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"सूर ए मुनाफ़ेक़ून": अवतरणों में अंतर

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* '''सुझाव'''
* '''सुझाव'''
अल्लामा तबातबाई आयत 7 में ला यफ़क़हून «لایفقهون» की टिप्पणी में कहते हैं, या इसका अर्थ यह है कि ईश्वर के धर्म को दूसरों के दान की आवश्यकता नहीं है, और ईश्वर, जो आकाश और पृथ्वी के खजाने का मालिक है, वह जो चाहता है वह करता है, वह जिसे चाहता है देता है; परन्तु वे वही चुनते हैं जो उनके लिये अधिक समीचीन है, और उन्हें गरीबी और दरिद्रता से परखते हैं ताकि वे धैर्य रखें और उदार पुरस्कार प्राप्त करें, लेकिन पाखंडी लोग परमेश्वर के कार्य की बुद्धि (हिकमत) को नहीं समझते हैं; या इसका अर्थ यह है कि मुनाफ़िकों के पास यह समझने की शक्ति नहीं है कि आकाश और धरती के ख़ज़ाने ईश्वर के हैं, और वे सोचते हैं कि गरीबी और अभाव ईश्वर की शक्ति में नहीं हैं, और यदि वे दान (इंफ़ाक़) नहीं करते हैं ईमानवालों पर और उनकी वित्तीय सहायता काट दो, वे जीविका से वंचित हो जायेंगे 13]
अल्लामा तबातबाई आयत 7 में ला यफ़क़हून «'''لایفقهون'''» की टिप्पणी में कहते हैं, या इसका अर्थ यह है कि ईश्वर के धर्म को दूसरों के दान की आवश्यकता नहीं है, और ईश्वर, जो आकाश और पृथ्वी के खजाने का मालिक है, वह जो चाहता है वह करता है, वह जिसे चाहता है देता है; परन्तु वे वही चुनते हैं जो उनके लिये अधिक समीचीन है, और उन्हें गरीबी और दरिद्रता से परखते हैं ताकि वे धैर्य रखें और उदार पुरस्कार प्राप्त करें, लेकिन [[पाखंडी]] लोग परमेश्वर के कार्य की बुद्धि (हिकमत) को नहीं समझते हैं; या इसका अर्थ यह है कि [[पाखंडी|मुनाफ़िकों]] के पास यह समझने की शक्ति नहीं है कि आकाश और धरती के ख़ज़ाने ईश्वर के हैं, और वे सोचते हैं कि गरीबी और अभाव ईश्वर की शक्ति में नहीं हैं, और यदि वे दान (इंफ़ाक़) नहीं करते हैं ईमानवालों पर और उनकी वित्तीय सहायता काट दो, वे जीविका से वंचित हो जायेंगे 13]


भले ही वाक्य, लयुख़रेजन्नल अअज़्ज़ो मिन्हल अज़ल्ला (لَيُخْرِجَنَّ الْأَعَزُّ مِنْهَا الْأَذَلَّ) अब्दुल्लाह इब्ने उबैय के शब्द हैं, भगवान ने आयत के अंत में बहुवचन रूप में कहा: पाखंडियों को मालूम है, वला किन्नल मुनाफ़ेक़ीना ला यअलमूना (وَلكِنَّ الْمُنافِقِينَ لا يَعْلَمُونَ) यह दिखाने के लिए कि अन्य अब्दुल्लाह के साथियों में से जो पाखंडी थे वे इस प्रस्ताव से सहमत थे।[14]
भले ही वाक्य, लयुख़रेजन्नल अअज़्ज़ो मिन्हल अज़ल्ला ('''لَيُخْرِجَنَّ الْأَعَزُّ مِنْهَا الْأَذَلَّ''') अब्दुल्लाह इब्ने उबैय के शब्द हैं, भगवान ने आयत के अंत में बहुवचन रूप में कहा: पाखंडियों को मालूम है, वला किन्नल मुनाफ़ेक़ीना ला यअलमूना ('''وَلكِنَّ الْمُنافِقِينَ لا يَعْلَمُونَ''') यह दिखाने के लिए कि अन्य अब्दुल्लाह के साथियों में से जो पाखंडी थे वे इस प्रस्ताव से सहमत थे।[14]


== प्रसिद्ध आयत ==
== प्रसिद्ध आयत ==
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अनुवाद: और जब तुम उन्हें देखते हो, तो उनकी आकृतियाँ (शरीर) तुमको आश्चर्यचकित कर देती हैं, और जब वे बोलते हैं, तो तुम उनकी बातें सुनते हो, जैसे कि वे दीवार के पीछे मोमबत्तियाँ हैं [जो फीकी हो गई हैं और भरोसे के लायक नहीं हैं], वे हर रोने (फ़रयाद) को अपना नुक़सान समझते हैं, वे अपने ही शत्रु हैं, उनसे सावधान रहो, भगवान उन्हें मार डाले वे किस हद तक [सच्चाई से] भटक गए हैं।
अनुवाद: और जब तुम उन्हें देखते हो, तो उनकी आकृतियाँ (शरीर) तुमको आश्चर्यचकित कर देती हैं, और जब वे बोलते हैं, तो तुम उनकी बातें सुनते हो, जैसे कि वे दीवार के पीछे मोमबत्तियाँ हैं [जो फीकी हो गई हैं और भरोसे के लायक नहीं हैं], वे हर रोने (फ़रयाद) को अपना नुक़सान समझते हैं, वे अपने ही शत्रु हैं, उनसे सावधान रहो, भगवान उन्हें मार डाले वे किस हद तक [सच्चाई से] भटक गए हैं।


ख़ोशोबुन मोसन्नदतुन  (خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ) को ऐसी अनुपयोगी लकड़ी माना गया है जो किनारे पर किसी चीज़ पर झुकी हुई हो। कुछ टिप्पणीकार पाखंडियों की तुलना पेड़ के कटे हुए तने से करते हैं। कअन्नहुम ख़ोशोबुन मोसन्नदतुन «كَأَنَّهُمْ خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ» हल्कापन और सरंध्रता और दबाव और प्रभाव के विरुद्ध टूटना; हल्कापन और सरंध्रता और दबाव और प्रभाव के विरुद्ध टूटना; ठहराव और सूखापन और लचीलेपन और प्रभावशालीता की कमी; अपने पैरों पर खड़े होने में स्वतंत्रता की कमी; और उन्होंने सुनने और सोचने की शक्ति की कमी को पाखंडियों के लक्षणों में से एक माना है।[15] तफ़सीर मजमा उल बयान में तबरसी ने ख़ोशोबुन मोसन्नदतुन (خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ) का अर्थ आत्मा से रहित लाशें माना है और कहा कि इस उपमा का अर्थ यह है कि पाखंडी लोग तर्क और समझ से रहित हैं, ठीक उसी तरह जैसे लकड़ी जो आत्मा से रहित होती है। [16]
ख़ोशोबुन मोसन्नदतुन  ('''خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ''') को ऐसी अनुपयोगी लकड़ी माना गया है जो किनारे पर किसी चीज़ पर झुकी हुई हो। कुछ टिप्पणीकार पाखंडियों की तुलना पेड़ के कटे हुए तने से करते हैं। कअन्नहुम ख़ोशोबुन मोसन्नदतुन «'''كَأَنَّهُمْ خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ'''» हल्कापन और सरंध्रता और दबाव और प्रभाव के विरुद्ध टूटना; हल्कापन और सरंध्रता और दबाव और प्रभाव के विरुद्ध टूटना; ठहराव और सूखापन और लचीलेपन और प्रभावशालीता की कमी; अपने पैरों पर खड़े होने में स्वतंत्रता की कमी; और उन्होंने सुनने और सोचने की शक्ति की कमी को पाखंडियों के लक्षणों में से एक माना है।[15] [[तफ़सीर मजमा उल बयान]] में तबरसी ने ख़ोशोबुन मोसन्नदतुन ('''خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ''') का अर्थ आत्मा से रहित लाशें माना है और कहा कि इस उपमा का अर्थ यह है कि पाखंडी लोग तर्क और समझ से रहित हैं, ठीक उसी तरह जैसे लकड़ी जो आत्मा से रहित होती है। [16]


== गुण और विशेषताएं ==
== गुण और विशेषताएं ==
तफ़सीर मजमा उल बयान में, पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि जो कोई सूर ए मुनाफ़ेक़ून का पाठ करेगा, वह सभी पाखंड से शुद्ध हो जाएगा।[17] किताब सवाब उल आमाल में इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित एक हदीस में शियों को शुक्रवार के दिन ज़ोहर की नमाज़ में सूर ए मुनाफ़ेक़ून का पाठ करने की सलाह दी गई है। इस हदीस में वर्णित हुआ है कि: जो कोई ऐसा काम करता है, ऐसा है जैसा कि उसने पैग़म्बर (स) का कार्य (अमल) किया है और उसका इनाम (सवाब) स्वर्ग है।(18) कुछ न्यायविदों के अनुसार, जुमा की नमाज़ की दूसरी रकअत में सूर ए मुनाफ़ेक़ून का पाठ करना मुस्तहब है।(19)  
तफ़सीर मजमा उल बयान में, [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] से वर्णित हुआ है कि जो कोई सूर ए मुनाफ़ेक़ून का पाठ करेगा, वह सभी पाखंड से शुद्ध हो जाएगा।[17] [[सवाब उल आमाल|किताब सवाब उल आमाल]] में [[इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम|इमाम सादिक़ (अ)]] से वर्णित एक [[हदीस]] में [[शिया|शियों]] को शुक्रवार के दिन [[ज़ोहर की नमाज़]] में सूर ए मुनाफ़ेक़ून का पाठ करने की सलाह दी गई है। इस हदीस में वर्णित हुआ है कि: जो कोई ऐसा काम करता है, ऐसा है जैसा कि उसने पैग़म्बर (स) का कार्य (अमल) किया है और उसका इनाम (सवाब) [[स्वर्ग]] है।(18) कुछ न्यायविदों के अनुसार, [[जुमा की नमाज़]] की दूसरी रकअत में सूर ए मुनाफ़ेक़ून का पाठ करना [[मुस्तहब]] है।(19)  


== मोनोग्राफ़ी ==
== मोनोग्राफ़ी ==
* दोस्त नमाहा: तफ़सीर सूर ए मुनाफ़ेक़ून, बोस्ताने किताब क़ुम, जाफ़र सुब्हानी, 5वां संस्करण 1393 शम्सी, 84 पृष्ठ।[20]
* दोस्त नमाहा: तफ़सीर सूर ए मुनाफ़ेक़ून, बोस्ताने किताब क़ुम, [[जाफ़र सुब्हानी]], 5वां संस्करण 1393 शम्सी, 84 पृष्ठ।[20]
* तशाबोह व तमायुज़ नेफ़ाक़ दर सद्रे इस्लाम व अस्रे हाज़िर, वली सूरी द्वारा लिखित, मआरिफ़ मअनवी प्रकाशन।
* तशाबोह व तमायुज़ नेफ़ाक़ दर सद्रे इस्लाम व अस्रे हाज़िर, वली सूरी द्वारा लिखित, मआरिफ़ मअनवी प्रकाशन।
* मेअयारहाए शनाख़त मुनाफ़िक़ व शिवेहाए बर ख़ुर्द बा आन दर जामेआ, सिद्दीक़ा खानी द्वारा लिखित, नज़ारी प्रकाशन, 1397 शम्सी।
* मेअयारहाए शनाख़त मुनाफ़िक़ व शिवेहाए बर ख़ुर्द बा आन दर जामेआ, सिद्दीक़ा खानी द्वारा लिखित, नज़ारी प्रकाशन, 1397 शम्सी।
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