा कुछ भी नहीं बचा हो, तो अल्लाह तआला  इस दिन को इतना लम्बा करेगा जब तक कि मेरे बच्चों में से महदी ज़हूर करे और इस दुनिया को न्याय से भर दे जिस प्रकार यह अत्याचार और उत्पीड़न से भर चुकी होगी। <ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231</ref>




==अहले सुन्नत के बीच शिया इमामो की मंज़ीलत==
==अहले सुन्नत के बीच शिया इमामो की मंज़ीलत==
अहले सुन्नत शिया के बारह इमामों को पैगंबर (स.अ.) का बिला फ़ासला उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं, [153] लेकिन उनसे मुहब्बत करते है [154] पैगंबर (स.अ.) के कथन के आधार पर जो उनके स्रोतों में बयान किया गया है। रिश्तेदार जो आय ए मवद्दत के अनुसार, [155] उनसे मवद्दत अनिवार्य है, अली (अ.) और फातिमा (स.) और उनके दो बच्चे है।" [156] 6 टी चंद्र शताब्दी हिजरी के सुन्नी मुफ़स्सिर और मुताकल्लिम फख़रूद्दीन राज़ी ने आय ए मुवद्दत का हवाला देते हुए नमाज़ के तशाहुद मे सलवात और पैगंबर (स.अ.) की सीरत मे अली (अ.) और फ़ातिमा (स.) तथा उनके बच्चों से प्यार और दोस्ती को अनिवार्य माना है।[157]
अहले सुन्नत शिया के बारह इमामों को पैगंबर (स.अ.) का बिला फ़ासला उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं,<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूले ख़म्सा, पेज 514; तफ़ताज़ानी, शरहुल मकासिद, भाग 5, पेज 263 और 290</ref>  लेकिन उनसे मुहब्बत करते है<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः बग़दादी, अलफ़रको बैनल फ़िरक़, पेज 353-354</ref> पैगंबर (स.अ.) के कथन के आधार पर जो उनके स्रोतों में बयान किया गया है। रिश्तेदार जो आय ए मवद्दत के अनुसार<ref> क़ुल्ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा, सूरा ए शूरा आयत, 23</ref> उनसे मवद्दत अनिवार्य है, अली (अ.) और फातिमा (स.) और उनके दो बच्चे है।"<ref>हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत तंज़ील, भाग 2, पेज 189 और 196; ज़मख़शरि, अल कश्शाफ़, भाग 4, पेज 219-220</ref>  6 टी चंद्र शताब्दी हिजरी के सुन्नी मुफ़स्सिर और मुताकल्लिम फख़रूद्दीन राज़ी ने आय ए मुवद्दत का हवाला देते हुए नमाज़ के तशाहुद मे सलवात और पैगंबर (स.अ.) की सीरत मे अली (अ.) और फ़ातिमा (स.) तथा उनके बच्चों से प्यार और दोस्ती को अनिवार्य माना है।<ref>फ़ख्रे राज़ी, अल तफ़सीर उल कबीर, भाग 27, पेज 595</ref>


कुछ सुन्नी विद्वान शिया इमामों के दरगाहों पर जाकर जियारत करते और उनसे तवस्सुल करते थे। तीसरी चंद्र शताब्दी हिजरी मे सुन्नी विद्वान अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की कब्र पर जाता और उनसे तवस्सुल करता, और मेरी समस्या हल हो जाती। [158] तीसरी चौथी हिजरी के सुन्नी धर्मशास्त्री, मुफस्सिर, मुहद्दिस अबू बक्र मुहम्मद बिन ख़ुजैमा से नकल हुआ है कई बार इमाम रज़ा (अ.) की ज़ियारत को गया तो मेरे तवस्सुल को देखकर दूसरे दंग रह जाते [159] एक और दूसरे सुन्नी मुहद्दिस इब्ने हिब्बान जिनका संबंध भी तीसरी और चौथी शताब्दी से है उन्होंने कहा कि जब मैं तुस में था और मुझे कोई समस्या होती, तो मैं अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ की ज़ियारत को जाता और दुआ करता, और मेरी दुआ कबूल होती और मेरी समस्या हल हो जाती थी [160]
कुछ सुन्नी विद्वान शिया इमामों के दरगाहों पर जाकर जियारत करते और उनसे तवस्सुल करते थे। तीसरी चंद्र शताब्दी हिजरी मे सुन्नी विद्वान अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की कब्र पर जाता और उनसे तवस्सुल करता, और मेरी समस्या हल हो जाती।<ref>बग़दादी, तारीख़ ए बग़दाद, भाग 1, पेज 133</ref> तीसरी चौथी हिजरी के सुन्नी धर्मशास्त्री, मुफस्सिर, मुहद्दिस अबू बक्र मुहम्मद बिन ख़ुजैमा से नकल हुआ है कई बार इमाम रज़ा (अ.) की ज़ियारत को गया तो मेरे तवस्सुल को देखकर दूसरे दंग रह जाते<ref>इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीब उत तहज़ीब, भाग 7, पेज 388</ref> एक और दूसरे सुन्नी मुहद्दिस इब्ने हिब्बान जिनका संबंध भी तीसरी और चौथी शताब्दी से है उन्होंने कहा कि जब मैं तुस में था और मुझे कोई समस्या होती, तो मैं अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ की ज़ियारत को जाता और दुआ करता, और मेरी दुआ कबूल होती और मेरी समस्या हल हो जाती थी<ref>इब्ने हब्बान, अलसेक़ात, भाग 8, पेज 457</ref>


समकालीन शिया धर्मशास्त्री आयतुल्लाहिल उज़्मा जाफ़र सुबहानी के अनुसार, कई सुन्नी विद्वानों ने शिया इमामों (अ.स.) के धार्मिक और वैज्ञानिक अधिकार को स्वीकार कर लिया है। [161] उदाहरण स्वरूप हनफ़ी संप्रदाय के संस्थापक अबू हनीफ़ा से नक़ल किया गया है कि मैंने जाफ़र बिन मुहम्मद (अ.) से बड़ा कोई फ़क़ीह नही देखा। [162] यही वाक्य पहली और दूसरी चंद्र शताब्दी हिजरी के ताबेईन सुन्नी टीकाकार, मुहद्दिस मुहम्मद बिन मुस्लिम बिन शाहब ज़ोहरी ने इमाम सज्जाद (अ.) के बारे मे कहा है। [163]
समकालीन शिया धर्मशास्त्री आयतुल्लाहिल उज़्मा जाफ़र सुबहानी के अनुसार, कई सुन्नी विद्वानों ने शिया इमामों (अ.स.) के धार्मिक और वैज्ञानिक अधिकार को स्वीकार कर लिया है।<ref>सुबहानी, सीमाए अकाइद ए शिया, पेज 234</ref> उदाहरण स्वरूप हनफ़ी संप्रदाय के संस्थापक अबू हनीफ़ा से नक़ल किया गया है कि मैंने जाफ़र बिन मुहम्मद (अ.) से बड़ा कोई फ़क़ीह नही देखा।<ref>ज़हबी, सीर ए आलामुन नबला, भाग 6, पेज 257</ref> यही वाक्य पहली और दूसरी चंद्र शताब्दी हिजरी के ताबेईन सुन्नी टीकाकार, मुहद्दिस मुहम्मद बिन मुस्लिम बिन शाहब ज़ोहरी ने इमाम सज्जाद (अ.) के बारे मे कहा है।<ref>अबू ज़रआ दमिश्क़ी, तारीख़ ए अबि ज़रआ दमिश्क़ी, मजमा लुग़त उल अरबिया, पेज 536</ref>


==किताबो का परिचय==
==किताबो का परिचय==
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इमामों और उनके फ़ज़ाइलो के बारे में सुन्नी विद्वानों की निम्नलिखित किताबे उल्लेखनीय है:
इमामों और उनके फ़ज़ाइलो के बारे में सुन्नी विद्वानों की निम्नलिखित किताबे उल्लेखनीय है:


# '''मतालिब अस्सऊल फ़ी मनाक़िबे आले रसूलः''' मुहम्मद बिन तल्हा शाफेई ने इस किताब को अरबी भाषा मे 12 अध्याय पर आधारित 12 इमामो की जीवनी का उल्लेख किया है। [164]
# '''मतालिब अस्सऊल फ़ी मनाक़िबे आले रसूलः''' मुहम्मद बिन तल्हा शाफेई ने इस किताब को अरबी भाषा मे 12 अध्याय पर आधारित 12 इमामो की जीवनी का उल्लेख किया है।<ref>तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 481-483</ref>
# '''तज़्केरतुल ख़वास मिनल आइम्मते फ़ी ज़िक्रे ख़साएसिल आइम्माः''' हनफी संप्रदाय के विद्वान और इतिहासकार युसुफ बिन कज़ाऊग़ली प्रसिद्ध सिब्ते बिन जोज़ी ने बारह इमामो की जीवनी और उनके फज़ाइल को 12 अध्याय मे ज़िक्र किया है। [165]
# '''तज़्केरतुल ख़वास मिनल आइम्मते फ़ी ज़िक्रे ख़साएसिल आइम्माः''' हनफी संप्रदाय के विद्वान और इतिहासकार युसुफ बिन कज़ाऊग़ली प्रसिद्ध सिब्ते बिन जोज़ी ने बारह इमामो की जीवनी और उनके फज़ाइल को 12 अध्याय मे ज़िक्र किया है।<ref>इब्ने जोज़ी, तज़्केरतुल ख़वास, पेज 102-103</ref>
# '''अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्माः''' नवी शताब्दी के सुन्नी विद्वान इब्ने सब्बाग़ मालेकी (मृत्यु 855 हिजरी) ने बारह इमामो की जीवनी और फ़ज़ाइल का उल्लेख किया है इस किताब से शिया और सुन्नी विद्वानो ने बहुत सारे हवाले बयान किए है। [166]
# '''अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्माः''' नवी शताब्दी के सुन्नी विद्वान इब्ने सब्बाग़ मालेकी (मृत्यु 855 हिजरी) ने बारह इमामो की जीवनी और फ़ज़ाइल का उल्लेख किया है इस किताब से शिया और सुन्नी विद्वानो ने बहुत सारे हवाले बयान किए है।<ref>इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, पेज 6 और 683-684</ref>
# '''अल आइम्मतिल इस्ना अशर या अश्शज़ारातुज़ ज़हबियाः''' दमिश्क के रहने वाले हनफ़ी संप्रदाय के सुन्नी विद्वान शम्सुद्दीन इब्ने तूलून (मृत्यु 953 हिजरी) द्वारा लिखित। [167]
# '''अल आइम्मतिल इस्ना अशर या अश्शज़ारातुज़ ज़हबियाः''' दमिश्क के रहने वाले हनफ़ी संप्रदाय के सुन्नी विद्वान शम्सुद्दीन इब्ने तूलून (मृत्यु 953 हिजरी) द्वारा लिखित।<ref>इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, मुकद्देमा मोहक़्क़िक़, पेज 24</ref>
# '''अलइत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़ः''' मिस्र के रहने वाले शाफ़ेई संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान जमालुद्दीन शबरावी (मृत्यु 1092-1172 हिजरी) द्वारा पैगंबर (स.) के परिवार और आइम्मा (अ.) की जीवनी पर आधारित है।[168]
# '''अलइत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़ः''' मिस्र के रहने वाले शाफ़ेई संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान जमालुद्दीन शबरावी (मृत्यु 1092-1172 हिजरी) द्वारा पैगंबर (स.) के परिवार और आइम्मा (अ.) की जीवनी पर आधारित है।<ref>तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 235</ref>
# '''नूरुल अबसार फ़ी मनाक़िबे आले बैतिन नबी अल मुख्तारः''' 13 शताब्दी के सुन्नी विद्वान मोमिन शबलंजी ने अपनी किताब मे पैगंबर (स.), शियो के इमाम और अहले सुन्नत के खलीफ़ाओ की जीवनी का उल्लेख किया है।[169]  
# '''नूरुल अबसार फ़ी मनाक़िबे आले बैतिन नबी अल मुख्तारः''' 13 शताब्दी के सुन्नी विद्वान मोमिन शबलंजी ने अपनी किताब मे पैगंबर (स.), शियो के इमाम और अहले सुन्नत के खलीफ़ाओ की जीवनी का उल्लेख किया है।<ref>शबरावी, अल इत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़, पेज 5-7</ref>  
# '''यनाबी उल मवद्दा लेज़विल क़ुर्बाः''' अहले-बैत पैगंबर (स.) की जीवनी, फ़ज़ाइल से विशिष्ट किताब हनफी संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान सुलेमान बिन इब्राहीम कंदूज़ी (मृत्यु 1294 हिजरी) द्वारा लिखित। [170]
# '''यनाबी उल मवद्दा लेज़विल क़ुर्बाः''' अहले-बैत पैगंबर (स.) की जीवनी, फ़ज़ाइल से विशिष्ट किताब हनफी संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान सुलेमान बिन इब्राहीम कंदूज़ी (मृत्यु 1294 हिजरी) द्वारा लिखित।<ref>शाह मुहम्मदी, अली वा शुकूह ग़दीरे ख़ुम, पेज 45</ref>
   
   


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
• अहले-बैत (अलैहेमुस्सलाम)
• अहले-बैत (अलैहेमुस्सलाम)
• शिया इमामो की इमामत
• शिया इमामो की इमामत
चौदाह मासूमीन
 
चौदा मासूमीन


==फ़ुटनोट==
==फ़ुटनोट==
# तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231
 
# तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231
# उदाहरण स्वरूप देखेः क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूले ख़म्सा, पेज 514; तफ़ताज़ानी, शरहुल मकासिद, भाग 5, पेज 263 और 290
# उदाहरण स्वरूप देखेः बग़दादी, अलफ़रको बैनल फ़िरक़, पेज 353-354
# क़ुल्ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा, सूरा ए शूरा आयत, 23
# हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत तंज़ील, भाग 2, पेज 189 और 196; ज़मख़शरि, अल कश्शाफ़, भाग 4, पेज 219-220
# फ़ख्रे राज़ी, अल तफ़सीर उल कबीर, भाग 27, पेज 595
# बग़दादी, तारीख़ ए बग़दाद, भाग 1, पेज 133
# इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीब उत तहज़ीब, भाग 7, पेज 388
# इब्ने हब्बान, अलसेक़ात, भाग 8, पेज 457
# सुबहानी, सीमाए अकाइद ए शिया, पेज 234
# ज़हबी, सीर ए आलामुन नबला, भाग 6, पेज 257
# अबू ज़रआ दमिश्क़ी, तारीख़ ए अबि ज़रआ दमिश्क़ी, मजमा लुग़त उल अरबिया, पेज 536
# तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 481-483
# इब्ने जोज़ी, तज़्केरतुल ख़वास, पेज 102-103
# इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, पेज 6 और 683-684
# इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, मुकद्देमा मोहक़्क़िक़, पेज 24
# तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 235
# शबरावी, अल इत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़, पेज 5-7
# शाह मुहम्मदी, अली वा शुकूह ग़दीरे ख़ुम, पेज 45


==स्रोत==
==स्रोत==
गुमनाम सदस्य