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"अस्थायी विवाह": अवतरणों में अंतर

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ऐसे कथनों का हवाला देते हुए, [[इमामिया]] का मानना ​​​​है कि उमर बिन ख़त्ताब [23] द्वारा पहली बार अस्थायी विवाह पर प्रतिबंध और पाबंदी लगाई गई थी।[23] और उनका यह कृत्य धर्म में एक प्रकार का [[बिदअथ|विधर्म]] और [[नस्स के विरुद्ध इज्तेहाद|नस्स के खिलाफ़ इज्तिहाद]] और पैग़म्बर (स) के कानून का विरोध है। [24] सुन्नी विद्वानों में से एक, इब्ने हजर असक़लानी (773-852 हिजरी) ने भी कहा है कि पैग़म्बर के समय के दौरान और उनके बाद, [[अबू बक्र]] की खिलाफ़त की पूरी अवधि और उमर की खिलाफ़त के एक हिस्से के दौरान अस्थायी विवाह अनुमेय और प्रथागत था। लेकिन अंत में, उमर ने अपने जीवन के अंतिम दिनो में इसे निषिद्ध घोषित कर दिया था।[25]
ऐसे कथनों का हवाला देते हुए, [[इमामिया]] का मानना ​​​​है कि उमर बिन ख़त्ताब [23] द्वारा पहली बार अस्थायी विवाह पर प्रतिबंध और पाबंदी लगाई गई थी।[23] और उनका यह कृत्य धर्म में एक प्रकार का [[बिदअथ|विधर्म]] और [[नस्स के विरुद्ध इज्तेहाद|नस्स के खिलाफ़ इज्तिहाद]] और पैग़म्बर (स) के कानून का विरोध है। [24] सुन्नी विद्वानों में से एक, इब्ने हजर असक़लानी (773-852 हिजरी) ने भी कहा है कि पैग़म्बर के समय के दौरान और उनके बाद, [[अबू बक्र]] की खिलाफ़त की पूरी अवधि और उमर की खिलाफ़त के एक हिस्से के दौरान अस्थायी विवाह अनुमेय और प्रथागत था। लेकिन अंत में, उमर ने अपने जीवन के अंतिम दिनो में इसे निषिद्ध घोषित कर दिया था।[25]
हालाँकि, अधिकांश सुन्नी विद्वान, अपनी [[हदीस]] के स्रोतों [26] में मौजूद कुछ हदीसों का हवाला देते हुए कहते हैं कि अस्थायी विवाह का आदेश ख़ुद पैग़म्बर के ज़माने में और उनके द्वारा निरस्त कर दिया गया था।[27] उनमें से एक समूह का यह भी मानना ​​है कि पैग़म्बर के युग में [[सूरह मोमिनून]] की आयत 5 से 7 जैसी आयतों के रहस्योद्घाटन (नाज़िल होने) के साथ अस्थायी विवाह के आदेश को निरस्त कर दिया गया था।[28] उनका मानना ​​है कि इन आयतों के अनुसार, विश्वासी (मोमिन) पवित्र लोग हैं जो अपनी पत्नियों या दासियो के अलावा किसी और के साथ यौन सुख नहीं चाहते हैं, और जो लोग किसी अन्य तरीक़े से यौन सुख प्राप्त करना चाहते हैं, उन्होंने ईश्वर की तय सीमा का उल्लंघन किया है। अस्थायी विवाह इन दोनों मामलों (पत्नी और दासी) में से कोई नहीं है। इसलिए, यह दैवीय सीमाओं का उल्लंघन है।[29]
इसके जवाब में उन्होंने कहा गया है कि सूरह अल-मोमिनून की आयते सख्या 5 से 7 [[मक्का]] में नाज़िल हुईं और मुतआ की आयत, जिसे वे अस्थायी विवाह की अनुमति के लिए संदर्भित करते हैं, इन आयतों के बाद और [[मदीना]] में नाज़िल हुई है, और निरस्त करने वाली आयत को बाद में होना चाहिये न कि पहले।[30] इसके अलावा, एक अस्थायी विवाह में, महिला को [[विवाह]] के पक्षों द्वारा निर्धारित अवधि के लिए पुरुष की शरई पत्नी माना जाता है। इसलिए, उनके वैवाहिक संबंध दैवीय सीमाओं का उल्लंघन नहीं हैं।[31]
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