गुमनाम सदस्य
"हज़रत अब्बास अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर
→हज़रत अब्बास के भाईयो की शहादत
imported>E.musavi |
imported>E.musavi |
||
पंक्ति १३१: | पंक्ति १३१: | ||
=== तुमसे विरासत पाऊं === | === तुमसे विरासत पाऊं === | ||
अबू | अबू मख़नफ़ (157 हिजरी), तबरी (310 हिजरी) और इब्ने असीर (630 हिजरी) की रिपोर्ट के अनुसार, हज़रत अब्बास (अ) ने अपने भाइयों अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान से कहा: हे मेरी भाईयो, मैदान में जाओ ताकि कि मैं तुम से विरासत पाऊं, क्योंकि आपके कोई सन्तान नहीं है, उन्होंने वैसा ही किया और शहीद हुए।<ref>अबू मख़नफ, मकतलुल हुसैन, पेज 174-175; तबरी, तारीखे तबरी, मोअस्सेसा अल-आलमी, भाग 4, पेज 342; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख, 1399 हिजरी, भाग 4, पेज 76</ref> | ||
लेकिन कुछ लोगों के दृष्टिकोण से यह रिपोर्ट | लेकिन कुछ लोगों के दृष्टिकोण से यह रिपोर्ट ग़लत है, क्योंकि उस स्थिति में अब्बास को पता था कि मैं भी मारा जाऊंगा और विरासत मांगने का कोई मतलब नहीं है।<ref>मूसवी मुकर्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 184-186; शरीफ़ क़रशी, जिंदगानी हज़रत अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 221-222</ref> साथ ही, यह रिपोर्ट विरासत के कानून के साथ असंगत है, क्योंकि उम्मुल-बनीन की उपस्थिति और इस तथ्य के बावजूद कि हज़रत अब्बास के भाइयों की पत्निया और बच्चे नही थे। अतः विरासत हज़रत अब्बास को नहीं बल्कि उम्मुल बनीन को अपने बेटो से विरासत मिलती।<ref>देखः सालेही हाजीयाबादी, शोहदा ए नैनवा, 1396 शम्सी, पेज 41-45</ref> | ||
=== मैं तुम्हारी जंग का गवाह बनूं === | === मैं तुम्हारी जंग का गवाह बनूं === | ||
[[शेख़ मुफ़ीद|शेख मुफ़ीद]] (413 हिजरी), तबरसी (548 हिजरी), इब्ने नेमा (645 हिजरी) और इब्ने हातिम (664 हिजरी) ने नक़ल किया: जब अब्बास बिन अली (अ) ने देखा कि उनके बहुत से लोग शहीद हो गए है तो अपने भाईयो अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान से कहा: हे मेरे भाईयो! मैदान में जाओ ताकि मैं तुम्हें देख सकूं कि [तुम अल्लाह के रास्ते मे कैसे शहीद होंगे]; मैंने तुम्हें ख़ुदा और उसके रसूल के लिए नसीहत की, क्योंकि तुम्हारे संतान नहीं है।<ref>शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 109; तबरसी, ऐलाम उल वरा, उल कुतुबुल इस्लामीया, पेज 248; इब्ने नेमा, मसीर उल अहज़ान, 1369 हिजरी, पेज 5; इब्ने हातिम, अल-दुर्रुन नज़ीम, अल-नश्रुल इस्लामी, पेज 556</ref> शायद यही वजह है कि हज़रत अब्बास (अ) ने अपने भाइयों को पहले मैदान में इसलिए भेजा कि वह उन्हें जिहाद के लिए तैयार करने का इनाम और उन लोगों का भी अज्र पाए जो अपने भाई की शहादत के लिए धैर्यवान थे।<ref>उर्दूबादी, मोसूआतुल अल्लामा अल-उर्दूबादी, 1436 हिजरी, भाग 9, पेज 106</ref> | [[शेख़ मुफ़ीद|शेख मुफ़ीद]] (413 हिजरी), तबरसी (548 हिजरी), इब्ने नेमा (645 हिजरी) और इब्ने हातिम (664 हिजरी) ने नक़ल किया: जब अब्बास बिन अली (अ) ने देखा कि उनके बहुत से लोग शहीद हो गए है तो अपने भाईयो अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान से कहा: हे मेरे भाईयो! मैदान में जाओ ताकि मैं तुम्हें देख सकूं कि [तुम अल्लाह के रास्ते मे कैसे शहीद होंगे]; मैंने तुम्हें ख़ुदा और उसके रसूल के लिए नसीहत की, क्योंकि तुम्हारे संतान नहीं है।<ref>शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 109; तबरसी, ऐलाम उल वरा, उल कुतुबुल इस्लामीया, पेज 248; इब्ने नेमा, मसीर उल अहज़ान, 1369 हिजरी, पेज 5; इब्ने हातिम, अल-दुर्रुन नज़ीम, अल-नश्रुल इस्लामी, पेज 556</ref> शायद यही वजह है कि हज़रत अब्बास (अ) ने अपने भाइयों को पहले मैदान में इसलिए भेजा कि वह उन्हें जिहाद के लिए तैयार करने का इनाम और उन लोगों का भी अज्र पाए जो अपने भाई की शहादत के लिए धैर्यवान थे।<ref>उर्दूबादी, मोसूआतुल अल्लामा अल-उर्दूबादी, 1436 हिजरी, भाग 9, पेज 106</ref> | ||
== आशूर के दिन हज़रत अब्बास (अ) के रज्ज़ == | == आशूर के दिन हज़रत अब्बास (अ) के रज्ज़ == |