सहीफ़ा सज्जादिया की बत्तीसवीं दुआ
विषय | अल्लाह की तौसीफ़, पाप की स्वीकारोक्ति, मानव निर्माण के चरणों का वर्णन, अल्लाह से रहमत का आग्रह |
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प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
कथावाचक | मुतावक्किल बिन हारुन |
शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की बत्तीसवीं दुआ (अरबीःالدعاء الثاني والثلاثون من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओ में से एक है, जिसे वह नमाज़े शब के बाद पढ़ते हैं, जिसमें वह अपने पापों को कबूल करते हैं और ईश्वर से उन्हें माफ करने के का आग्रह करते हैं। साथ ही, इस दुआ में ईश्वर के कुछ गुणों, शैतान की विशेषताओं, मनुष्यों में उसके प्रभाव के तरीकों, नरक की पीड़ा की विशेषताओं की ओर इशारा किया गया है, और ईश्वर की क्षमा और दया के विपरीत, शरण मांगी गई है ईश्वर और ईश्वर की मध्यस्थता को शैतान और पीड़ा से छुटकारा पाने के तरीके के रूप में पेश किया गया है।
बत्तीसवीं दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ मे किया गया है, जैसे कि हसन ममदूही किरमानशही की शुहूद व शनाख़्त और अरबी भाषा मे सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यदुस साजेदीन है।
शिक्षाएँ
बत्तीसवीं दुआ सहीफ़ा ससज्जादिया की दुआओ में से एक है, जिसे इमाम सज्जाद (अ) नमाज़े शब के बाद पढ़ते हैं, जिसमें वह अपने पापों को स्वीकार करते हैं और ईस्वर से उन्हें माफ करने के लिए कहते हैं। इस दुआ को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें ईश्वर के गुण और क्षमायाचनाएँ शामिल हैं जो ईश्वर की दया को आकर्षित करने में प्रभावी हैं।[१] इस प्रार्थना की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
- अल्लाह की सलतनत और अधिकार का हमेशा से होना
- अल्लाह की क़ुदरत का मुतलक होना
- सभी युगों में अल्लाह की शाश्वत महिमा
- अल्लाह की महिमा का न आरम्भ है न अंत है और वह अनंत है
- वर्णनकर्ताओं की ईश्वर का वर्णन करने में असमर्थता
- ईश्वर का अजेय होना और उसका अबोधगम्य शासन
- सभी प्राणियों पर ईश्वरी का शासन है
- इस घाटी में ईश्वर को जानने और विचारों को भटकाने की असंभवता
- ईश्वर का शाश्वत एवं शाश्वत अस्तित्व
- कार्य करने में मनुष्य की असमर्थता की स्वीकृति
- मनुष्य की उच्च इच्छा की स्वीकृति
- ईश्वर की दया के बिना मनुष्य की ईश्वर की सेवा और आज्ञापालन करने में असमर्थता
- ईश्वर की क्षमा ही मनुष्य की एकमात्र आशा और इच्छा है
- शैतान की योजनाओं और धोखे से भगवान की शरण लेना
- कर्म पत्र में आज्ञाकारिता की कमी और बहुत अधिक अवज्ञा के कारण ईश्वर से दया और क्षमा माँगना
- बुरे कर्मों से मुक्ति पाने का उपाय ईश्वर की शरण है
- मानवीय कार्यों के बारे में ईश्वर का असीमित ज्ञान (ब्रह्माण्ड पर ईश्वर का कवरेज)
- इबलीस के बारे में ईश्वर से शिकायत करना, शैतान की बुराई से ईश्वर की शरण लेना
- शैतान का अनुसरण करने का परिणाम (विनाश में पड़ना, पाप करना और ईश्वर के क्रोध को भड़काना)
- मनुष्य के पतन की क्रमिकता
- ईश्वर ही मनुष्य का एकमात्र आश्रय, मध्यस्थ और उद्धारकर्ता है
- ईश्वर से माफ़ी मांगना
- ईश्वर के सामने पाप स्वीकारोक्ति
- कर्म की लघुता एवं इलाही हक़ूक़ की पूर्ति में असमर्थता को स्वीकार करना
- परमेश्वर का अपने सेवकों के पापों पर पर्दा डालना
- परमात्मा के द्वार के लिए भय और आशा (डर और आशा)
- ईश्वर भरोसे और विश्वास के लिए सबसे योग्य प्राणी है
- ईश्वर की दया और क्षमा ही सेवकों के लिए आशा का स्रोत है।
- पुनरुत्थान के दिन में ईश्वर से पर्दा और गोपनीयता का अनुरोध करना
- क्षमा से लाभ पाने के लिए ईश्वर पर भरोसा रखना
- मानव निर्माण की अवस्थाएँ (माँ के गर्भ में मानव की स्थिति का वर्णन)
- मानव विकास के चरणों में ईश्वरीय समाधान
- ईश्वर की कृपा पर विश्वास की कमी ही इबादत और सेवा की उपेक्षा का कारण है
- शैतान ईश्वर के प्रति संदेह और निश्चितता की कमजोरी का कारण है
- शैतान की चालाकी और धोखे से मुक्ति के लिए ईश्वर से दुआ करना
- अपने सेवकों के प्रति ईश्वर की अनन्त कृपा और दयालुता
- एक आसान दिन से लाभ उठाने का अनुरोध
- दैवीय प्रारब्ध से संतुष्ट रहने तथा रुचि और जीविका से सुख प्राप्त करने का अनुरोध
- जीवन को गिनने और शरीर को आज्ञाकारिता और दासता के तरीके से उपयोग करने का अनुरोध
- नरक की आग से ईश्वर की शरण मांगना
- नरक की अग्नि के लक्षण |
- नरक की सभी प्रकार की यातनाएँ
- नरक की आग से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर की कृपा और दया की आशा करना
- अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगना और ईश्वर से अपमानित न होना, जो कि सबसे अच्छे शरणदाता हैं
- पैग़म्बर मुहम्मद (स) और उनके परिवार पर सलवात और दुरूद पढ़ना[२]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे उसकी बत्तीसवीं दुआ का वर्णन किया गया है। जैसे हुसैन अंसारियान की दयारे आशेक़ान,[३] मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहूद व शनाख़त[४] सय्यद अहमद फ़रहि की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[५] का फ़ारसी भाषा मे वर्णन किया गया है।
इसके अलावा सहीफ़ा सज्जादिया की बत्तीसवीं दुआ सय्यद अली ख़ान मदनी की किताब रियाज़ उस-सालेकीन,[६] मुहम्मद जवाद मुग़निया की किताब फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया,[७] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की किताब रियाज़ उल-आरेफ़ीन[८] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह[९] की किताब आफ़ाक़ अल-रूह मे इस दुआ की अरबी भाषा मे व्याख्या लिखी गई है। इस दुआ के सार्वजनिक मफहूम और शब्दिक अर्थ को फ़ैज काशानी की किताब तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया[१०] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी की किताब शरह सहीफ़ा सज्जादिया मे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।[११]
पाठ और अनुवाद
दुआ का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | दुआ का अरबी उच्चारण |
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वकाना मिन दुआऐहि अलैहिस सलामो बादल फ़राग़े मिन सलातिल लैले लेनफ़्सेहि फ़िल ऐतेराफ़े बिज़्जनबे | नमाज़े शब के बाद की इमाम सज्जाद (अ) की दुआ | وَ کانَ مِنْ دُعَائِهِ علیهالسلام بَعْدَ الْفَرَاغِ مِنْ صَلَاةِ اللَّیلِ لِنَفْسِهِ فِی الِاعْتِرَافِ بِالذَّنْبِ |
अल्लाहुम्मा या ज़ल मुल्किल मुतअब्बेदे बिल ख़ुलूदे | हे परमेश्वर! हे शाश्वत और अबदी साम्राज्य वाले! | اللَّهُمَّ یا ذَا الْمُلْک الْمُتَأَبِّدِ بِالْخُلُودِ |
वस सुलतानिल मुमतनेऐ बेग़ैरे जुनूदिन वला आवानिन | और बिना सेना और समर्थन के मजबूत शासक! | وَ السُّلْطَانِ الْمُمْتَنِعِ بِغَیرِ جُنُودٍ وَ لَا أَعْوَانٍ. |
वल इज़्जिल बाक़ी अला मर्रिद दोहूरे व ख़वालिल आवामे व मवाज़ेइल अज़माने वल अय्यामे | और ऐसी गरिमा और सम्मान वाले जो सदियां, साल, युग और दिन बीत जाने के बावजूद बरकरार है। | وَ الْعِزِّ الْبَاقِی عَلَی مَرِّ الدُّهُورِ وَ خَوَالِی الْأَعْوَامِ وَ مَوَاضِی الْأَزمَانِ وَ الْأَیامِ |
अज़्ज़ा सुलतानोका इज़्ज़न ला हद्दा लहू बेअव्वलियतिन वला मुन्तहा लहू बेआखेरतिन | तेरा राज्य इतना शक्तिशाली है कि इसकी न तो कोई सीमा है और न ही अंत का कोई छोर है। | عَزَّ سُلْطَانُک عِزّاً لَا حَدَّ لَهُ بِأَوَّلِیةٍ، وَ لَا مُنْتَهَی لَهُ بِآخِرِیةٍ |
वस्तअला मुल्कका अलुव्वन सक़ततिल अशयाओ दूना बोलूग़े अमादेहि | और तेरी संप्रभुता की नींव इतनी ऊंची है कि सभी चीजें उसकी ऊंचाई को छूने में असमर्थ हैं। | وَ اسْتَعْلَی مُلْکک عَلُوّاً سَقَطَتِ الْأَشْیاءُ دُونَ بُلُوغِ أَمَدِهِ |
वला यब्लोग़ो अदना मस्तासरता बेहि मिन ज़ालेका अक़्सा नअतिन नाऐतीना | और प्रशंसा करने वालों की अत्यधिक प्रशंसा भी तेरे इस उत्कर्ष के निम्नतम स्तर तक नहीं पहुँच सकती। | وَ لَا یبْلُغُ أَدْنَی مَا اسْتَأْثَرْتَ بِهِ مِنْ ذَلِک أَقْصَی نَعْتِ النَّاعِتِینَ |
ज़ल्लत फ़ीकस सफ़ातो व तफस्सखत दूनकन नोउतो वा हारत फ़ी किबरेयाएका लताएफ़ुल ओहामे | जिसे तूने अपने लिए आरक्षित कर रखा है। विशेषणों के कारवां तेरे इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। और वर्णन के शब्द तेरी प्रशंसा की योग्य स्थिति तक पहुँचने में असमर्थ हैं, और नाजुक अवधारणाएं तेरी महान स्थिति पर आश्चर्यचकित और हैरान हैं। | ضَلَّتْ فِیک الصِّفَاتُ، وَ تَفَسَّخَتْ دُونَک النُّعُوتُ، وَ حَارَتْ فِی کبْرِیائِک لَطَائِفُ الْأَوْهَامِ |
कज़ालेका अन्तल्लाहुल अव्वलो फ़ी अव्वलीतेका, व अला ज़ालेका अंता दाएमुन ला तज़ूलो | अतः तू वह अल्लाह है जो सदैव से ही ऐसा ही है और सदैव बिना ज़वाल के इसी तरह रहेगा। | کذَلِک أَنْتَ اللَّهُ الْأَوَّلُ فِی أَوَّلِیتِک، وَ عَلَی ذَلِک أَنْتَ دَائِمٌ لَا تَزُولُ |
व अनल अब्दुज़ ज़ईफो अमलन, अलजसीमो अमलन, खरज्तो मिन यदी असबदुल वुसुलाते इल्ला मा वसलहू रहमतेका, व तकत्तअतो अन्नी एजमुल आमाले इल्ला मा अना मोअतसिम बेहि मिन अफ़वेका | मैं तेरा सेवक हूं जिसका कर्म कमजोर है और जिसकी उम्मीदे अधिक है। रिश्ते-नाते मेरे हाथों से जाते रहे हैं। लेकिन जो रिश्ता तेरी रहमत ने जोड़ा है। और उम्मीद के सूत्र भी एक-एक करके टूटते जाते हैं। परन्तु तेरी क्षमा और दया के जिस उपाय पर मैं भरोसा कर रहा हूं। | وَ أَنَا الْعَبْدُ الضَّعِیفُ عَمَلًا، الْجَسِیمُ أَمَلًا، خَرَجَتْ مِنْ یدِی أَسْبَابُ الْوُصُلَاتِ إِلَّا مَا وَصَلَهُ رَحْمَتُک، وَ تَقَطَّعَتْ عَنِّی عِصَمُ الْآمَالِ إِلَّا مَا أَنَا مُعْتَصِمٌ بِهِ مِنْ عَفْوِک |
क़ुल इंदी मा आतद्दो बेहि मिन ताअतेका, व कसोरा अला मा अबूओ बेहि मिन मआसियतेका व लन यज़ीका अलैका अफ़वो अन अब्देका व इन असाआ, फ़अफ़ो अन्नी | तेरी आज्ञाकारिता जिसकी मैं गिनती कर सकता हूँ वह नगण्य है और जिस पाप में मैं फँस गया हूँ वह बहुत बड़ा है। तेरे लिए अपने किसी भी सेवक को माफ करना मुश्किल नहीं है, चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो। इसलिए मुझे भी माफ कर दे। | قَلَّ عِنْدِی مَا أَعْتَدُّ بِهِ مِنْ طَاعَتِک، و کثُرَ عَلَی مَا أَبُوءُ بِهِ مِنْ مَعْصِیتِک وَ لَنْ یضِیقَ عَلَیک عَفْوٌ عَنْ عَبْدِک وَ إِنْ أَسَاءَ، فَاعْفُ عَنِّی. |
अल्लाहुम्मा व क़द अशरफ़ा अला ख़फ़ायल आमाले इल्मोका, वन कशफ़ा कुल्लो मस्तूरे दूना ख़ुबरेका, वला तनतवी अनका दक़ाएक़ुल उमूरे, वला तअज़ोबो अन्का ग़ैबातुस सराएरे | हे परमात्मा! तेरा ज्ञान सभी गुप्त कार्यों को समाहित करता है, और हर छिपी हुई चीज़ तेरे ज्ञान और जानकारी के लिए प्रकट होती है, और यहां तक कि सूक्ष्मतम चीजें भी तेरी दृष्टि से छिपी नहीं हैं, और न ही रहस्य तुझ से छिपे हुए हैं। | اللَّهُمَّ وَ قَدْ أَشْرَفَ عَلَی خَفَایا الْأَعْمَالِ عِلْمُک، وَ انْکشَفَ کلُّ مَسْتُورٍ دُونَ خُبْرِک، وَ لَا تَنْطَوِی عَنْک دَقَائِقُ الْأُمُورِ، وَ لَا تَعْزُبُ عَنْک غَیبَاتُ السَّرَائِرِ |
वकदिस्तहवज़ा आला अदुव्वेकल लज़िस तनजरका लेग़वायाती फ़ंज़रतहो, वसतमहलका ऐला यौमिद दीने लेइज़लाली फ़अमहलतहू | तेरा वह दुश्मन जिसने मेरे गुमराह होने के बारे में तुझ से मोहलत मांगी थी और तूने उसे मोहलत दी थी, और मुझे गुमराह करने के लिए प्रलय के दिन तक की मोहलत मांगी थी और तूने उसे मोहलत दी थी। | وَ قَدِ اسْتَحْوَذَ عَلَی عَدُوُّک الَّذِی اسْتَنْظَرَک لِغَوَایتِی فَأَنْظَرْتَهُ، وَ اسْتَمْهَلَک إِلَی یوْمِ الدِّینِ لِإِضْلَالِی فَأَمْهَلْتَهُ |
फ़औक़अनी व कद हरिब्तो इलैका मिन सग़ाऐरे ज़ोनूबिन मूबेक़तिन, व कबाऐरिन आमालिन मुरदीयतिन हत्ता इज़ा फ़ारक़तो मअसीयतेका, वसतौजबतो बेसूए सअयी सखतोका, फ़तला अन्नी ऐज़ारा अज़रेहि, व तलफ़्फ़ानी बेकलेमते कफरेहि, व तवल्लल बराअते मिन्नी, व अदबरा मोअव्वलेयन अन्नी, फ़असहरनी लेगज़बेका फ़रीदन, व अखरजनी ऐला फ़नाए नक़ेमतेका तरीदन | मुझ पर काबू पा लिया गया है। और जब मैं इसे नष्ट करने वाले दुष्ट पापों से तेरे चरणों की शरण लेने के लिए उठ रहा था, तो इसने मुझे नीचे गिरा दिया। और जब मैं पाप का दोषी हुआ, और अपने कुकर्मों के कारण तेरी अप्रसन्नता का पात्र हुआ, तब उस ने अपने छल की बारी को मुझ से दूर कर दिया। और अपने अविश्वास भरे शब्दों के साथ मेरे सामने आया। और मुझ से घृणा की, और मेरी ओर से मुंह फेर लिया, और मुझे खुले मैदान में अपने क्रोध के साम्हने अकेला छोड़ दिया। और मुझे अपने प्रतिशोध की मंजिल तक खींच ले गया। | فَأَوْقَعَنِی وَ قَدْ هَرَبْتُ إِلَیک مِنْ صَغَائِرِ ذُنُوبٍ مُوبِقَةٍ، وَ کبَائِرِ أَعْمَالٍ مُرْدِیةٍ حَتَّی إِذَا قَارَفْتُ مَعْصِیتَک، وَ اسْتَوْجَبْتُ بِسُوءِ سَعْیی سَخْطَتَک، فَتَلَ عَنِّی عِذَارَ غَدْرِهِ، وَ تَلَقَّانِی بِکلِمَةِ کفْرِهِ، وَ تَوَلَّی الْبَرَاءَةَ مِنِّی، وَ أَدْبَرَ مُوَلِّیاً عَنِّی، فَأَصْحَرَنِی لِغَضَبِک فَرِیداً، وَ أَخْرَجَنِی إِلَی فِنَاءِ نَقِمَتِک طَرِیداً |
ला शफ़ीओ यशफ़ओ ली इलैका, वला खफ़ीरो यूमेनूनी अलैका, वला हिस्नो यहजोबोनी अन्का, वला मलाज़ुन अलजाओ इलैहे मिनका | ऐसी स्थिति में जहां कोई सिफ़ारिश करने वाला नहीं था जो तेरे साथ मेरी सिफ़ारिश कर सके, और कोई आश्रय नहीं जो मुझे सज़ा से बचा सके, और कोई दीवार नहीं जो मुझे तेरी नज़रों से छिपा सके, और कोई आश्रय नहीं जहां मैं तेरे डर से शरण ले सकूं। | لَا شَفِیعٌ یشْفَعُ لِی إِلَیک، وَ لَا خَفِیرٌ یؤْمِنُنِی عَلَیک، وَ لَا حِصْنٌ یحْجُبُنِی عَنْک، وَ لَا مَلَاذٌ أَلْجَأُ إِلَیهِ مِنْک. |
फ़हाज़ा मकामुल आऐजे बेका, व महल्लुल मोअतरेफ़े लका, फ़ला यज़य्येक़न्ना अन्नी फ़ज़्लुका, वला यक़सोरन्ना दूनी अफ़वोका, वला अकुन अख़यबा ऐबादेकत ताऐबीना, वला अकनता वफ़ूदिल आमेलीना, वग़फ़िर ली, इन्नका खैरुल ग़ाफ़ेरीना | अब यही मेरे लिए शरण लेने का स्थान है और यही मेरे पापों को स्वीकार करने का स्थान है। इसलिए, ऐसा न हो कि तेरी कृपा मेरे लिए कम हो जाए, और क्षमा मुझ तक न पहुंचे, और मैं पश्चाताप करने वाले बंदो में सबसे असफल न हो जाऊं, और न ही उन लोगों में से जो आशा लेकर तेरे पास आते हैं, मैं निराश हूं (हे पालन हार)। ! मुझे क्षमा कर दे क्योंकि तू क्षमा करने वालों में सर्वश्रेष्ठ हैं। | فَهَذَا مَقَامُ الْعَائِذِ بِک، وَ مَحَلُّ الْمُعْتَرِفِ لَک، فَلَا یضِیقَنَّ عَنِّی فَضْلُک، وَ لَا یقْصُرَنَّ دُونِی عَفْوُک، وَ لَا أَکنْ أَخْیبَ عِبَادِک التَّائِبِینَ، وَ لَا أَقْنَطَ وُفُودِک الْآمِلِینَ، وَ اغْفِرْ لِی، إِنَّک خَیرُ الْغَافِرِینَ |
अल्लाहुम्मा इन्नका अमरतनी फ़तरकतो, व नहयतनी फ़रकबतो, व सव्वला लिल खताऐ खातेरुस सुऐ फ़फ़र्रततो | हे परमात्मा! तूने मुझे पालन करने का आदेश दिया लेकिन मैंने उस पर अमल नहीं किया और मुझे (बुरे कामों से) रोका लेकिन मैं उन्हें करता रहा। और बुरे विचारों ने पाप को सुखदायक बनाकर (तेरी आज्ञाओं को) टाल दिया। | اللَّهُمَّ إِنَّک أَمَرْتَنِی فَتَرَکتُ، وَ نَهَیتَنِی فَرَکبْتُ، وَ سَوَّلَ لِی الْخَطَاءَ خَاطِرُ السُّوءِ فَفَرَّطْتُ. |
वला असतशहेदो अला सेयामी नहारन, वला असतजीरो बेतहज्जदी लैलन, वला तुस्नी अला बेएयाऐहा सुन्नतुन हाशा फ़ोरूज़ेकल लती मन ज़ैयअहा हलका | मैं रोज़े की वजह से न तो दिन में गवाही दे सकता हूँ, न रात में नमाज़ के कारण अपना सुपर बना सकता हूँ, और मैंने उससे प्रशंसा की उम्मीद करने के लिए कोई सुन्नत पुनर्जीवित नहीं की है, सिवाय इसके कि जो वाजिब हो वे वैसे भी नष्ट हो जायेंगे | وَ لَا أَسْتَشْهِدُ عَلَی صِیامِی نَهَاراً، وَ لَا أَسْتَجِیرُ بِتَهَجُّدِی لَیلًا، وَ لَا تُثْنِی عَلَی بِإِحْیائِهَا سُنَّةٌ حَاشَا فُرُوضِک الَّتِی مَنْ ضَیعَهَا هَلَک. |
वलस्तो अतवस्सलो इलैका बेफ़ज्ले नाफ़ेलतिन मआ कसीरे मा अग़फ़लतो मिन वज़ाएफ़े फ़ोरज़ेका, व तअद्दयतो अन मकामाते होदूदेका इला होरोमातिन तहकतोहा, व कबाएरे ज़ोनूबिज तरहतोहा, कानत आफ़ीतोका ली मिन फ़ज़ाएहेहा सितरन | और नवाफ़िल और शरफ़ की वजह से, जो तुझसे तवस्सुल नहीं कर सकता, यदि वह तेरे दायित्वों की कई शर्तों की उपेक्षा करता रहा, और तेरे आदेशों की सीमाओं का उल्लंघन करता रहा, तो वह निषिद्ध कानून का उल्लंघन करता रहा, और वह बड़े अपराध करता रहा पाप जिनके अपमान से केवल तेरी कृपा और दया ही ढकी हुई थी। | وَ لَسْتُ أَتَوَسَّلُ إِلَیک بِفَضْلِ نَافِلَةٍ مَعَ کثِیرِ مَا أَغْفَلْتُ مِنْ وَظَائِفِ فُرُوضِک، وَ تَعَدَّیتُ عَنْ مَقَامَاتِ حُدُودِک إِلَی حُرُمَاتٍ انْتَهَکتُهَا، وَ کبَائِرِ ذُنُوبٍ اجْتَرَحْتُهَا، کانَتْ عَافِیتُک لِی مِنْ فَضَائِحِهَا سِتْراً |
वहाज़ा मक़ामो मनिस तहया लेनफ्सेहि मिन्का, व सख़ेता अलैहा, वरज़ी अनका, फ़तलक़्क़ाका बेनफ़सिन ख़ाशेअतिन, व रक़बतिन ख़ाजेअतिन, व जहरिन मुस्कलिन मिनल खताया वाक़ेफ़न बैनर रग़बते इलैका वर रहबते मिन्का | यह (मेरी स्थिति) उस व्यक्ति की स्थिति है जो तुझसे शर्मिंदा होते हुए खुद को बुराई से रोकता है, और तुझसे क्रोधित है और तुझसे प्रसन्न है, और तेरे सामने भयभीत हृदय, झुकी हुई गर्दन और पापों का बोझ है आशा और भय की स्थिति में अपनी पीठ के साथ। | وَ هَذَا مَقَامُ مَنِ اسْتَحْیا لِنَفْسِهِ مِنْک، وَ سَخِطَ عَلَیهَا، وَ رَضِی عَنْک، فَتَلَقَّاک بِنَفْسٍ خَاشِعَةٍ، وَ رَقَبَةٍ خَاضِعَةٍ، وَ ظَهْرٍ مُثْقَلٍ مِنَ الْخَطَایا وَاقِفاً بَینَ الرَّغْبَةِ إِلَیک وَ الرَّهْبَةِ مِنْک |
व अंता औला मन रजाओ, व अहक़्क़ो मन ख़शीहो वत तक़ाहो, फआतेनी या रब्बे मा रजौतो, व आमिन्नी मा हज़िरतो, व उद अला बेआऐदते रहमतेका, इन्नका अकरमुल मसऊलीना | और तू उन सबमें सबसे अधिक योग्य हैं। जिनसे उसने व्यवहार किया है और वह उन सभी से अधिक का हकदार है जिनसे उसे प्रताड़ित किया गया है। हे मेरे परमदेव! जब मेरी यह हालत है तो कृपया मुझे वह दे जिसका मैं उम्मीदवार हूं। और ईमानवालों को उस चीज़ से डरा और मुझ पर अपनी दयालुता का प्रतिफल डाल। क्योंकि तू उन सब से अधिक उदार हैं जिनसे प्रश्न किया गया है। | وَ أَنْتَ أَوْلَی مَنْ رَجَاهُ، وَ أَحَقُّ مَنْ خَشِیهُ وَ اتَّقَاهُ، فَأَعْطِنِی یا رَبِّ مَا رَجَوْتُ، وَ آمِنِّی مَا حَذِرْتُ، وَ عُدْ عَلَی بِعَائِدَةِ رَحْمَتِک، إِنَّک أَکرَمُ الْمَسْئُولِینَ |
अल्लाहुम्मा व इज़ सतरतनी बेअफ़वेका, व तग़म्दतनी बेफ़ज़लेका फी दारिल फ़नाए बेहज़रतिल अकफाए, फ़अजिरनी मिन फ़ज़ीहाते दारिल बकाए इन्दा मवाक़ेफिल अशहादे मिनल मलाएकतिल मुक़र्रेबीना, वर रोसोलिल मुकर्रेमीना, वश शोहदाए वस सालेहीना, मिन जारिन कुन्तो ओकातेमोहू सय्येआती, व मिन ज़ी रहेमिन कुन्तो अहतशेमो मिन्हो फ़ी सरीराती | हे परमेश्वर! जबकि तू ने मुझे अपने अनुग्रह में छिपा रखा है, और मेरे साथियों के साम्हने मुझे अनुग्रह और अनुग्रह का वस्त्र पहनाया है। अतः जीवित रहने के अपमान से आश्रय दे। इस स्थान पर जहां करीबी देवदूत, प्रतिष्ठित और प्रतिष्ठित पैगंबर, शहीद और धर्मी लोग सभी मौजूद होंगे। कुछ पड़ोसी होंगे जिनसे मैं अपने बुरे काम छिपाऊंगा, और कुछ रिश्तेदार होंगे जिनसे मुझे अपने छिपे हुए कामों के लिए शर्मिंदा होना पड़ेगा। | اللَّهُمَّ وَ إِذْ سَتَرْتَنِی بِعَفْوِک، وَ تَغَمَّدْتَنِی بِفَضْلِک فِیدار الْفَنَاءِ بِحَضْرَةِ الْأَکفَاءِ، فَأَجِرْنِی مِنْ فَضِیحَاتِدار الْبَقَاءِ عِنْدَ مَوَاقِفِ الْأَشْهَادِ مِنَ الْمَلَائِکةِ الْمُقَرَّبِینَ، وَ الرُّسُلِ الْمُکرَّمِینَ، وَ الشُّهَدَاءِ وَ الصَّالِحِینَ، مِنْ جَارٍ کنْتُ أُکاتِمُهُ سَیئَاتِی، وَ مِنْ ذِی رَحِمٍ کنْتُ أَحْتَشِمُ مِنْهُ فِی سَرِیرَاتِی |
लम असिक़ बेहिम रब्बे फ़िस सित्रे अला, व वसिक़तो बेका रब्बे फिल मग़फेरते ली, व अंता औला मन वोसेक़ा बेहि, व आता मन रोग़ेबा इलैहे, व अरआफ़ो नमिस तुरहेमा, फ़रहमनी | हे मेरे परमदेव! मैं ने छिपकर उन पर भरोसा न किया, और हे प्रभु, मैं ने क्षमा के विषय में तुझ पर भरोसा किया, और तू उन सब में से है जिन पर भरोसा किया जाता है। सबसे विश्वास के योग्य और उन लोगों के लिए सबसे अधिक उदार, जिनकी ओर मुड़ते हैं और उन लोगों के लिए सबसे दयालु हैं जो दया की भीख मांगते हैं, इसलिए मुझ पर दया कर। | لَمْ أَثِقْ بِهِمْ رَبِّ فِی السِّتْرِ عَلَی، وَ وَثِقْتُ بِک رَبِّ فِی الْمَغْفِرَةِ لِی، وَ أَنْتَ أَوْلَی مَنْ وُثِقَ بِهِ، وَ أَعْطَی مَنْ رُغِبَ إِلَیهِ، وَ أَرْأَفُ مَنِ اسْتُرْحِمَ، فَارْحَمْنِی |
अल्लाहुम्मा व अंता हदरतनी माअन महीनन मिन सुलबिन मुतजाएकिल ऐज़ामे, हरेजिल मसालेके इला रहेमिन ज़ैक़तिन सतरतहा बिलहुजोबे, तोसर्रेफ़ोनी हाला अन हालिन हत्तन तहयता बी ऐला तामिस सुरते, व असबत्ता फ़िल जवारेहा काम नआत्ता फ़ी किताबेका, नुतफ़तन सुम्मा अलाक़तन सुम्मा मुज़ग़तन सुम्मा अज़मन सुम्मा कसवतिल ऐज़ामा लहमन, सुम्मा अंशातनी (ख़ल्क़न आख़र) कमा शेता | हे परमदेव! तूने मुझे एक गंदे जल (वीर्य) के रूप में गर्भ के संकीर्ण गर्भ में हड्डियों और संकीर्ण मार्गों के साथ नीचे लाया, जिसे तुमने हिजाब में छिपा दिया है, जहां तू मुझे एक राज्य से दूसरे राज्य में तब तक ले जाता रहा जब तक कि तू नहीं लाया। मुझे इस बिंदु तक. जहां मेरा केस पूरा हुआ। फिर उसने अपने अंग और रत्न मुझमें जमा कर दिये। जैसा कि तूने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि (मैं) पहले शुक्राणु था। फिर जमा हुआ खून, फिर मांस का लोथड़ा, फिर हड्डियों का ढाँचा, फिर उन हड्डियों के ऊपर मांस की परतें। फिर तूने अपनी इच्छानुसार दूसरे प्रकार का प्राणी उत्पन्न किया। | اللَّهُمَّ وَ أَنْتَ حَدَرْتَنِی مَاءً مَهِیناً مِنْ صُلْبٍ مُتَضَایقِ الْعِظَامِ، حَرِجِ الْمَسَالِک إِلَی رَحِمٍ ضَیقَةٍ سَتَرْتَهَا بِالْحُجُبِ، تُصَرِّفُنِی حَالًا عَنْ حَالٍ حَتَّی انْتَهَیتَ بیإِلَی تَمَامِ الصُّورَةِ، وَ أَثْبَتَّ فِی الْجَوَارِحَ کمَا نَعَتَّ فِی کتَابِک: نُطْفَةً ثُمَّ عَلَقَةً ثُمَّ مُضْغَةً ثُمَّ عَظْماً ثُمَّ کسَوْتَ الْعِظَامَ لَحْماً، ثُمَّ أَنْشَأْتَنِی «خَلْقاً آخَر»َ کمَا شِئْتَ |
हत्ता इज़ह तजतो इला रिज़क़ेका, वलम असतग़ने अन ग़ेयासे फ़ज़्लेका, जअलता ली क़तन मिन फ़ज़्ले तआमिन व शराबिन अजरयतहू लेअमतेकल लती असकन्तनी जौफ़हा, व ओदअतनी क़रारा रहेमेहा | और मैं तरी जीविका का मोहताज हो गया और लुतफ़ और एहसान के सहारे के बिना न रह सका। इसलिये तू ने बचे हुए भोजन और जल में से जो तू ने उस दासी के लिये छोड़ा था जिसके गर्भ में तू ने मुझे रखा और जिसके गर्भ में तू ने मुझे सौंपा था, ले लिया। अपनी आजीविका बनाई। | حَتَّی إِذَا احْتَجْتُ إِلَی رِزْقِک، وَ لَمْ أَسْتَغْنِ عَنْ غِیاثِ فَضْلِک، جَعَلْتَ لِی قُوتاً مِنْ فَضْلِ طَعَامٍ وَ شَرَابٍ أَجْرَیتَهُ لِأَمَتِک الَّتِی أَسْکنْتَنِی جَوْفَهَا، وَ أَوْدَعْتَنِی قَرَارَ رَحِمِهَا |
वलौ तकलुनी या रब्बे फ़ी तिलकल हालाते इला हौली, औ तज़तर्रोनी इला क़ुव्वती लकानल हौलो अन्नी मोअतजेलन, वलाकानलित क़ुव्वतो मिन्नी बईदतन | हे मेरे परमदेव! इन परिस्थितियों में, यदि तूने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया होता या मेरी अपनी शक्ति के सामने आत्मसमर्पण कर दिया होता, तो तदब्बुर मुझसे दूर रहता और शक्ति मुझसे दूर रहती; | وَ لَوْ تَکلُنِی یا رَبِّ فِی تِلْک الْحَالاتِ إِلَی حَوْلِی، أَوْ تَضْطَرُّنِی إِلَی قُوَّتِی لَکانَ الْحَوْلُ عَنِّی مُعْتَزِلًا، وَ لَکانَتِ الْقُوَّةُ مِنِّی بَعِیدَةً |
फ़ग़जौअतनी बेफ़ज़्लेका ग़ेज़ाअल बर्रेलि लतीफे, तफअलो ज़ालेका बी ततव्वोलन अला इला ग़ायती हाज़ेहि, ला आअदमो बिर्रेका, वला यबतेयो बी हुस्नो सनीऐका, वला ततअक्कदो मआ ज़ालेका सक़ती फ़अतफ़र्रग़ा लेमा होवा आहज़ा ली इन्दका | परन्तु तूने अपनी कृपा और दयालुता से मुझे एक दयालु और कृपालु व्यक्ति की तरह बड़ा करने की व्यवस्था की, जो तेरी दयालुता के कारण आज तक जारी है, ताकि मैं तेरी दयालुता से कभी वंचित न रहूँ, और न ही तेरी दयालुता में कभी देरी हुई। . लेकिन इसके बावजूद, मुझे इस बात पर यकीन नहीं था कि मैं खुद को केवल उसी काम के लिए समर्पित करूंगा जो तेरी नजर में मेरे लिए सबसे फायदेमंद है। | فَغَذَوْتَنِی بِفَضْلِک غِذَاءَ الْبَرِّ اللَّطِیفِ، تَفْعَلُ ذَلِک بیتَطَوُّلًا عَلَی إِلَی غَایتِی هَذِهِ، لَا أَعْدَمُ بِرَّک، وَ لَا یبْطِئُ بیحُسْنُ صَنِیعِک، وَ لَا تَتَأَکدُ مَعَ ذَلِک ثِقَتِی فَأَتَفَرَّغَ لِمَا هُوَ أَحْظَی لِی عِنْدَک |
क़द मलकश शैतानो ऐनानी फी सूइज़ ज़न्ने व ज़अफ़िल यक़ीने, फ़अना अशकू सूआ मुजावरतेहि ली, व ताअता नफ़सी लहू, व असतअसेमोका मिन मलकतेहि, व अतज़र्रओ इलैका फ़ी सरफ़े कैदेहि अन्नी | (इस अनिश्चितता का कारण यह है कि) मेरा बगीचा संदेह और विश्वास की कमजोरी के मामले में शैतान के हाथों में है। इसलिए, मुझे उसके बुरे पड़ोसी और मेरे प्रति आज्ञाकारिता पर संदेह है, और उसके अधिकार से तेरे चरणों में सुरक्षा और देखभाल चाहता हूं। | قَدْ مَلَک الشَّیطَانُ عِنَانِی فِی سُوءِ الظَّنِّ وَ ضَعْفِ الْیقِینِ، فَأَنَا أَشْکو سُوءَ مُجَاوَرَتِهِ لِی، وَ طَاعَةَ نَفْسِی لَهُ، وَ أَسْتَعْصِمُک مِنْ مَلَکتِهِ، وَ أَتَضَرَّعُ إِلَیک فِی صَرْفِ کیدِهِ عَنِّی |
व अस्अलोका फ़ी अन तोसह्हेला ऐला रिज़क़ी सबीलन, फ़लकल हम्दो अलब तेदाएका बिन्नअमिल जेसामे, व इल्हामेकश शुक्रा अलल ऐहसाने वल अनआमे, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व सह्हिल अला रिज़की, व अन तोक़न्नेअनी बेतक़दीरेका ली, व अन तुरज़ीनी बेहिस्सती फ़ीमा क़समता ली, व अन तज्अला मा ज़हबा मिन जिस्मी व उमोरी फ़ी सबीले ताअतेका, इन्नका खैरुर राज़ेक़ीन | और मैं नम्रतापूर्वक तुझ से विनती करता हूं कि तू उसका छल मुझ से दूर कर दे। और मैं तुझ से मेरे लिए जीविका का कोई आसान साधन बनाने का आग्रह करता हूं। सारी प्रशंसा तेरे लिए है कि तूने उच्च अनुग्रह प्रदान किया है और उपकारों और पुरस्कारों के लिए (हृदय में) कृतज्ञता पैदा की है। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और मेरे लिए जीविका आसान कर दे और जो कुछ मेरे लिए निर्धारित किया गया है। मुझे उससे संतुष्ट होने दे और मेरे लिए जो हिस्सा तय किया गया है और शरीर जो काम करने आया है और उम्र बीत गई है उससे मुझे संतुष्ट कर दे। इसे अपनी आज्ञाकारिता के मार्ग में गिनें। निस्संदेह, जीविका प्रदान करने वालों में साधन सर्वोत्तम हैं। | وَ أَسْأَلُک فِی أَنْ تُسَهِّلَ إِلَی رِزْقِی سَبِیلًا، فَلَک الْحَمْدُ عَلَی ابْتِدَائِک بِالنِّعَمِ الْجِسَامِ، وَ إِلْهَامِک الشُّکرَ عَلَی الْإِحْسَانِ وَ الْإِنْعَامِ، فَصَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ سَهِّلْ عَلَی رِزْقِی، وَ أَنْ تُقَنِّعَنِی بِتَقْدِیرِک لِی، وَ أَنْ تُرْضِینِی بِحِصَّتِی فِیمَا قَسَمْتَ لِی، وَ أَنْ تَجْعَلَ مَا ذَهَبَ مِنْ جِسْمِی وَ عُمُرِی فِی سَبِیلِ طَاعَتِک، إِنَّک خَیرُ الرَّازِقِینَ. |
अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बेका मिन नारिन तग़ल्लज़ता बेहा अला मन असाका, व तवअदता बेहा मन सदफ़ा अन रेज़ाका, व मिन नारिन नूरोहा ज़ुलमतुन, व हयनोहा अलीमुन, व बईदोहा क़रीबुन, व मिन नारिन याकोलो बअज़हा बअज़ुन, व यसूलो बअज़ोहा अला बअज़िन | हे पालन हार! मैं उस आग से पनाह चाहता हूँ जिसके द्वारा तूने अपने अवज्ञाकारियों को पकड़ लिया है। और जिन से तू ने उन लोगों को डराया और धमकाया है, जो तेरी प्रसन्नता से विमुख हो गए हैं, और मैं उस उग्र नरक से पनाह चाहता हूं, जिसमें प्रकाश के स्थान पर अन्धकार है, जिसका जरा सा स्पर्श भी अत्यन्त दुःखदायी है और जिससे शाप दूर हो जाते हैं। करीब होने के बावजूद (गर्मी के मामले में) और मैं उस आग से शरण लेता हूं जो एक दूसरे को भस्म कर देती है और एक दूसरे पर हमला करती है। | اللَّهُمَّ إِنِّی أَعُوذُ بِک مِنْ نَارٍ تَغَلَّظْتَ بِهَا عَلَی مَنْ عَصَاک، وَ تَوَعَّدْتَ بِهَا مَنْ صَدَفَ عَنْ رِضَاک، وَ مِنْ نَارٍ نُورُهَا ظُلْمَةٌ، وَ هَینُهَا أَلِیمٌ، وَ بَعِیدُهَا قَرِیبٌ، وَ مِنْ نَارٍ یأْکلُ بَعْضَهَا بَعْضٌ، وَ یصُولُ بَعْضُهَا عَلَی بَعْضٍ |
व मिन नारिन तज़रुल ऐज़ामा रमीमन, व तसक़ी अहलहा हमीमन, व मिन नारिन ला तुब्क़ा अला मन तज़र्राआ इलैहा, वला तरहमो मनिस तअतफ़हा, वला तक़दीरो अलत तखफ़ीफ़े अम्मन ख़शआ लहा वस तसलमा इलैहा तलक़ा सुकानहा बेआहर्रे मा लदयहा मिन अलीमिन नकाले व शदीदिल वबाले | और मैं उस आग से पनाह चाहता हूँ जो हड्डियों को जलाकर राख कर देगी और नरकवासियों को खौलता हुआ पानी पिला देगा। और उस आग से जो उसके सामने गरजेगी। वह उस पर दया न करेगी और जो कोई उस से दया की भीख मांगेगा। वह उस पर दया न करेगा, और जो कोई उसके सामने फरूतनी करेगा। और तू खुद को उसके हवाले कर देगा। वह इस पर किसी भी कटौती का हकदार नहीं होगा। वह अपने निवासियों को दर्दनाक पीड़ाओं और भयंकर ईगल-लौ हथियारों से लैस करेगी। | وَ مِنْ نَارٍ تَذَرُ الْعِظَامَ رَمِیماً، وَ تَسقِی أَهْلَهَا حَمِیماً، وَ مِنْ نَارٍ لَا تُبْقِی عَلَی مَنْ تَضَرَّعَ إِلَیهَا، وَ لَا تَرْحَمُ مَنِ اسْتَعْطَفَهَا، وَ لَا تَقْدِرُ عَلَی التَّخْفِیفِ عَمَّنْ خَشَعَ لَهَا وَ اسْتَسْلَمَ إِلَیهَا تَلْقَی سُکانَهَا بِأَحَرِّ مَا لَدَیهَا مِنْ أَلِیمِ النَّکالِ وَ شَدِیدِ الْوَبَالِ |
व अऊज़ो बेका मिन अक़ारेबेहल फ़ागेरते अफ़वाहोहा, व हयातेहस सालेख़ते बेअनयाबेहा, व शराबेहल लज़ी यक़त्तओ अमआ व अफ़ऐदता सुकानेहा, व यनज़ेओ क़ोलूबहुम, व असतहदीका लेमा बाआदे मिन्हा, व अख़्ख़र अन्हा | (पालनहार!) मैं नरक के बिच्छुओं से, जो मुँह खोले हुए हैं, और उन साँपों से, जो दाँतो को पीस पीस कर फ़ुंकार रहे हैं, और उसके खौलते पानी से, जो आँतों और दिलों को छेद देगा (सीनो को चीर कर) दिलो को निकाल लेगा, तेरी शरण चाहता हूं। परमदेव! मैं तुझसे उन वस्तुओं की याचना करता हूँ जो इस आग को दूर कर दे और इसे वापस लौटा दे। | وَ أَعُوذُ بِک مِنْ عَقَارِبِهَا الْفَاغِرَةِ أَفْوَاهُهَا، وَ حَیاتِهَا الصَّالِقَةِ بِأَنْیابِهَا، وَ شَرَابِهَا الَّذِی یقَطِّعُ أَمْعَاءَ وَ أَفْئِدَةَ سُکانِهَا، وَ ینْزِعُ قُلُوبَهُمْ، وَ أَسْتَهْدِیک لِمَا بَاعَدَ مِنْهَا، وَ أَخَّرَ عَنْهَا. |
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व अजिरनी मिन्हा बेफ़ज़्ले रहमतेका, व अक़िलनी असराती बेहुस्ने इक़ालतेका, वला तखज़ुलनी या ख़ैरल मुजीरीना | परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और अपनी दया से मुझे इस आग से बचा और मेरी गलतियों को क्षमा कर और मुझे निराश मत कर। | اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ أَجِرْنِی مِنْهَا بِفَضْلِ رَحْمَتِک، وَ أَقِلْنِی عَثَرَاتِی بِحُسْنِ إِقَالَتِک، وَ لَا تَخْذُلْنِی یا خَیرَ الْمُجِیرِینَ |
अल्लाहुम्मा इन्नाक तक़िल करीहता, व तोअतिल हसनता, वतफअलो मा तोरीदो, व अनता अला कुल्ले शैइन कद़ीर | हे परमात्मा, आश्रय देने वालों में सर्वश्रेष्ठ, तेरी कठिनाई और परेशानी से बचाता हैं, और अच्छे आशीर्वाद प्रदान करता हैं, और जो कुछ भी तू चाहता हैं वह करता हैं, और तू सभी चीजों पर शक्ति रखते हैं। | اللَّهُمَّ إِنَّک تَقِی الْکرِیهَةَ، وَ تُعْطِی الْحَسَنَةَ، وَ تَفْعَلُ مَا تُرِیدُ، وَ أَنْتَ عَلَی کلِّ شَیءٍ قَدِیرٌ |
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, इज़ा ज़ुकरल अबरारो, व सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, मखतलफ़ल लैलो वन नहारो, सलातन ला यनक़तेओ मददोहा, वला यहसा अददोहा, सलातन तशहनुल हवाआ, व तमलउल अरज़ा वस समाआ | हे परमात्मा! जब भी अच्छे कामों का ज़िक्र हो तो मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजिल कर और जब तक दिन और रात का आना-जाना जारी रहे, मुहम्मद और उनके परिवार पर रहम कर। एक ऐसी दया जिसका भण्डार ख़त्म नहीं हो सकता और जिसकी संख्या गिनी नहीं जा सकती। एक दया जो ब्रह्मांड को भर देती है और पृथ्वी और आकाश को भर देती है। | اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، إِذَا ذُکرَ الْأَبْرَارُ، وَ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، مَا اخْتَلَفَ اللَّیلُ وَ النَّهَارُ، صَلَاةً لَا ینْقَطِعُ مَدَدُهَا، وَ لَا یحْصَی عَدَدُهَا، صَلَاةً تَشْحَنُ الْهَوَاءَ، وَ تَمْلَأُ الْأَرْضَ وَ السَّمَاءَ |
सल्लल्लाहो अलैहे हत्ता यरज़ा, व सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि बादर रेज़ा, सलातन ला हद्दा लहा वला मुनतहा, या अरहमर राहेमीन | अल्लाह उन पर अपनी कृपा उसी सीमा तक बनाये रख जिस सीमा तक वह प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर भी उन पर और उनके परिवार पर अपनी कृपा बनाये रख। ऐसी दया जिसकी कोई सीमा नहीं और कोई अंत नहीं। हे परम दयालु! | صَلَّی اللَّهُ عَلَیهِ حَتَّی یرْضَی، وَ صَلَّی اللَّهُ عَلَیهِ وَ آلِهِ بَعْدَ الرِّضَا، صَلَاةً لَا حَدَّ لَهَا وَ لَا مُنْتَهَی، یا أَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ |
फ़ुटनोट
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 35
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 86-157; शरह फराज़हाए दुआ सी व दोव्वुम अज़ साइट इरफ़ान
- ↑ अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 197 -226
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 77-157
- ↑ फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 19-63
- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 5, पेज 5-122
- ↑ मुग़्निया, फ़ी जिलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी, पेज 401-418
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 417-441
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 161-188
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 68
- ↑ जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 170-179
स्रोत
- अंसारियान, हुसैन, दयारे आशेकान, तफसीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम आज़ादी, 1372 शम्सी
- जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
- दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
- फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
- फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
- मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
- मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी