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"दुआ नादे अली": अवतरणों में अंतर

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9वीं शताब्दी हिजरी के एक [[इमामिया|शिया]] विद्वान तक़ी अल-दीन इब्राहीम कफ़अमी ने मिस्बाह किताब में उल्लेख किया है,
9वीं शताब्दी हिजरी के एक [[इमामिया|शिया]] विद्वान तक़ी अल-दीन इब्राहीम कफ़अमी ने मिस्बाह किताब में उल्लेख किया है,
उन्होंने शहीद अव्वल की लिखावट में उल्लेखित वाक्यंश को देखा और कहा कि खोए हुए को खोजने के लिए और भगोड़े (फ़रार) ग़ुलाम के लिए इसका पाठ किया गया है और दोहराया गया है।<ref>कफ़अमी, मिस्बाह, दार अल-रज़ी पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 183।</ref> मोहद्दिस नूरी ने भी अपनी किताब मुस्तद्रक अल वसाएल में भी इसी बात को मिस्बाह किताब से वर्णित किया है।<ref>नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 483।</ref> अल्लामा सय्यद मोहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी ने दिवंगत सय्यद हाशिम हद्दाद से उद्धृत किया है कि जो व्यक्ति भी हर दिन 110 बार इस दुआ का पाठ करेगा:  
उन्होंने [[शहीद अव्वल]] की लिखावट में उल्लेखित वाक्यंश को देखा और कहा कि खोए हुए को खोजने के लिए और भगोड़े (फ़रार) ग़ुलाम के लिए इसका पाठ किया गया है और दोहराया गया है।<ref>कफ़अमी, मिस्बाह, दार अल-रज़ी पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 183।</ref> मोहद्दिस नूरी ने भी अपनी किताब मुस्तद्रक अल वसाएल में भी इसी बात को मिस्बाह किताब से वर्णित किया है।<ref>नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 483।</ref> अल्लामा सय्यद मोहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी ने दिवंगत सय्यद हाशिम हद्दाद से उद्धृत किया है कि जो व्यक्ति भी हर दिन 110 बार इस दुआ का पाठ करेगा:  


«'''نادِ علیًّا مَظهَرَ العجائبَ، تَجِدْهُ عَونًا لکَ فی النَّوائب، کُلُّ همٍّ و غمٍّ سَیَنجَلی، بعَظَمَتِکَ یا اللَهُ، بِنُبوَّتِکَ یا محمّد، بولایتکَ یا علیُّ یا علیُّ یا علیّ'''»
«'''نادِ علیًّا مَظهَرَ العجائبَ، تَجِدْهُ عَونًا لکَ فی النَّوائب، کُلُّ همٍّ و غمٍّ سَیَنجَلی، بعَظَمَتِکَ یا اللَهُ، بِنُبوَّتِکَ یا محمّد، بولایتکَ یا علیُّ یا علیُّ یا علیّ'''»
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