गुमनाम सदस्य
"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर
सम्पादन सारांश नहीं है
imported>Asif No edit summary |
imported>Asif No edit summary |
||
पंक्ति २१७: | पंक्ति २१७: | ||
मुहम्मद बिन हसन, इमाम महदी और इमाम ज़मान (अ.त.) शियो के बारहवे और अंतिम इमाम है। इमाम हसन असकरी और [[नरजिस ख़ातुन]] के पुत्र 15 शाबान 255 हिजरी को समर्रा में पैदा हुए।<ref> कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 514; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418</ref> | मुहम्मद बिन हसन, इमाम महदी और इमाम ज़मान (अ.त.) शियो के बारहवे और अंतिम इमाम है। इमाम हसन असकरी और [[नरजिस ख़ातुन]] के पुत्र 15 शाबान 255 हिजरी को समर्रा में पैदा हुए।<ref> कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 514; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418</ref> | ||
इमाम महदी पांच साल की उम्र में इमामत पर पहुंचे।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418</ref>पैगंबर (स.) और सभी इमामों ने उनके इमाम होने की पुष्टि की है।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339-340</ref>इमाम महदी अपने पिता की शहादत के समय 260 हिजरी तक लोगों से गुप्त थे और कुछ विशेष शिया लोगो के अतिरिक्त उनसे कोई मिल नही सकता था।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 336</ref>अपने पिता की शहादत के बाद अल्लाह के हुक्म से जनता की आखो से गायब हो गए। उन्होंने लगभग सत्तर साल ग़ैबत ए सुग़रा (संक्षिप्त गुप्त काल) मे बिताए और इस अवधि वे चार विशेष प्रतिनियुक्तियों के माध्यम से शियाओं के संपर्क में थे; परंतु 329 हिजरी में ग़ैबत ए कुबरा (विस्तृत गुप्त काल) की शुरुआत के साथ शियाओं और इमाम के बीच संबंध विशेष प्रतिनियुक्तियों द्वारा समाप्त कर दिया गया।<ref> तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231</ref> | इमाम महदी पांच साल की उम्र में इमामत पर पहुंचे।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418</ref>पैगंबर (स.) और सभी इमामों ने उनके इमाम होने की पुष्टि की है।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339-340</ref>इमाम महदी अपने पिता की शहादत के समय 260 हिजरी तक लोगों से गुप्त थे और कुछ विशेष शिया लोगो के अतिरिक्त उनसे कोई मिल नही सकता था।<ref>मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 336</ref>अपने पिता की शहादत के बाद अल्लाह के हुक्म से जनता की आखो से गायब हो गए। उन्होंने लगभग सत्तर साल [[ग़ैबत ए सुग़रा]] (संक्षिप्त गुप्त काल) मे बिताए और इस अवधि वे चार विशेष प्रतिनियुक्तियों के माध्यम से शियाओं के संपर्क में थे; परंतु 329 हिजरी में ग़ैबत ए कुबरा (विस्तृत गुप्त काल) की शुरुआत के साथ शियाओं और इमाम के बीच संबंध विशेष प्रतिनियुक्तियों द्वारा समाप्त कर दिया गया।<ref> तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231</ref> | ||
हदीसों के अनुसार गुप्त काल के दौरान शियाओं को उस समय के इमाम के आने की प्रतीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसे सबसे अच्छे कर्मों में से माना जाता है।<ref>देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 122</ref> हदीसों के अनुसार<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 25, हदीस 21; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 336</ref> इमाम के ज़हूर पश्चात इस्लामी समाज न्याय से भर जाएगा।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231-232</ref> बहुत सी हदीसो मे इमाम के ज़हूर (प्रकट होने की) की निशानीयो का उल्लेख किया गया है।<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 181 और 278</ref> | हदीसों के अनुसार गुप्त काल के दौरान शियाओं को उस समय के इमाम के आने की प्रतीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसे सबसे अच्छे कर्मों में से माना जाता है।<ref>देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 122</ref> हदीसों के अनुसार<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 25, हदीस 21; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 336</ref> इमाम के ज़हूर पश्चात इस्लामी समाज न्याय से भर जाएगा।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231-232</ref> बहुत सी हदीसो मे इमाम के ज़हूर (प्रकट होने की) की निशानीयो का उल्लेख किया गया है।<ref>उदाहरण स्वरूप देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 181 और 278</ref> |